आज का इतिहास
76 साल पहले दुनिया ने पहली बार एटॉमिक हथियारों का विनाशक रूप देखा, अमेरिकी हमले से तबाह हो गए थे जापान के 2 शहर
साल 1945। दूसरे विश्वयुद्ध में मित्र देशों की जीत लगभग तय हो चुकी थी। जर्मनी ने आत्मसमर्पण कर दिया था और अब केवल जापान ही ऐसा देश था जो मित्र देशों को टक्कर दे रहा था। जुलाई 1945 में अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और सोवियत संघ के नेता जोसेफ स्टालिन जर्मनी के शहर पोट्सडम में मिले। यहीं पर ट्रूमैन और चर्चिल के बीच इस बात पर सहमति बनी कि अगर जापान तत्काल बिना किसी शर्त के समर्पण नहीं करता है तो उसके खिलाफ ‘कड़ा कदम’ उठाया जाएगा।
6 अगस्त 1945 की सुबह जापान के लिए वो त्रासदी लाने वाली थी जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। सुबह के 8 बज रहे थे। जापानी लोग काम करने पहुंच चुके थे। तभी हिरोशिमा शहर के ऊपर अमेरिकी विमानों की गड़गड़ाहट गूंजने लगी। इनमें से एक विमान में 3.5 मीटर लंबा, 4 टन वजनी और 20 हजार TNT के बराबर ऊर्जा वाला बम तबाही मचाने को तैयार था। इसका नाम था- लिटिल बॉय।
इसे एनोला गे नाम के विमान में लोड किया गया। इस विमान को पायलट पॉल टिबेट्स उड़ा रहे थे। बम का लक्ष्य हिरोशिमा का AOE ब्रिज था। सुबह 8 बजकर 15 मिनट पर विमान से बम गिरा और 43 सेकेंड बाद अपने लक्ष्य से कुछ दूर शीमा क्लीनिक के ऊपर जाकर फटा।
हमले के बाद पूरा हिरोशिमा शहर समतल जमीन में तब्दील हो गया।
इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, सब कुछ मिट्टी में मिल गया। तापमान 10 लाख डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर पहुंच गया। बम की जद में जो कोई भी आया, राख हो गया। सेकेंड्स में ही 80 हजार लोगों की मौत हो गई।
इसी के साथ 3 लाख से भी ज्यादा आबादी वाला ये शहर तबाह हो गया। हिरोशिमा जापान का 7वां सबसे बड़ा शहर था। साथ ही यहां पर सेकेंड आर्मी और चुगोकू रीजनल आर्मी का हेडक्वार्टर भी था। सैन्य ठिकानों की वजह से ये शहर अमेरिका के निशाने पर था।
जापान इस हमले से संभल पाता, इससे पहले ही अमेरिका ने 9 अगस्त को नागासाकी में दूसरा परमाणु बम गिरा दिया। इसका नाम फेटमैन था। 3 दिन के भीतर हुए इन दो हमलों से जापान पूरी तरह बर्बाद हो गया। मरने वालों का सटीक आंकड़ा आज तक पता नहीं चला। माना जाता है कि हिरोशिमा में 1.40 लाख और नागासाकी में करीब 70 हजार लोग मारे गए। इसके अलावा हजारों लोग घायल हुए, एटॉमिक रेडिएशन का शिकार हो गए और उन्हें कैंसर भी हो गया। जापान के लोगों में आज भी इस त्रासदी के जख्म मौजूद हैं।