जन्माष्टमी स्पेशल: श्रीला प्रभुपाद

69 साल की उम्र में पहली बार विदेश गए, रास्ते में दो हार्ट अटैक आए, रशिया में नजरबंद भी किए गए, फिर भी दुनिया में 108 से ज्यादा कृष्ण मंदिर खड़े किए

बात तब की है, जब इस्कॉन का कोई अस्तित्व नहीं था। 69 साल की उम्र में ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जहाज जलदूत से अमेरिका जा रहे थे। अटलांटिक महासागर की लहरों पर तेजी से बढ़ते हुए जहाज में वे बीमार हुए। 23 अगस्त 1965 तारीख थी, जब जहाज में दो दिन में लगातार दो हार्ट अटैक उन्हें आए।

अमेरिका पहुंचे तो वहां कोई सहयोगी नहीं था। कुछ दिनों में बमुश्किल एक अमेरिकी युवा ने उनसे दीक्षा ली। रोज अमेरिका के बोस्टन में किराए के एक मकान में भगवत गीता पर व्याख्या देना, फिर अपने हाथ से बना प्रसाद बांटना और हर रविवार बोस्टन के टॉम्किन चौराहे पर खड़े होकर हरे कृष्ण नाम का संकीर्तन करना, ये उनका महीनों का रुटीन था।

धीरे-धीरे लोग जुड़ रहे थे। फिर एक दिन अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने प्रभुपाद जी के इस संकीर्तन पर एक लेख भी छापा। अमेरिकी यूथ उनसे जुड़ रहा था। कीर्तन में भाग ले रहा था। प्रसाद खा रहा था। करीब एक साल ये सिलसिला चला। फिर 11 जुलाई 1966 में उन्होंने इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ कृष्णा कॉन्सियशनेस यानी इस्कॉन को न्यूयॉर्क में रजिस्टर कराया और ऐसे इस्कॉन की शुरुआत हुई।

हरे कृष्णा संकीर्तन में विदेशी भक्तों के साथ श्रील् प्रभुपाद।

संयोगः कृष्ण भक्त का जन्म जन्माष्टमी के दूसरे दिन
ये संयोग ही है कि श्रील् प्रभुपाद ने दुनिया में श्रीकृष्ण की भक्ति का आंदोलन चलाया और उनका जन्म भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक दिन बाद हुआ। 1896 में 31 अगस्त को जन्माष्टमी थी, 1 सितंबर को श्रील् प्रभुपाद का जन्म हुआ। इस साल ये भी संयोग है कि जन्माष्टमी 30 अगस्त को है, 31 अगस्त को तिथि और 1 सितंबर को तारीख के अनुसार उनका जन्मदिन मनाया जाएगा। बेंगलुरू इस्कॉन के मुताबिक इस बार प्रभुपाद जी की 125वीं जयंती के मौके पर आयोजित वर्चुअल कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे।

दुनिया में 108 मंदिर बनवाए
श्रील् प्रभुपाद के रहते दुनियाभर में 108 कृष्ण मंदिर बने। अपने जीवन के अंतिम 10 सालों में उन्होंने इस्कॉन को ना सिर्फ स्थापित किया, बल्कि दुनियाभर में श्रीकृष्ण भक्ति का पूरा आंदोलन खड़ा किया। 1966 में न्यूयॉर्क में पहला मंदिर और 1975 में भारत का पहला मंदिर वृंदावन में बना। 14 नवंबर 1977 में उनकी मृत्यु तक 108 मंदिर बन चुके थे। इस समय इस्कॉन के दुनियाभर में कुल 600 मंदिर और सेंटर्स हैं।

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के साथ श्रील् प्रभुपाद। भारत सरकार ने उनके अध्यात्म की दिशा में किए गए कामों को काफी सराहा।

कोलकाता में जन्मे, गांधी के आंदोलनों से भी जुड़े
श्रील् प्रभुपाद का जन्म 1 सितंबर 1896 में कोलकाता के एक हिंदू परिवार में हुआ था। उनका नाम अभय चरण डे था। कोलकाता से ही कोई 100 किमी दूर मायापुर था, जो वैष्णव संत चैतन्य महाप्रभु का जन्मस्थान है। इस स्थान से उन्हें लगाव रहा। 1922 में वे वैष्णव संत भक्तिसिद्धांत सरस्वती से जुड़े। उन्हें गुरु बनाया। नया नाम मिला अभय चरणदास भक्तिवेदांत प्रभुपाद। 1930 में महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हुए।

1933 में गुरु भक्तिसिद्धांत स्वामी ने स्वामी प्रभुपाद से पश्चिमी देशों में कृष्ण भक्ति का आंदोलन खड़ा करने को कहा। इसके बाद स्वामी प्रभुपाद ने खुद को विदेशों में श्रीकृष्ण भक्ति प्रचार करने में लगा दिया, लेकिन इसका रास्ता आसान नहीं था। विदेश जाने का पहला मौका ही उन्हें 1965 में मिला।

1960-70 के दशक के हॉलीवुड सितारों में भी प्रभुपाद जी का आकर्षण देखा गया। हॉलीवुड के मशहूर संगीतकार जॉर्ज हैनरी भी प्रभुपाद जी के प्रशंसकों में से एक थे।

1918 में शादी, 3 बच्चे
श्रील् प्रभुपाद की शादी 1918 में 22 साल की उम्र में राधारानी देवी से हुई। उनके तीन बच्चे वृंदावन चंद्र डे, मथुरा मोहन डे और प्रयाग राज डे हैं। उनके एक भाई और दो बहनें भी थीं।

वृंदावन में एक कमरे में रहे, भगवत गीता का ट्रांसलेशन किया
कृष्ण भक्ति में घर-परिवार छोड़ चुके प्रभुपादजी को रहने के लिए वृंदावन के राधा-दामोदर मंदिर में एक कमरा मिला था। इसी में उनका दिन गुजरता था। शुरुआती दिन काफी संघर्षपूर्ण रहे। पैसों की किल्लत थी। ज्यादा लोग भी नहीं जुड़ पाए थे। इसी कमरे में उन्होंने भगवत गीता का संस्कृत से हिंदी और अंग्रेजी में ट्रांसलेशन शुरू किया।

1975 में भारत का पहला इस्कॉन मंदिर वृंदावन में बना। वृंदावन से अक्सर वे दिल्ली के चिप्पीवाड़ा इलाके में जाते थे। यहां रहकर वे अपनी पुस्तकों के प्रकाशन की व्यवस्था जुटाते थे। बाद में इसी जगह इस्कॉन का मंदिर भी बनाया गया।

यूएसए के बोस्टन का वो पेड़ जहां श्रील् प्रभुपाद खड़े होकर भगवत गीता पर उपदेश देते थे और कीर्तन करते थे। इस पेड़ का नाम उनकी याद में हरे कृष्णा ट्री रखा गया। आज भी इस्कॉन के भक्त इस पेड़ को देखने जाते हैं।

पहला मंदिर न्यूयॉर्क में, जहां रहते थे वहीं बना मंदिर
श्रील् प्रभुपाद बोस्टन से न्यूयॉर्क आ गए। यहां इस्कॉन को रजिस्टर्ड संस्था बनाया और श्रीकृष्ण का प्रचार शुरू किया। न्यूयॉर्क में 4 स्टोरफ्रंट नाम की जगह पर वे रहते थे, यहीं इस्कॉन का पहला मंदिर बना। न्यूयॉर्क में बहुत तेजी से अमेरिकी लोग उनसे जुड़े। 13 जुलाई 1966 को न्यूयॉर्क का पहला मंदिर बना।

रशिया में नजरबंद हुए, एक शिष्य बनाया उसी ने पूरे रशिया में 100 सेंटर खड़े किए
1970-71 में श्रील् प्रभुपाद पहली और आखिरी बार रशिया गए। उन दिनों वहां कम्युनिस्ट सरकार थी। संन्यासी के वेश में दो शिष्यों के साथ वे मास्को एयरपोर्ट पर उतरे और वेशभूषा के कारण ही उन्हें होटल में नजरबंद कर दिया गया। मास्को यूनिवर्सिटी में उनका लेक्चर था जो वे नहीं दे पाए।

शाकाहारी थे इसलिए फल वगैरह लाने के लिए उन्होंने अपने दोनों शिष्यों को मार्केट भेजा। शिष्यों की मुलाकात दो लोगों से हुई, एक भारतीय था और एक रशियन। दोनों प्रभुपादजी से मिलने होटल आए। करीब दो घंटे की मुलाकात हुई। जो रशियन लड़का था, नाम था इवान, वो प्रभुपाद जी से प्रभावित हो गया। वहीं होटल में ही दीक्षा ली।

इवान का उसी समय नया नाम रखा गया अनंत शांति दास। भगवत गीता की अंग्रेजी कॉपी लेकर वो निकला। फिर प्रभुपाद कभी रशिया नहीं गए, लेकिन अनंत शांति दास ने उनकी मुहिम को आगे बढ़ाया। कम्युनिस्ट सरकार ने इसे दबाने की भी कोशिश की। कुछ इस्कॉन के भक्त मारे भी गए, लेकिन रशिया में इस्कॉन के करीब 100 सेंटर बने। आज भी रशिया में हजारों कृष्ण भक्त हैं जो इस्कॉन से जुड़े हैं।

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