स्वच्छ पर्यावरण बनाए रखने के लिए 70 हजार करोड़ रुपये की मांग करने वाले याचिकाकर्ता पर 50 हजार का जुर्माना
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ और स्वच्छ पर्यावरण को बनाए रखने के लिए 70 हजार करोड़ रुपये और मानव संसाधन की मांग करने वाले एक याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि इस तरह की याचिका जनहित याचिका नहीं हो सकती है और यह न्यायिक समय की बर्बादी है।
याचिका त्रिलोक गोयल ने दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि अगर उसके प्रोजेक्ट को लागू किया जाएगा तो जलजमाव, वायु प्रदूषण, सड़कों पर होनेवाले हादसे इत्यादि खत्म हो जाएंगे। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने खुद दलीलें रखी और कहा कि अगर उसके प्रोजेक्ट को लागू किया गया तो पर्यावरण स्वच्छ और स्वस्थ हो जाएगा। सुनवाई के दौरान जब कोर्ट ने याचिकाकर्ता से प्रोजेक्ट को विस्तार से बताने को कहा तो याचिकाकर्ता ने बताने से इनकार कर दिया और कहा कि यह गलत हाथों में जा सकता है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आपके इस प्रोजेक्ट में कितने लोगों की जरूरत होगी तो याचिकाकर्ता ने कहा कि उसे विभिन्न सरकारी विभागों से तीस लोगों की जरूरत होगी जो उसके निर्देशों पर काम करेंगे। हालांकि याचिका में कहीं भी इस मांग का जिक्र नहीं किया गया था। कोर्ट ने जब याचिकाकर्ता से इस प्रोजेक्ट का बजट पूछा तो याचिकाकर्ता का कोई निश्चित जवाब नहीं था। उसने कहा कि उसे मनरेगा के लिए आवंटित बजट के बराबर बजट की जरूरत पड़ेगी। मनरेगा का बजट 70 हजार करोड़ रुपये है।
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने अपने प्रोजेक्ट को स्वीकृत करने के लिए कोई दलील नहीं दी है। याचिकाकर्ता ने अपने प्रोजेक्ट की प्रकृति का भी खुलासा नहीं किया है। ऐसे में सार्वजनिक संसाधन की बर्बादी नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने पाया कि ये जनहित याचिका न होकर एक बेतुकी याचिका है जिससे न्यायिक समय की बर्बादी हो रही है। उसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाने का आदेश दिया।