High Court : जीजा साली में संबंध बनाना गलत , रेप नहीं मान सकते अगर आप..

High Court को सूचित किया गया कि कथित पीड़िता बालिग है और उसने भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 161 और 164 के तहत दिए गए बयानों में विरोधाभास दिखाया है।

हाल ही में एक महत्वपूर्ण मामले में High Court को सूचित किया गया कि कथित पीड़िता बालिग है और उसने भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 161 और 164 के तहत दिए गए बयानों में विरोधाभास दिखाया है। यह मामला चर्चा का विषय बन गया है, क्योंकि बयान बदलने के कारण अभियोजन पक्ष के तर्क और साक्ष्य पर सवाल खड़े हो गए हैं।


CrPC की धारा 161 और 164 क्या हैं?

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 161 और 164 कानूनी प्रक्रियाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं:

  • धारा 161: इस धारा के तहत पुलिस अधिकारी किसी गवाह या पीड़ित से मामले की जांच के दौरान बयान दर्ज करते हैं। यह बयान गैर-शपथ पत्र होता है।
  • धारा 164: इस धारा के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष शपथ लेकर बयान दर्ज किया जाता है। इसे अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।

पीड़िता के बयान में विरोधाभास

मामले में कथित पीड़िता ने पहले CrPC की धारा 161 के तहत बयान दिया था, जिसमें उसने सभी आरोपों से इनकार किया। इसके बाद, CrPC की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए बयान में उसने आरोपों को स्वीकार किया और अभियोजन पक्ष का समर्थन किया। इस तरह के विरोधाभास ने मामले को जटिल बना दिया।


अभियोजन पक्ष की दलीलें

अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि CrPC की धारा 164 के तहत दिए गए बयान को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह मजिस्ट्रेट के समक्ष शपथ लेकर दर्ज किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि बयान बदलने का कारण दबाव या धमकी हो सकता है, जो जांच के दौरान स्पष्ट हो सकता है।


बचाव पक्ष का तर्क

बचाव पक्ष ने कहा कि पीड़िता का पहले दिया गया बयान (धारा 161 के तहत) मामले की सच्चाई को दर्शाता है। उनका दावा है कि दूसरा बयान, जो मजिस्ट्रेट के समक्ष दिया गया था, बाहरी दबाव या झूठी गवाही के कारण बदल सकता है।


अदालत का दृष्टिकोण

High Court ने दोनों पक्षों की दलीलों को गंभीरता से सुना और बयान बदलने के कारणों की जांच के आदेश दिए। न्यायालय ने कहा कि यह जानना आवश्यक है कि क्या बयान बदलने के पीछे कोई दबाव, धमकी, या अन्य कारण थे।


कानूनी और नैतिक प्रश्न

इस मामले ने न्याय व्यवस्था और गवाहों की विश्वसनीयता से जुड़े कई प्रश्न उठाए हैं:

  1. बयान बदलने का प्रभाव: यह अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष दोनों के तर्कों पर गहरा प्रभाव डालता है।
  2. गवाह सुरक्षा: क्या गवाहों और पीड़ितों को पर्याप्त सुरक्षा मिल रही है ताकि वे बिना किसी दबाव के अपना बयान दे सकें?
  3. न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता: इस तरह के मामलों में निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की आवश्यकता है।

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पीड़िता के बयानों में विरोधाभास ने इस मामले को और अधिक संवेदनशील बना दिया है। High Court को यह सुनिश्चित करना होगा कि सच्चाई सामने आए और न्याय हो। साथ ही, गवाहों और पीड़ितों की सुरक्षा और उनके बयानों की विश्वसनीयता बनाए रखना न्याय प्रणाली की प्राथमिकता होनी चाहिए।

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