कुंडली विश्लेषण : किन ग्रहों के कारण स्त्री को नहीं मिलता पति का साथ ! क्या है वैधव्य योग ?

फलित ज्योतिष में बारह भाव, 12 राशियां और 27 नक्षत्रों से मनुष्य के जीवन में होने वाली घटनाओं का अनुमान लगाया जाता है।

जीवन में विवाह एक महत्वपूर्ण घटना है और ज्योतिष में इसका अनुमान सप्तम भाव और सप्तम के कारक गुरु से किया जाता है। ज्योतिष के लगभग सभी ग्रंथों में सप्तम भाव को लेकर कई सूत्र दिए गए है जिनमें एक है पति की मृत्यु का योग।

एक स्त्री की कुंडली में पति का कारक गुरु होता है और उसके जीवनसाथी के सौभाग्य का विचार उसके आठवें भाव से किया जाता है। फलित के नियम के अनुसार शुक्र जीवन में एक से अधिक विवाह का कारक माना जाता है।

सप्तम और अष्ठम भाव के स्वामी अगर बलहीन होकर केंद्र में आ जाए या फिर स्त्री की कुंडली में सप्तम और सप्तमेश का संबंध मंगल सूर्य राहु से हो जाए तो उस स्त्री को अपने पति से बिछोह का सामना करना पड़ता है।

फलित के इस नियम को हम एक उदाहरण कुंडली से समझ सकते है। यह कुंडली एक ऐसी महिला की है जिसके पति की मृत्यु हो चुकी है और अब यह दुसरा विवाह करना चाह रही है।

इस महिला की कुंडली को देखे तो ये वृश्चिक लग्न की कुंडली है और लग्न का स्वामी मंगल पाप ग्रह शनि के साथ कुटुंब भाव में बैठा है।

मांगलिक योग में विद्वानों का कथन है की स्त्री की कुंडली में द्वितीय भाव विशेष विचारणीय है और इसमें मंगल की पाप ग्रह से युति उसके सौभाग्य का नाश करती है।

इस कुंडली में शनि लग्नेश मंगल का शत्रु भी है जिसके कारण स्त्री की परिवारजनों से उतनी नहीं बनती। वृश्चिक लग्न की कुंडली के लिए गुरु प्रबल मारकेश का काम करता है क्योंकि उसकी मूल त्रिकोण राशि धनु दूसरे भाव में है।

जैसा की फलित का नियम है की स्त्री की कुंडली में पति का कारक गुरु है और इस कुंडली में वो आठवें भाव में यानी अशुभ भाव में है। इस आठवें भाव में बैठे मारकेश गुरु पर मंगल शनि का सीधा प्रभाव है।

हालांकि गुरु की सप्तम दृष्टि के प्रभाव से जातिका धनी है। इस जातिका की कुंडली में मंगल और गुरु की अशुभ स्थिति के साथ सप्तम भाव भी पीड़ित है।

इस कुंडली में सप्तम शुक्र अकारक बुध और पाप ग्रह राहु के साथ है। बुध और राहु के अंश लगभग समान होने के कारण सप्तम भाव का कोई भी शुभ फल जातिका को नहीं मिला।

वृश्चिक लग्न की कुंडली में बुध आठवें और ग्याहरवें भाव का स्वामी होने से अकारक का फल करता है और सप्तम के स्वामी के साथ उसकी युति होने के कारण उसने सप्तम भाव के शुभ फलों को नष्ट कर दिया।

फलित का सर्वमान्य नियम है कि सप्तम भाव का स्वामी अगर तीसरें, छठे और ग्यारहवें भाव में पाप ग्रह या अकारक ग्रह से पीड़ित हो तो उसे शुभ फल प्राप्त नहीं होता है।

इस महिला की कुंडली में सौभाग्य के कारक मंगल का शनि से पीड़ित होना, पति के कारक गुरु का अशुभ भाव में जाकर पाप ग्रह के प्रभाव में आना और सप्तमेश शुक्र का एक से अधिक ग्रहों के साथ होने के कारण पति की मृत्यु और उसके बाद विवाह का योग बनता हुआ दिखाई दे रहा है।

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