बड़े अच्छे लगते है ये धरती, ये नदिया, ये रैना और सुष्मिता सेन…
रिपोर्ट : ए॰ एम॰ कुणाल
सुष्मिता सेन ने राम माधवानी फिल्म्स और हॉटस्टार की वेब सीरीज़ “आर्या” के ज़रिए एक दशक बाद अभिनय की दुनिया में वापसी की है। इससे पहले 2010 में आयी “नो प्रॉब्लम” उनकी आख़िरी हिंदी फ़िल्म है। वैसे 2015 में बंगाली फ़िल्म “निर्बाक” में काम किया था। आर्या डच टीवी सीरीज़ “पेनोज़ा” का रीमेक है। सुष्मिता मेन रोल में हैं। सुष्मिता के अलावा चंद्रचूड़ सिंह और जयंत कृपलानी ने भी लम्बे समय बाद अभिनय की दुनिया में वापसी की है।
सुष्मिता सेन ने इस सीरीज के साथ दमदार वापसी की है। इससे बेहतर कम बैक नहीं हो सकता था। आर्या एक क्राइम ड्रामा है जिसे कुल 9 एपिसोड है। हर एक एपिसोड करीब 50 मिनट का है। हर एक एपिसोड आपको अंत तक बांधे रखने में सफल रहा है। ये वेब सीरीज एक क्राइम ड्रामा है, जिसकी कहानी राजस्थान की पृष्ठभूमि पर गड़ा गया है।
राजस्थान के गॉडफादर जोरावर (जयंत कृपलानी) का दवा का कारोबार है। जिसकी आड़ में वह गैरकानूनी काम करता है। वो अफीम की खेती करता है और उससे दवाइयों के साथ-साथ ड्रग्स भी सप्लाई करता है। लेकिन उम्र ज़्यादा हो जाने के बाद काम ज़िम्मेदारी अपने दामाद तेज (चंद्रचूड़ सिंह) को सौंप देता है। पर जब काम के बारे में जब ज़ोरावर की बेटी आर्या (सुष्मिता सेन) को पता चलता है तो वह अपने पति तेज (चंद्रचूड़ सिंह)पर दबाव बनाती है कि ये धंधा छोड़ दे। तेज के दो पार्टनर है, साला संग्राम (अंकुर भाटिया) और दोस्त जवाहर (नमित दास)। तेज अफीम से दवाइयां बनाने के काम को आगे बढ़ाता है और कम फ़ायदे के काम से भी खुश है।पर उसका साला मोटा गेम के चक्कर में रहता है। संग्राम 300 करोड़ की हीरोइन की एक बड़ी डील का ऑफ़र लाता है, जो माल उनके प्रतिद्वंदी शेखावत (मनीष चौधरी) का होता है।इस काम में ख़तरा देख तेज मना कर देता है।अपने दोनों पार्टनर को छोड़ कर न्यूजीलैंड जाने का प्लान बनाता है पर उसकी हत्या हो जाती है। 300 करोड़ के डील के चलते तेज अपनी जान गंवा बैठता है और संग्राम जेल पहुंच जाता है। जबकि तीसरा पार्टनर जवाहर के पीछे शेखावत के गुंडे पड़ जाते है। अपनी जान बचाने के लिए वह अपनो को धोखा देता है।
शेखावत अपना माल वापस लेने के लिए आर्या पर दबाव बनाता है। अपने बच्चों और परिवार को बचाने के लिए आखिरकार आर्या वो करती है जिससे वो हमेशा दूर भागने की कोशिश करती रही। इस काम में उसके पिता जोरावर का एक बेहद खास आदमी दौलत (सिकंदर खेर) साथ देता है। दौलत के साथ मिल कर आर्या न केवल अपना धंधा सम्भालती है बल्कि नॉरकॉटिक्स डिपॉर्टमेंट के डीसीपी खान (विकास कुमार) और शेखावत (मनीष चौधरी) से टक्कर भी लेती है।
“आर्या” में पूरा फ़ोकस सुष्मिता सेन पर है लेकिन हर एक किरदार का इस कहानी में अहम स्थान है, जिसके वग़ैर नौ एपिसोड खिंच पाना मुश्किल है। विश्वजीत प्रधान , माया सरो, सुगंधा गर्ग, आशा सैनी अपना छाप छोड़ने में सफल रहे है। इस सीरीज़ में हर एक किरदार दर्शकों भाएगा। वह चाहे बाल कलाकार ही क्यों न हो। सुष्मिता सेन के बच्चों का किरदार निभाने वाले वृति, वीरेन और प्रत्यक्ष ने भी अच्छा काम किया है। हालाँकि उसके कारण कहानी स्लो चलती है पर निर्देशक ने उसकी प्रवाह न कर आम क्राइम ड्रामा से कुछ अलग करने की कोशिश की है। दूसरे वेब सीरीज़ की तुलना में हिंसा का नंगा नाच और अश्लीलता का मसाला परोसने की कोशिश नहीं की गई है। इसके लिए निर्देशक राम माधवनी- संदीप मोदी -विनोद रावत की तारीफ़ करनी पड़ेगी।
सुष्मिता सेन ने “गॉडमदर” के साथ-साथ
“मदर इंडिया” की भूमिका भी बखूबी से निभाया है। अपने पति को खोने के बाद धंधा के साथ-साथ तीन बच्चों की ज़िम्मेदारी को मुश्किल हालात में अच्छे से संभालती है। पिता की मौत को अपनी आँखों से देख चुका उसका छोटा बेटा हमेशा सदमे में रहता है। माँ-बेटे का सीन काफ़ी भावुक है। जिस बेटी की जान बचाने के लिए वह क्राइम की दुनिया में कदम रखती है, वही बेटी उससे नफ़रत करती है।एक तरफ़ धंधा, दूसरी तरफ़ हाथ से निकलते बच्चे, दोनों मोर्चे पर सुष्मिता सेन को दोहरी भूमिका निभानी पड़ती है , जिसमें वह कामयाब रही है।
चंद्रचूड़ सिंह अपने छोटी भूमिका के बावजूद काफ़ी असरदार लगे है। दूसरे एपिसोड के बाद लग रहा था कि फ्लैशबैक में उनकी कहानी होगी पर ऐसा नहीं होता।
चंद्रचूड़ सिंह के मुक़ाबले जयंत कृपलानी की भूमिका काफ़ी दमदार है। कहानी के मुख्य सूत्रधार के रूप में अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है। जयंत कृपलानी को एक डॉन की भूमिका में देख कर दर्शक अचंभित रह जायेंगे।
जयंत कृपलानी और सुष्मिता सेन के राइट हैंड की भूमिका में सिकंदर खेर शुरू से अंत तक अपने किरदार में नज़र आते है। उनका सबसे बेहतर सीन वह है जब जवाहर को इसलिए गोली नहीं मारते है क्योंकि जवाहर के साथ उसका बेटा होता है। उस सीन में दिखाया गया है कि एक कातिल के भी कुछ सिद्धांत होते है।
अमेरिकन कलाकार एलेक्स ओनिल ने भी अच्छा काम किया है । एक टीन एज की लड़की के साथ किस तरह से डील करते है वह देखने लायक़ है। गीता के श्लोक का फ़्यूज़न करने वाला शांत स्वभाव का व्यक्ति अंत में कैसे अपराधी बन जाता है, ये देखना दिलचस्प होगा।
“आर्या” का संवाद काफ़ी अच्छा है। संदीप श्रीवास्तव और अनु चौधरी ने कहानी में जो ख़ालीपन छोड़ा था, दमदार संवाद ने उसे भरने का काम किया है। कहानी की जान उसका संवाद है। ख़ासकर के जयंत कृपलानी और सुष्मिता सेन के बीच का संवाद।
इसमें भगवत गीता के शब्दों का फ़्यूज़न, एक नई पहल है, जो खुले सोच वाले दर्शकों को अच्छा लगेगा। हो सकता है कुछ लोग इस पर विवाद भी खड़ा कर सकते है।
आर्या के कई एपिसोड कसे हुए है तो कुछ में कहानी को खिंचने का प्रयास किया गया है। ऐसा लगता है निर्देशक को कहानी से ज़्यादा कहानी के पात्रों से प्यार है। सबको ख़ुश रखने की कोशिश नज़र आती है। जिसके कारण कहानी काफ़ी स्लो है।ख़ासकर पेन ड्राइव का पासवर्ड पता करने में पूरे के पूरे एपिसोड पार हो जाते है। जबकि दर्शकों को भी पता होता है कि पासवर्ड क्या है। अंत में तो यही कहेंगे कि “बड़े अच्छे लगते है ..ये धरती, ये नदिया, ये रैना और सुष्मिता सेन…..