आज का इतिहास: कहानी दूरदर्शन की
एक्सपेरिमेंटल टीवी से शुरू हुआ दूरदर्शन रामायण-महाभारत से घर-घर पहुंचा, आज देश का सबसे बड़ा ब्रॉडकास्टर
आज आप जब भी टीवी चालू करेंगे, कोई न कोई प्रोग्राम आपको जरूर मिल जाएगा। सैकड़ों टीवी चैनलों पर दिनभर अलग-अलग तरह के प्रोग्राम आते रहते हैं, लेकिन आज से कुछ दशकों पहले स्थिति ऐसी नहीं थी। भारत में आज ही के दिन 1959 में दूरदर्शन शुरू हुआ था। शुरुआत में दूरदर्शन पर हफ्ते में केवल 3 दिन ही प्रोग्राम ब्रॉडकास्ट किए जाते थे, वो भी केवल आधा घंटे के लिए।
भारत में दूरदर्शन की शुरुआत एक्सपेरिमेंट के तौर पर हुई थी और इसे नाम दिया गया था – टेलीविजन इंडिया। शुरुआत में स्कूली बच्चों और किसानों के लिए शैक्षणिक कार्यक्रम प्रसारित किए जाते थे और इसका संचालन ऑल इंडिया रेडियो करता था। 1965 से रोजाना कार्यक्रम प्रसारित किए जाने लगे।
1975 में देश के 6 राज्यों में सैटेलाइट इन्स्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट (SITE) शुरू किया गया। इन राज्यों में सामुदायिक टेलीविजन सेट लगाए गए। 1976 में दूरदर्शन ऑल इंडिया रेडियो से अलग हो गया।
1982 का साल भारत में टीवी के लिए महत्वपूर्ण था। इसी साल दूरदर्शन ने इनसैट-1 के जरिए पहली बार नेशनल ब्रॉडकास्ट किया। एशियाई खेलों के प्रसारण ने तो दूरदर्शन की लोकप्रियता को कई गुना बढ़ा दिया था। यहीं से टीवी का कायापलट हुआ। नए-नए प्रोग्राम बनने लगे। धीरे-धीरे सुबह और फिर दोपहर को प्रोग्राम प्रसारित होने लगे। शाम को रोज प्रसारित होने वाला कृषि दर्शन, हफ्ते में दो बार चित्रहार और रविवार को आने वाली रंगोली की लोकप्रियता की बराबरी आज का कोई प्रोग्राम नहीं कर सकता। 1966 में शुरू हुए कृषि दर्शन का योगदान देश में हरित क्रांति लाने में भी रहा है।

अप्रैल 2020 में रामायण का दूरदर्शन पर दोबारा ब्रॉडकास्ट किया गया। 16 अप्रैल 2020 को रामायण को 7.7 करोड़ लोगों ने देखा था, जो किसी भी इंटरटेनमेंट शो को एक दिन में मिली सबसे ज्यादा व्यूअरशिप है।
एक्सपेरिमेंटल टीवी के तौर पर शुरू हुए दूरदर्शन के आज 34 सैटेलाइट चैनल हैं। दूरदर्शन के पास देशभर में 66 स्टूडियो हैं, जिनमें से 17 राज्यों की राजधानियों में हैं और बाकी 49 अलग-अलग शहरों में हैं। दूरदर्शन देश का सबसे बड़ा ब्रॉडकास्टर है।
आज इंजीनियर्स डे
आज इंजीनियर्स डे है, जिसे मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के जन्मदिन पर मनाया जाता है। उनका जन्म 15 सितंबर 1861 को कर्नाटक में कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुका में हुआ था। उनके पिता श्रीनिवास शास्त्री संस्कृत के विद्वान और आयुर्वेद चिकित्सक थे। वर्ष 1883 में इंजीनियरिंग की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करने वाले एम. विश्वेश्वरैया का पसंदीदा विषय सिविल इंजीनियरिंग था। करियर के आरंभिक दौर में ही एम. विश्वेश्वरैया ने कोल्हापुर, बेलगाम, धारवाड़, बीजापुर, अहमदाबाद एवं पूना समेत कई शहरों में जल आपूर्ति परियोजनाओं पर खूब काम किया था।
1960 में भारत सरकार ने विश्वेश्वरैया पर डाक टिकट जारी किया था।
1909 में उन्हें मैसूर राज्य का मुख्य अभियंता नियुक्त किया गया। वे रेलवे सचिव भी थे। कृष्णराज सागर बांध के निर्माण के कारण मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का नाम पूरे विश्व में सबसे अधिक चर्चा में रहा था। बांध के स्वचलित दरवाजों की जिस तकनीक का इस्तेमाल किया, उसे यूरोप सहित विश्व के अन्य देशों ने भी अपनाया। विश्वेश्वरैया औद्योगिक विकास के समर्थक थे। वे उन शुरुआती लोगों में से एक थे, जिन्होंने बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में धातुकर्म विभाग, वैमानिकी, औद्योगिक दहन एवं इंजीनियरिंग जैसे अनेक नए विभागों को आरंभ करने का स्वप्न देखा था। 1955 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
1894: चीन और जापान के बीच शुरू हुआ था पहला युद्ध
1894-95 में चीन-जापान युद्ध कोरिया पर प्रशासनिक तथा सैन्य नियंत्रण को लेकर लड़ा गया था। जापान की मेइजी सेना इसमें विजयी हुई थी जिसके चलते कोरिया और ताइवान का नियंत्रण जापान के हाथ में चला गया। इस युद्ध में हार के कारण चीन को जापान के आधुनिकीकरण का लाभ समझ में आया और बाद में चिंग राजवंश के खिलाफ 1911 में क्रांति हुई। जापान ने अपने साम्राज्यवाद का मुख्य लक्ष्य चीन को बनाया और सर्वप्रथम कोरिया में उसने चीन के साथ अपनी शक्ति का प्रयोग किया।
कोरिया अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से जापान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। इसलिए कोरिया प्रायद्वीप में जापान की बहुत रुचि थी। चीन के मंचू सम्राटों ने 17वीं शताब्दी में कोरिया पर अधिकार कर लिया था और तभी से कोरिया चीन का अधीन प्रदेश माना जाता था। कोरिया का स्वतंत्र राजा चीन के सम्राट को अपना सबकुछ मानता था। इस तरह कोरिया का राज्य चीन के एक संरक्षित राज्य के समान था। कोरिया प्रायद्वीप में जापान का परंपरागत स्वार्थ था जो इस युद्ध का कारण बना।
15 सितंबर के दिन को इतिहास में और किन-किन महत्वपूर्ण घटनाओं की वजह से याद किया जाता है…
2004ः ब्रिटिश नागरिक गुरिंदर चड्ढा को ‘वुमन आफ द ईयर’ सम्मान।
2003ः सिंगापुर के मुद्दे पर विकासशील देशों के भड़क उठने से डब्ल्यूटीओ वार्ता विफल।
2002ः न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के अवसर पर भारत, चीन एवं रूस के विदेश मंत्रियों की बैठक आयोजित।
2001ः अमेरिकी सीनेट ने राष्ट्रपति को अफगानिस्तान पर सैनिक कार्यवाही की मंजूरी दी।
1981ः वानुअतु संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बना।
1982 : लेबनान के निर्वाचित राष्ट्रपति बशीर गेमायेल की पदासीन होने से पहले ही बम विस्फोट में हत्या।
1971ः हरी-भरी और शांति पूर्ण दुनिया के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध ग्रीन पीस की स्थापना की गई।
1948ः स्वतंत्र भारत का पहला ध्वजपोत आईएनएस दिल्ली बंबई (अब मुंबई) के बंदरगाह पर पहुंचा।
1927 : प्रसिद्ध कवि एवं साहित्यकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म हुआ।