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AAP ने बस मार्शल्स की नियुक्ति को लेकर कैबिनेट नोट पास किया है। इस नोट में मांग की गई है कि मार्शल को तुरंत बहाल किया जाए।

नई दिल्ली: AAP ,बस मार्शल्स की नियुक्ति पर हाई-प्रोफाइल सियासी नाटक

नई दिल्ली में दिल्ली सरकार AAP ने बस मार्शल्स की नियुक्ति को लेकर कैबिनेट नोट पास किया है। इस नोट में मांग की गई है कि मार्शल को तुरंत बहाल किया जाए। AAP मुख्यमंत्री आतिशी इस मुद्दे को लेकर अपने कैबिनेट मंत्रियों के साथ एलजी आवास की ओर निकलीं। यह कदम दिल्ली की राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर रहा है।

इस दौरान, एलजी के पास जाने को लेकर राजनीतिक बयानबाजी में भी तेज़ी आई है। AAP नेता दिलीप पांडेय ने आरोप लगाया कि बीजेपी विधायकों ने राजभवन जाने के मुद्दे पर भागने की कोशिश की। पांडेय ने कहा, “बस मार्शलों के लिए दिल्ली सरकार द्वारा कैबिनेट नोट पास होने के बाद भाजपा वाले फिर भागने के फिराक में थे, जिन्हें रोकने के लिए हमें जमीन पर लोटना पड़ा।” उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं ने गेट पर घेराबंदी की और फिर विधायकों को रोकने में सफल हुए।

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बस मार्शल्स का महत्व

दिल्ली में बस मार्शल्स का कार्य बुनियादी रूप से यात्री सुरक्षा और अनुशासन बनाए रखना होता है। दिल्ली सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है और इसकी बहाली को लेकर ठोस कदम उठाने की योजना बना रही है। पांडेय ने कहा, “अब हम एलजी हाउस की तरफ रवाना हैं। आज हम बस मार्शल्स के लिए न्यायोचित रोजगार लेकर ही दम लेंगे। इंकलाब ज़िंदाबाद।”

इस सियासी हलचल का एक बड़ा हिस्सा यह भी है कि बस मार्शल्स के मुद्दे पर राजनीतिक दलों के बीच मतभेद बढ़ रहे हैं। AAP और बीजेपी दोनों ही इस मामले को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं, जिससे मामला और भी जटिल हो गया है।

सियासी तंत्र की चुनौतियाँ

इस घटनाक्रम ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या दिल्ली में बस मार्शल्स को बहाल करने के मुद्दे पर राजनीतिक तकरार की वजह से किसी अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इससे पहले भी कई बार दिल्ली में ऐसी सियासी घटनाएं देखने को मिल चुकी हैं, जहां स्थानीय मुद्दों को राजनीति के चश्मे से देखा जाता है।

दिल्ली सरकार और बीजेपी के बीच इस टकराव ने न केवल राजनीतिक माहौल को गर्माया है, बल्कि आम जनता की समस्याओं पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। ऐसे में देखना होगा कि क्या दोनों पार्टियां इस मुद्दे पर किसी सकारात्मक समाधान की दिशा में बढ़ती हैं या फिर स्थिति और बिगड़ती है।

दिल्ली की राजनीति में यह नया मोड़ यह दर्शाता है कि कैसे स्थानीय मुद्दे भी बड़ी सियासी लड़ाई का हिस्सा बन सकते हैं। बस मार्शल्स की बहाली के लिए उठाए गए कदमों से यह साफ है कि दिल्ली सरकार अपने कार्यों को गंभीरता से लेना चाहती है, लेकिन इस बीच की सियासी नोकझोंक को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

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