अयोध्या मामले में हिंदू पक्ष ने इस्तेमाल की मुस्लिम पक्षकार की दलील!
अयोध्या मामले में मध्यस्थता की कोशिश नाकाम होने के बाद 6 अगस्त से सुप्रीम कोर्ट में नियमित सुनवाई चल रही है | सुनवाई के दौरान बहस में कई दिलचस्प तथ्य सामने आ रहे हैं | पांचवें दिन की सुनवाई शुरू हुई तो बहस की शुरुआत रामलला विराजमान की ओर से वरिष्ठ वकील परासरन ने की | सुनवाई के दौरान वकीलों की बात का जवाब देते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आपका दुनिया देखने का नजरिया सिर्फ आपका है | ये दुनिया का एकमात्र नजरिया नहीं हो सकता | जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एक नजरिया ये भी है कि स्थान खुद में ईश्वर है और दूसरा है कि वहां पर हमें पूजा करने का हक मिलना चाहिए | हमें इन दोनों को देखना होगा | साथ ही कोर्ट ने रामलला विराजमान से जमीन पर कब्जे के सबूत पेश करने के लिए कहा है |
रामलला विराजमान की ओर से वरिष्ठ वकील परासरन ने कहा कि पूर्ण न्याय करना सुप्रीम कोर्ट के विशिष्ट क्षेत्राधिकार में आता है | इस दौरान रामलला विराजमान के एक और वकील वैद्यनाथन ने कहा कि मस्जिद से पहले मंदिर था | इससे संबंधित सबूत कोर्ट के समक्ष रखेंगे | उन्होंने कहा कि 18 दिसंबर 1961 को जब लिमिटेशन एक्ट लागू हुआ, उससे पहले 16 जनवरी 1949 को मुस्लिमों ने यहां अंतिम बार प्रवेश किया था | सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि कोई स्थान देवता का हो सकता है, अगर उसमें आस्था है तो | जिस पर जस्टिस अशोक भूषण ने चित्रकूट में कामदगिरि परिक्रमा का जिक्र किया | उन्होंने कहा लोगों की आस्था और विश्वास है कि वनवास जाते समय भगवान राम, लक्ष्मण और सीता ठहरे थे | रामलला विराजमान के वकील ने कहा 1949 में मूर्ति रखे जाने से पहले भी ये स्थान हिंदुओं के लिए पूजनीय था | हिंदू दर्शन करने आते थे | उन्होंने कहा कि किसी स्थान के पूजनीय होने के लिए सिर्फ मूर्ति की जरूरत नहीं है | गंगा और गोवर्धन पर्वत का भी हम उदाहरण ले सकते हैं |रामलला विराजमान के वकील ने कहा अयोध्या मामले में 72 साल के गवाह हाशिम अंसारी ने कहा था कि अयोध्या हिंदुओं के लिए पवित्र है, जैसे मक्का मुसलमानों के लिए पवित्र है |