योगी का हिंदुत्व बनाम अखिलेश का जातिवाद समीकरण कितना है सफल…
उत्तरप्रदेश –उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव इस आत्मविश्वास में है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा विरोधी और सरकार से नाखुश सारा वोट उनके गठबंधन की झोली मे आ जाएगा। गठबंधन ना करने का एलान कर चुकी अलग-थलग पड़ी बसपा यदि मेहनत कर भाजपा से अपना दलित वोट किसी हद तक वापस कर ले तो भाजपा चालीस फीसद के आसपास जनसमर्थन से आगे नहीं पंहुच सकेगी।
गैर यादव ओबीसी का आधा हिस्सा भी सपा गठबंधन के साथ आ गया तो तो मुस्लिम-यादव मिलाकर संभावित सपा-कांगेस, रालोद गठबंधन चालीस फीसद वोट के क़रीब पंहुचकर भाजपा की आधी लोकसभा सीटें कम कर सकता है।
मंडल-कमंडल का माहौल पैदा करने के ख्याली पुलाव पकाती नजर आ रही सपा के जातिवाद के जवाब में भाजपा हिन्दुत्व का कितना तगड़ा कार्ड खेलेगी इस बात का अभी कोई अंदाजा भी नहीं लगा पा रहा है। काशी, मथुरा के मुद्दों की हवा के बीच अयोध्या में भव्य राममंदिर का 2024 से पहले निर्माण पूरा होना है।
सामान्य नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण बिल के तीर भी भाजपा के तरकश में तैयार हैं। सपा के शीर्ष नेताओं की कौन सी फाइल पर कौन सी एजेंसी काम तेज़ कर दें ये भी किसी को नहीं पता।
जाति के कार्ड के जवाब में भाजपा हिन्दुत्व की फिज़ा फैलाने और सनातनियों की जातियों को हिन्दुत्व के गुलदस्ते में सजाए रखी तो यूपी के विपक्षियों को ना माया मिलेगी ना राम, ना पिछड़े और ना ही अम्बेडकरवादी।
भाजपा के हिन्दुत्व, विकास और राष्ट्रवाद की धार को सपा जातिवाद के हथियार से कुंद नहीं कर सकी तो अपनी रही-सही ज़मीन भी को सकती है।
रामचरितमानस की चौपाईयों पर विवादऔर शूद्र होने के दावों की राजनीति के बीच धर्म-जाति की राजनीति को नापसंद करने वाली यूपी की जनता काफी आहत हैं। समाज का बड़ा तबका चाहता है कि धर्म और जाति की सियासत के बजाय आम इंसान की बुनियादी जरूरतों की बात हो। मंहगाई, बेरोजगारी, किसानों, नौजवानों की बात हो। विकास की जरूरत पर बल दिया जाए।