महंगाई पर मारक मॉनसून:खरीफ सीजन में पैदावार बढ़ सकती है, महंगाई में कमी आ सकती है: इंड-रा
मॉनसून सीजन में मूसलाधार बारिश होने से कुछ राज्यों में भले ही कुदरत का कहर बरपा हो, लेकिन इससे खरीफ सीजन में फसल की उपज बढ़ सकती है और महंगाई में कमी आ सकती है। यह बात इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च इंड-रा ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कही है। रेटिंग कंपनी ने कहा है कि बाजार में खरीफ फसल की आवक महंगाई को निचले लेवल पर बनाए रखेगी।
ऊंचे लेवल पर बने रहेंगे खाद्य तेलों के खुदरा दाम
इंड-रा ने कहा है कि रसोई तेलों के आयात शुल्क में कटौती का असर भी महंगाई पर देखने को मिलेगा लेकिन, उसके खुदरा दाम ऊंचे लेवल पर बने रहेंगे क्योंकि देश में जरूरत का लगभग 56% तेल बाहर से मंगाया जाता है। रेटिंग कंपनी अपनी रिपोर्ट में लिखती है, ‘इसलिए इंड-रा का अनुमान है कि इस वित्त वर्ष में औसत महंगाई दर 6% से नीचे बनी रह सकती है।’
मॉनसून में लॉन्ग पीरियड एवरेज का 99% बारिश
इस साल जून से सितंबर के बीच मॉनसून सीजन में लॉन्ग पीरियड एवरेज यानी LPA का 99% बारिश हुई। लेकिन, हर महीने अलग-अलग मात्रा में बारिश हुई और कहीं ज्यादा तो कहीं कम हुई। जून में LPA का 110%, जुलाई में 93%, अगस्त में 76% जबकि सितंबर में 135% बारिश हुई। बारिश को क्षेत्रवार देखें तो पूर्व और उत्तर-पूर्व भारत के अलावा उत्तर-पश्चिम भारत में कम बारिश हुई। इसके उलट मध्य और दक्षिण भारत में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई।
धान और दालों के बुआई रकबे में तेज उछाल
इस मॉनसून सीजन में असमान बारिश के बीच अच्छी बात यह रही है कि खरीफ की फसल रिकॉर्ड 11.22 करोड़ एकड़ में बोई गई है, जिसका पता 1 अक्टूबर के आंकड़ों से चलता है। इस सीजन में धान और दालों के बुआई रकबे में सालाना आधार पर तेज उछाल आया है, लेकिन तिलहन में 1.5% और मोटे अनाजों के बुआई रकबे में 2.7% की कमी आई है।
15.05 करोड़ टन तक जा सकती है फसलों की पैदावार
रेटिंग कंपनी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि बारिश के असमान वितरण के बावजूद इस खरीफ सीजन में बुआई रकबा कुल मिलाकर संतोषजनक रहा है। इसको देखते हुए उसके पहले एडवांस एस्टीमेट के मुताबिक, 2021-22 में खरीफ फसलों की पैदावार 15.05 करोड़ टन तक पहुंच सकती है।
कृषि क्षेत्र का ग्रॉस वैल्यू ऐडेड 3-3.5% रह सकता है
इंड-रा ने रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि इस साल बारिश के वितरण के हिसाब से इस वित्त वर्ष खेती का ग्रॉस वैल्यू ऐडेड यानी GVA 3-3.5% की रेंज में रह सकता है। पिछले कई वर्षों में खेती का योगदान इंडियन इकोनॉमी में घटा है लेकिन खुदरा महंगाई को देखते हुए इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है क्योंकि उसके इंडेक्स में फूड आइटम का हिस्सा काफी है।
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