आज का इतिहास गैलीलियो
412 साल पहले आए टेलिस्कोप से 50 मील दूर तक साफ-साफ दिखा, गैलीलियो के इस आविष्कार ने ब्रह्मांड को देखने का तरीका बदल दिया
गैलीलियो गैलिली को फादर ऑफ मॉडर्न फिजिक्स भी कहा जाता है। आज ही के दिन गैलीलियो ने अपना टेलिस्कोप वेनिस के सीनेट सदस्यों के सामने पेश किया था, जिसने ब्रह्मांड और ग्रहों को लेकर आम लोगों की समझ को पूरी तरह बदल दिया था।
15 फरवरी 1564 को इटली में गैलीलियो का जन्म हुआ। उन्होंने पिसा यूनिवर्सिटी से मेडिसिन की पढ़ाई की, लेकिन उनका मन तो गणित में लगता था, इसलिए अपने पिता की इच्छा के खिलाफ उन्होंने गणित में ही करियर बनाने की ठानी। हालांकि गैलीलियो ने पढ़ाई पूरी किए बिना ही यूनिवर्सिटी छोड़ दी और गणित और फिलॉसफी पढ़ाने लगे।
अगले दो दशकों तक वे गति और वजन मापने की छोटी इकाई पर काम करते रहे। इस दौरान अपने काम की वजह से गैलीलियो प्रसिद्ध होने लगे। उन्हें यूनिवर्सिटी में बतौर गेस्ट लेक्चरर बुलाया जाने लगा। इसके बाद वे यूनिवर्सिटी ऑफ पिसा में प्रोफेसर नियुक्त कर दिए गए और कुछ साल बाद यूनिवर्सिटी ऑफ पदुआ में भी पढ़ाने लगे।
साल 1609 में उन्हें खबर मिली कि नीदरलैंड में टेलिस्कोप का आविष्कार हो गया है। इस टेलिस्कोप को हेंस लिपरशी नाम के एक शख्स ने बनाया था जिसका नीदरलैंड में चश्मे बनाने का कारोबार था। चश्मे बनाते हुए उसने अलग-अलग लेंस को मिलाकर टेलिस्कोप बना लिया था।
गैलीलियो भी टेलिस्कोप बनाने में जुट गए और उन्होंने हेंस लिपरशी के बनाए टेलिस्कोप से भी ज्यादा शक्तिशाली टेलिस्कोप बना दिया। ये टेलिस्कोप किसी भी वस्तु को 3 गुना तक ज्यादा बड़ा दिखा सकता था। उन्होंने लेंस के कॉम्बिनेशन में बदलाव करते हुए इसकी शक्ति को 8 गुना तक बढ़ा दिया था।
इटली के फ्लोरेंस शहर में साइंस म्यूजियम में रखे गैलीलियो के दो टेलिस्कोप।
25 अगस्त 1609 को इस टेलिस्कोप को वेनिस की सीनेट सदस्यों के सामने पेश किया गया। सीनेट के सदस्यों ने एक घंटाघर से टेलिस्कोप के जरिए दूर-दूर की चीजों को देखा। सबसे पहले 35 मील दूर टॉवर ऑफ सेंट गिस्टीना को टेलिस्कोप के जरिए देखा गया। फिर टेलिस्कोप को घुमाते हुए पश्चिम में ट्रेविसो और दक्षिण में कोनिग्लियानो शहर को देखा गया जो कि 50 मील दूर था।
इसके बाद टेलिस्कोप को 50 मील से भी ज्यादा दूर मुरानो शहर की ओर घुमाया गया। यहां पर सीनेट सदस्यों ने देखा कि सेन गियाकोमो चर्च में एक व्यक्ति प्रार्थना करने जा रहा है। मीलों दूर की चीजें साफ-साफ देखकर सीनेट सदस्य दंग रह गए। वे इतने खुश हुए कि उन्होंने गैलीलियो की सैलरी दोगुना कर दी।
इसके बाद गैलीलियो अपने टेलिस्कोप के जरिए ग्रहों और ब्रह्मांड की स्टडी करने लगे। उन्होंने टेलिस्कोप से चांद, सूरज, बृहस्पति और शुक्र ग्रह का बारीकी से अध्ययन किया। इस स्टडी के आधार पर उन्होंने 1610 में ‘स्टारी मैसेंजर’ नामक किताब लिखी।
इस किताब में ब्रह्मांड के नए-नए पहलुओं को पहली बार दुनिया के सामने रखा। उन्होंने बताया कि चांद की सतह समतल न होकर उबड़-खाबड़ है, बृहस्पति ग्रह का अपना अलग चांद है और चांद के अलग-अलग फेज हैं, जो बदलते रहते हैं।
इसके बाद गैलीलियो लगातार ब्रह्मांड का अध्ययन करते रहे। उन्होंने कहा कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है। इस वजह से चर्च ने उन पर विधर्मी होने का मुकदमा चलाया और उन्हें नजरबंद कर दिया गया। अपनी मौत तक गैलीलियो नजरबंदी में ही रहे।
दो महान वैज्ञानिकों का निधन आज ही के दिन हुआ
25 अगस्त 1819 को जेम्स वाट और 25 अगस्त 1867 को माइकल फैराडे का निधन हुआ था। इन दोनों ने अपने आविष्कारों से हमारा जीवन बदल दिया। इन दोनों वैज्ञानिकों का शुरुआती जीवन संघर्षों में गुजरा, लेकिन संघर्षों से टक्कर लेते हुए दोनों ने इतनी तरक्की की कि आज दोनों का नाम इतिहास में दर्ज है।
फैराडे एक ब्रिटिश वैज्ञानिक थे, जिन्होंने इलेक्ट्रो-कैमिस्ट्री और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन के बारे में दुनिया को बताया था। फैराडे की थ्योरी पर ही फिलहाल इलेक्ट्रिक मोटर और डायनेमो काम करते हैं। फैराडे ने खुद बहुत कम स्कूल शिक्षा प्राप्त की थी, लेकिन आज उनके सिद्धांतों को हर स्कूली बच्चा जरूर पढ़ता है। फैराडे ने कैमिस्ट्री में बेंजीन जैसे महत्वपूर्ण कैमिकल कंपाउंड की खोज की।
अपनी लैब में काम करते हुए फैराडे। सोर्स – साइंस हिस्ट्री इंस्टीट्यूट
25 अगस्त 1819 को जेम्स वाट का भी निधन हुआ था। उनके बनाए स्टीम इंजन ने रेलगाड़ी को इतनी रफ्तार दी कि पूरी दुनिया औद्योगिक क्रांति की पटरी पर दौड़ पड़ी।
जेम्स वाट 17 साल के थे, तभी उनकी मां का निधन हो गया। उनके पिता को भी व्यापार में खासा नुकसान उठाना पड़ा। मजबूरी में जेम्स वाट अलग-अलग काम करने लगे। उन्होंने अपनी एक छोटी वर्कशॉप बनाई और उसी में वे मशीनें ठीक किया करते। एक बार उनके पास एक न्यूकोमेन इंजन सुधरने के लिए आया। वाट ने देखा कि इस इंजन में पानी को भाप में बदलने के लिए खासी ऊर्जा का नुकसान हो रहा है। उन्होंने इंजन में एक अलग कंडेंसर लगा दिया। इससे ऊर्जा भी कम खर्च होने लगी और इंजन में बार-बार पानी डालने से भी छुटकारा मिला। इस तरह दुनिया को जेम्स वाट का बनाया भाप का इंजन मिला। बाद में जेम्स वाट ने इस इंजन में कई सुधार किए।
जेम्स वाट की वर्कशॉप। सोर्स – साइंस म्यूजियम लंदन
25 अगस्त को इतिहास में इन महत्वपूर्ण घटनाओं की वजह से भी याद किया जाता है…
2003: मुंबई में 2 टैक्सी धमाकों में 44 लोगों की मौत हुई और करीब 150 लोग घायल हुए।
2001: ऑस्ट्रेलिया के लेग स्पिनर शेनवार्न ने टेस्ट क्रिकेट में 400 टेस्ट विकेट लिए।
1991: जर्मनी के माइकल शूमाकर ने फॉर्मूला वन रेसिंग में डेब्यू किया।
1957: भारतीय पोलो टीम ने वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतकर इतिहास रचा।
1917: ब्रिटिश इंडिया आर्मी में सेवाएं दे रहे 7 भारतीयों को पहली बार किंग्स कमीशन मिला।
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