जानिए कैसे होता है पार्टी अध्यक्ष पद का चुनाव!
अगर किसी को 50% वोट प्रथम वरीयता में नहीं मिलते हैं तो जिसे सबसे कम वोट प्रथम वरीयता में मिलते हैं। उस उम्मीदवार का नाम
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह के कदम कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी की ओर बढ़ रहे हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ना के बाद दिग्विजय सिंह की दावेदारी और मजबूत हो गई है। माना जा रहा है कि शशि थरूर से उनका मुकाबला एकतरफा ही होगा, क्योंकि थरूर पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि वे चुनाव में सिर्फ इसलिए लड़ेंगे कि चुनाव हुए यह दिखे। दिग्विजय के पक्ष में सबसे मजबूत तथ्य यह है कि वे गांधी परिवार के बेहद करीबी और वफादारों में से एक हैं। दिग्विजय भी अपनी भावनाएं बता चुके हैं कि वे कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए कुछ भी कर सकते हैं। कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि अध्यक्ष पद के लिए अशोक गहलोत आलाकमान का प्लान ‘ए’ थे और दिग्विजय प्लान ‘बी।
दिग्विजय सिंह के कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनावी मैदान में आने से नया ट्विस्ट आ गया है। दिग्विजय ने गुरुवार को नामांकन फार्म लिया है। उन्होंने कहा है कि वे 30 सितंबर को नामांकन दाखिल करेंगे। उन्होंने यह कहते हुए सस्पेंस बरकरार रखा है कि इस मामले पर अभी तक गांधी परिवार से कोई बात नहीं हुई है। दिग्विजय के करीबियों के मुताबिक वे पार्टी आलाकमान की सहमति के बाद ही नामांकन करेंगे।
दिग्विजय सिंह के हाल ही के दिनों में दिए उन बयानों पर गौर कीजिए, जिसमें उन्होंने कभी भी साफ तौर पर यह नहीं कहा कि मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा। हर बार अध्यक्ष पद की दावेदारी के सवाल पर दो ही जवाब रहते थे – 1. मैं क्यों नहीं लड़ सकता। 2. 30 तारीख का इंतजार कीजिए। इन दोनों बयानों से उठ रहे सवालों का जवाब गुरुवार को उन्होंने नामांकन फार्म लेकर दे दिया है। फार्म लेने के बाद दिल्ली में लोगों से मिलने के दौरान उनकी बॉडी लैंग्वेज भी बहुत कुछ कह रही थी।
जहां से थरूर जीत की हैट्रिक लगा चुके वहां से दिग्विजय को समर्थन
थरूर भले तिरुवनंतपुरम से लोकसभा चुनाव लड़कर जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि स्थानीय कांग्रेस यूनिट का उन्हें बहुत समर्थन हासिल है। पार्टी की केरल यूनिट ने एक प्रस्ताव पास किया है कि वो उस उम्मीदवार का समर्थन करेंगे जिसे पार्टी का हाई कमान समर्थन दे रहा होगा। इससे साफ है कि केरल में थरूर को नहीं, दिग्विजय को समर्थन मिलेगा।
नामाकंन भरने के बाद कल प्रचार पर निकलेंगे दिग्विजय
कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि यदि दिग्विजय और शशि थरूर के बीच मुकाबला होता है, तो दोनों उम्मीदवार समर्थन जुटाने के लिए राज्यों में जाएंगे। माना जा रहा है कि दिग्विजय सिंह 30 सितंबर को नामांकन फाॅर्म जमा करने के बाद प्रदेशों के दौरे पर निकलेंगे।
कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने जा रहे दिग्विजय सिंह और शशि थरूर की दिल्ली में मुलाकात हुई है। दोनों की मुलाकात की ये तस्वीर शशि थरूर ने सोशल मीडिया पर शेयर की ।
प्रतिद्वंदियों की नहीं, दोस्ती की लड़ाई है हमारी: थरूर
दिग्विजय सिंह और शशि थरूर की दिल्ली में मुलाकात के बाद तस्वीर शेयर करते हुए शशि थरूर ने लिखा- मैं अध्यक्ष पद की उनकी उम्मीदवारी का स्वागत करता हूं। हमारी लड़ाई प्रतिद्वंदियों की नहीं, बल्कि दोस्ती की लड़ाई है। हम दोनों यही चाहते हैं कि प्रबल कोई भी हो, कांग्रेस ही जीते। दिग्विजय सिंह ने थरूर की पोस्ट को रिट्विट किया- उन्होंने लिखा कि मैं थरूर से सहमत हूं। हम दोनों सांप्रदायिक ताकतों से लड़ रहे हैं। हम दोनों गांधीवादी और नेहरू की विचारधारा पर विश्वास करते हैं।
कल नामांकन भरेंगे दिग्विजय सिंह
मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने जा रहे हैं। उन्होंने गुरुवार को नामांकन फॉर्म लिया। उन्होंने कहा कि वे कल (शुक्रवार) को नामांकन दाखिल करेंगे। मध्यप्रदेश से कांग्रेस के 12 विधायक उनके प्रस्तावक होंगे।
…तब जितेंद्र प्रसाद को बंद मिला था भोपाल कांग्रेस का दफ्तर
साल 2000 में जितेंद्र प्रसाद जब सोनिया गांधी के खिलाफ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़े थे, तो प्रचार के दौरान भोपाल का कांग्रेस दफ्तर ही उन्हें बंद मिला था। कई जगह उन्हें काले झंडे दिखाए गए थे। तब पीसीसी डेलिगेट (प्रतिनिधियों) को फोन करके बताया गया कि उन्हें किन्हें वोट करना है। उस चुनाव में सोनिया गांधी को जहां 7,448 वोट मिले। वहीं प्रसाद को कुल 94 वोट आए थे।
इससे पहले 1997 में जब शरद पवार और राजेश पायलट ने सीताराम केसरी के खिलाफ चुनाव लड़ा था, तो वो थोड़े प्रभावशाली थे। वो लोग कई जगह चुनाव प्रचार कर पाए, फिर भी सीताराम केसरी तकरीबन 70% वोट से चुनाव जीत गए थे। इस चुनाव में केसरी को जहां 6224 वोट मिले, तो पवार को 882 और पायलट को 354 वोट मिले थे।
जानिए, कांग्रेस में कैसे होता है अध्यक्ष पद का चुनाव?
कांग्रेस संविधान के मुताबिक पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव बाकायदा कुछ उसी तर्ज पर होता है, जैसे देश में चुनाव होते हैं। चुनाव के लिए सबसे पहले पार्टी केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण का गठन किया जाता है। प्राधिकरण के अध्यक्ष और टीम का फैसला कांग्रेस अध्यक्ष CWC की मदद से करता है। प्राधिकरण के गठन के बाद वह चुनाव का पूरा खाका और शेड्यूल तैयार करती है, जिसमें हर स्तर पर चयन की प्रक्रिया, नामांकन, नाम वापसी से लेकर, स्क्रूटनी, इलेक्शन, नतीजा और जीत के बाद विजेता को सर्टिफिकेट देने तक सबकी तारीख तय होती है।
MP के 487 PCC प्रतिनिधि करेंगे मतदान
यदि राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्विरोध नहीं चुने जाते हैं तो 8 अक्टूबर को मतदान होगा। जिसमें मध्य प्रदेश के 487 PCC डेलिगेट्स (प्रतिनिधि) भाग लेंगे। प्रदेश के हर ब्लॉक से एक प्रदेश प्रतिनिधि को चुना जाता है। जिसकी प्रक्रिया हो चुकी है। यदि दो उम्मीदवारों के बीच मुकाबला होता है तो ये डेलिगेट्स PCC भोपाल में वोटिंग करेंगे। यही प्रक्रिया हर राज्य व केंद्र शासित प्रदेश में होगी। वोटिंग के बाद मतपेटियां AICC(ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी) जाएंगी। जहां मतगणना होगी।
प्राधिकरण को अध्यक्ष के चुनाव की जिम्मेदारी
कांग्रेस पार्टी की संविधान के मुताबिक अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए सबसे पहले केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण के सदस्यों की नियुक्ति की जाती है। कांग्रेस वर्किंग कमेटी इस प्राधिकरण का गठन करती है, जिसमें 3 से 5 सदस्य होते हैं। इनमें से ही एक सदस्य को इसका चेयरमैन बनाया जाता है। प्राधिकरण का कार्यकाल तीन साल का होता है। अभी कांग्रेस नेता मुधुसूदन मिस्त्री अध्यक्ष हैं, जो गुजरात से आते हैं। यही प्राधिकरण प्रदेशों में चुनाव अथॉरिटी का गठन करती है, जो आगे जिला और ब्लॉक में चुनाव अथॉरिटी बनाते हैं।
चुनाव लड़ने के लिए प्रदेश कमेटी के 10 समर्थक, वह लड़ सकता है चुनाव
कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव कोई भी पार्टी सदस्य लड़ सकता है, जिसके पास प्रदेश कांग्रेस कमेटी के 10 डेलिग्रेट्स का समर्थन हो। इन्हें प्रस्तावक कहा जाता है।
अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए सबसे पहले एक रिटर्निंग अधिकारी नियुक्त किया जाता है। केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण चेयरमैन ही रिटर्निंग अधिकारी नियुक्त करता है।
किसी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के 10 सदस्य मिल कर किसी कांग्रेस नेता का नाम अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के लिए प्रस्तावित करते सकते हैं।
एक ही उम्मीदवार है तो 8 अक्टूबर को अध्यक्ष के नाम की घोषणा
सभी नामों को रिटर्निंग अधिकारी के सामने तय तारीख पर रखा जाता है। उनमें से कोई भी सात दिन के भीतर अपना नाम वापस लेना चाहे तो ले सकता है। अगर नाम वापस लेने के बाद अध्यक्ष पद के लिए केवल एक ही उम्मीदवार रहता है तो उसे औपचारिक तौर पर अध्यक्ष मान लिया जाता है। इस बार अगर एक ही नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस में रहता है तो 8 अक्टूबर को भी कांग्रेस के नए अध्यक्ष के नाम की घोषणा हो जाएगी।
दो या दो से ज्यादा उम्मीदवार होने पर
दो से ज्यादा लोग होते हैं, तो रिटर्निंग अधिकारी उन नामों को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पास भेजते हैं। वोटिंग वाले दिन प्रदेश कमेटी के सभी सदस्य उसमें हिस्सा लेते हैं। पीसीसी के प्रदेश मुख्यालय में वोटिंग पेपर और बैलेट बॉक्स से चुनाव होता है। अगर दो उम्मीदवार हैं, तो वोट देने वालों को किसी एक का नाम लिख कर बैलेट बॉक्स में डालना होता है।
यदि दो से ज्यादा उम्मीदवार हैं, तो वोट देने वाले को पहला दो प्रिफरेंस (वरीयता) 1 और 2 नंबर के जरिए लिखना होता है। दो से कम प्रिफरेंस लिखने वालों के वोट अमान्य करार दिए जाते हैं। हालांकि वोटिंग करने वाले दो से ज्यादा प्रिफरेंस दे सकते हैं। पीसीसी में जमा किए गए बैलेट बॉक्स को एआईसीसी भेजा जाता है।
ऐसे होती है वोटों की गिनती
एआईसीसी में बैलेट बॉक्स आने के बाद रिटर्निंग ऑफिसर के मौजूदगी में वोटों की गिनती शुरू की जाती है। सबसे पहले पहले प्रिफरेंस वाली वोटों की गिनती की जाती है।
जिस उम्मीदवार को 50% से ज्यादा वोट मिलते हैं, उसे अध्यक्ष घोषित कर दिया जाता है।
अगर किसी को 50% वोट प्रथम वरीयता में नहीं मिलते हैं तो जिसे सबसे कम वोट प्रथम वरीयता में मिलते हैं। उस उम्मीदवार का नाम लिस्ट से हटा दिया जाता है। इस तरह से ‘एलिमिनेशन’ के जरिए अध्यक्ष पद का चुनाव होता है। अंत में जिस उम्मीदवार के पास ज्यादा वोट बचते हैं, उसे अध्यक्ष घोषित कर दिया जाता है।