यहां नवेश्वर के रूप में अलग अलग मंदिरों में विराजमान है आदिदेव

जालौन , यमुना तट पर स्थित पौराणिक और ऐतिहासिक नगरी कालपी में आदि देव महादेव नौ अलग अलग रूपों में विराजमान है जिन्हे नवेश्वर की संज्ञा दी गयी है।


झांसी कानपुर राजमार्ग पर जालौन जिले की तहसील कालपी ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व की कई धरोहरों को सदियों से अपने आंचल में संजो कर रखे हुये है। पुराणों में इसे वेदव्यास की जन्मस्थली के तौर पर मान्यता प्राप्त है तो पांडवकालीन मंदिर यहां आकर्षण का केन्द्र है।

सूर्य मंदिर अब यहां खंडहर के रूप में है वहीं बादशाह अकबर के प्रमुख दरबारी बीरबल का किला भी यहां पर है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को अंग्रेजो की पकड़ से दूर करने वाली ऐतहासिक गुफा भी कालपी में मौजूद है। इन सबसे परे मंदिरों की इस नगरी में भगवान शिव के नौ रूपों के प्रतीक शिवलिंग का उल्लेख धर्मशास्त्रों में मिलता है।

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इतिहासकार डा हरिमोहन पुरवार ने यूनीवार्ता को बताया कि शिव शंकर के अनेकानेक रूप विष्णु अवतारी व्यास जी की नगरी कालपी में दृष्टव्य है। इन अनेकानेक रूपो में नरेश्वरों की अत्याधिक मान्यता है क्योकि अवढरदानी भगवान भोले शंकर को नौ की संख्या अत्याधिक प्रिय है ।

कालपी के शिवस्वरूप नवेश्वरों के दर्शन मात्र से सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं तथा भक्त को शिव चरणों में स्थान प्राप्त होता है। इन नवेश्वरों में पातालेश्वर का विशेष स्थान है । यमुना नदी के दक्षिणी किनारे पर कालपी किले के पश्चिमी भाग पर यह पातालेश्वर मन्दिर स्थित है।

इस पातालेश्वर नाम के शिवलिंग की अत्याधिक मान्यता है। मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर पांच हजार वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन है। द्वापर में यहाँ पर प्रतिष्ठित मूर्ति मणिकेश्वर महादेव के नाम से विख्यात थी। ब्रह्माण्ड पुराण मे इस मणिकेश्वर स्थान की स्थिति बतलाते हुये पंचम अध्याय के श्लोक स 76,77 में कहा गया है


यत्रकापिमृतः कश्चित्तत्पाश्वान्तिक वाहिनीम्।
कालिन्दी मन साध्यायन वैकुन्ठेलभते स्थितिम् ।।
ततः पूर्व दिशि भ्राजन्मणिकये श्वर इत्यसौ ।
राजते श्री महादेव सर्वाभीष्ट प्रदायक ।।


नवेश्वरों में दूसरे प्रमुख शिवलिंग में ढोढ़ेश्वर है जो कालपी रेलवे स्टेशन के निकट स्थित मुहल्ला तरीबुल्दा में स्थित है। करीब 100 वर्ष प्राचीन मंदिर के बारे में किवदंती है कि शंकर गिरि नामक नाग बाबा के प्रिय शिष्य ढोढे केवट द्वारा मंदिर का निर्माण कराया गया था। लोगों में यह विश्वास है कि नागबाबा ने तत्कालीन समाज के लोगों के दुष्कृत्यों से क्षुब्ध होकर जीवित समाधि ली थी।

तब उन्हीं से प्रेरित होकर ढोढ़े केवट ने यहां पर शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कराई थी
ढोढेश्वर मन्दिर के अन्दर एवं बाहर बलुआ पत्थर की उत्कृष्ट पच्चीकारी है। मन्दिर तथा मन्दिर का गर्भगृह दोनों ही उत्तराभिमुख हैं। । गर्भगृह तथा सुराही के मध्य गर्भगृह के अष्ट पहलुओं पर शिव पार्वती, ब्रह्मा जी, सीताराम लक्ष्मण, भरत शत्रुघन, हनुमान जी, राधाकृष्ण, श्री गणेश जी आदि की मूर्तियाँ बनी हुयीं हैं।

गर्भगृह की उत्तरी दीवाल पर अष्टभुजी सिंहवाहिनी, पूर्वी दीवाल पर चतुर्भुजी विष्णु (पद्मासन मुद्रा में) तथा पश्चिमी दीवाल पर श्री गणेश जी की मूर्ति प्रतिष्ठित है ।
ढोकेश्वर शिवलिंग ग्रेनाइट पत्थर का बना हुआ है। इसके पूर्व में श्वेत संगमरमर के बने नन्दी विराजमान है। गर्भगृह के बाहर खुला हुआ आँगन रूपी प्रदक्षिणा पथ है जिसके बाहर भित्ति बनी है।

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