हाथरस गैंगरेप का एक साल पूरा जानिए क्या हो रहा है वहां अब?
पीड़ित परिवार के 9 लोगों की सुरक्षा में CRPF के 135 जवान तैनात; राशन लाने भी सुरक्षा घेरे में जाना पड़ता है
हाथरस गैंगरेप का एक साल पूरा हो गया है। पिछले साल आज ही के दिन यूपी पुलिस ने पीड़िता की मौत के बाद बिना परिवार की मर्जी के उसका शव जला दिया था। तब इस घटना के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे। नेशनल और इंटरनेशनल मीडिया में लगातार कवरेज भी हुई। दैनिक भास्कर की जर्नलिस्ट पूनम कौशल ने राजधानी दिल्ली से करीब 200 किलोमीटर दूर पीड़ित के गांव पहुंचकर रिपोर्टिंग की थी। अब एक साल बाद उन्होंने फिर से इस गांव का दौरा किया। पीड़ित परिवार से बात की, गांव के लोगों से बात की और यह जानने की कोशिश की कि एक साल बाद पीड़ित परिवार किस हाल में है।
पीड़ित परिवार का घर चारों तरफ से सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में है। दरवाजे पर मेटल डिटेक्टर लगे हैं, CRPF के 100 से ज्यादा जवान तैनात हैं। इस भारी भरकम इंतजाम को देखकर एक बार तो लगता है कि किसी VIP का घर है, लेकिन आगे बढ़ते ही भ्रम टूट जाता है। हर तरफ गोबर, कीचड़ और गंदगी फैली है। बारिश की वजह से यहां पानी भर गया है, मेटल डिटेक्टर भी आधा पानी में डूबा है। मैं किसी तरह मेटल डिटेक्टर पार करते हुए कीचड़ भरी गली से जब पीड़िता के घर दाखिल होती हूं तो गुजारिश भरे लहजे में CRPF का एक जवान कहता है, ‘मैडम हो सके तो इस गंदगी के बारे में भी लिखिएगा, इतनी बदबू आती है कि हमसे खड़ा भी नहीं हुआ जाता है।’
ये पीड़िता के घर के बाहर की तस्वीर है। बारिश के पानी के बीच यहां भारी कीचड़ और गंदगी फैली है। परिवार गंदगी के बीच रहने पर मजबूर है।
इस गांव में सिर्फ 4 घर दलितों के हैं। जहां इन दलित परिवारों के घर हैं, वो गांव का अछूत कोना है। पूरे गांव में पक्की सड़क है, लेकिन यहां नहीं है। पूरे गांव की गंदगी यहीं फेंकी जाती है। इन परिवारों को इस गंदगी में रहने की आदत है। CRPF जवान कहते हैं, ‘हम साल भर से इस गंदगी में रह रहे हैं। लोगों ने न तो कूड़ा डालना बंद किया और न ही इसकी सफाई की तरफ किसी का ध्यान गया है।
पीड़िता के एक भाई कहते हैं, ‘ऊंची जाति के लोग तो हमें ही कचरा समझते हैं। तभी तो हमारे घरों के चारों तरफ कचरा है। गैंगरेप की घटना और पीड़िता की मौत के बाद सरकार के बड़े अधिकारियों, मंत्रियों, विपक्ष के नेताओं और जिले के प्रशासनिक अधिकारियों के दौरे हुए, लेकिन किसी ने भी इस गंदगी को यहां से हटाने के बारे में नहीं सोचा।
भेदभाव के सिवा इस गांव में हमारे लिए कुछ है ही नहीं
पीड़िता की मां कहती हैं कि कुछ दिन पहले जब यहां बारिश का पानी भरा था और गली से निकलना मुश्किल था, तो CRPF के कुछ जवान छत के रास्ते कथित ऊंची जाति के लोगों के घर से होते हुए बाहर गए थे। तब उन घरों की महिलाओं ने ताना मारा था कि वे अछूतों के घर से उनके घर में होकर क्यों निकले? इसके बाद ही CRPF वालों ने सड़क बनाने की मांग की। जिसके बाद अब पीड़ित परिवार के दरवाजे तक सड़क बिछाने का काम किया जा रहा है, लेकिन पीड़ित परिवार इस नई सड़क को लेकर बहुत उत्साहित नहीं है।
पीड़िता की मां कहती हैं कि गांव के सवर्ण लोग हमारे साथ भेदभाव करते हैं। वे हमें अछूत बोलते हैं और हमारा मजाक उड़ाते रहते हैं।
मृतका की भाभी कहती हैं, ‘यहां आज भी नाली नहीं हैं। बर्तन धोने के बाद पानी को हम गड्ढे में इकट्ठा करते हैं और फिर उसे बाल्टी में भरकर बाहर फेंककर आते हैं। इस गांव में हमारे लिए कभी कुछ था ही नहीं। सिवाए भेदभाव के।’
वे कहती हैं, ‘अब सड़क बिछाई जा रही है। हमें खुश होना चाहिए था कि हमारे दरवाजे तक सड़क आ रही है, लेकिन हमें अब फर्क नहीं पड़ता। हम अब इस गांव में बस अपने दिन गिन रहे हैं। जैसे ही अदालत से फैसला आएगा, हम यहां से चले जाएंगे। ये गांव हमारे लिए नरक ही है। चाहें अब इसे सोने का स्वर्ग बना दें, लेकिन रहेगा तो ये पापियों का गांव ही। हमारे लिए यहां कुछ नहीं बदलेगा।’
एक साल से घर में कैद है पीड़िता का परिवार
पीड़ित परिवार की सुरक्षा में CRPF की एक पूरी कंपनी (जिसमें 135 जवान होते हैं) तैनात है। ये जवान तीन शिफ्ट में घर पर पहरा देते हैं। घर की छत, दरवाजे और बाहर हर समय हथियारों से लैस जवान तैनात रहते हैं। उन्हें देखकर एक घुटन-सी होती है कि कैसे कोई इतनी चौकस नजरों के बीच अपना निजी जीवन बिता सकता है, लेकिन सुरक्षा के सवाल पर मृतका की भाभी कहती हैं, ‘हमारे लिए अब भी खतरा बना हुआ है। जब मैं अपनी तीन बेटियों को देखती हूं तो मुझे ये सुरक्षा जरूरी लगती है। ये लोग हैं तो हम यहां हैं, वर्ना हम कब के यहां से चले गए होते।’
पीड़ित परिवार का कोई भी सदस्य घर से बाहर बिना सुरक्षा के नहीं निकल सकता है। यहां तक कि गांव की दुकान तक भी जब कोई जाता है तो सुरक्षाकर्मी साथ रहते हैं। मृतका के छोटे भाई कहते हैं, ‘सुरक्षा की वजह से मुझे नौकरी छोड़नी पडी है। मैं अपने घर में ही हूं। मैं किसी दोस्त से भी नहीं मिल पाता हूं और न ही घर से बाहर निकल पाता हूं।’
इस भारी सुरक्षा इंतजाम को देखकर ये सवाल मन में कौंधता है कि एक परिवार की सुरक्षा में इतनी बड़ी तादाद में जवान क्यों तैनात हैं, लेकिन गांव के लोगों से बात करने के बाद इसका जवाब मिल जाता है। पूरा गांव पीड़ित परिवार के खिलाफ नजर आता है। गांव के लोगों को लगता है कि पीड़ित परिवार झूठी कहानी गढ़कर सरकारी पैसों पर मौज कर रहा है।
गांव के किसी व्यक्ति ने हमारा हाल तक नहीं पूछा
पीड़िता के पिता कहते हैं, ‘गांव में ऊंची जाति के लोगों से हमारा रिश्ता पहले भी बराबरी का नहीं था। इस घटना के बाद बाहर के बहुत से लोग हमारे घर आए, लेकिन गांव के लोग नहीं आए। किसी ने हाल तक नहीं पूछा। इस दूरी की वजह भी जाति ही है। गांव के ठाकुर जाति के एक व्यक्ति कहते हैं, ‘यदि हम इन लोगों से छू भी जाएं तो नहाना पड़ता है और गंगाजल छिड़कना पड़ता है।’ वहीं पीड़िता का छोटा भाई कहता है, ‘गांव के लोगों के यहां हमारा आना-जाना पहले भी सीमित ही था। इस घटना के बाद बिल्कुल बंद हो गया है। हम पूरे परिवार के लोग इसी दो कमरे के घर में रहते हैं।’
पीड़िता की भाभी घटना के बाद बेहद मजबूती से खड़ी रहीं थीं। उस समय उनकी सबसे छोटी बेटी बस 12 दिनों की थी। घर में मीडिया का जमावड़ा रहता था। उनकी बेटी एक पुरानी साड़ी के झूले में झूलती रहती थी और वे बेहद मजबूती से मीडिया में परिवार का पक्ष रखती थीं। तब उन्होंने कई गंभीर सवाल भी खड़े किए थे। उस वक्त को याद करके उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं।
पीड़िता का परिवार दो कमरे के घर में रहता है। किचन की भी व्यवस्था नहीं है। एक साल से घर का कोई सदस्य कमाने के लिए बाहर नहीं गया है।
भर्राई आवाज में वे कहती हैं, ‘डर तो उसी दिन खत्म हो गया था जिस दिन उनकी बॉडी को जबरदस्ती जला दिया गया था। उससे भी बुरा हमारे साथ और क्या होगा। अब तो सबसे बुरा हो चुका है। अब किसी बात का डर नहीं है। अब बस न्याय के लिए लड़ना है। जब तक न्याय नहीं मिलेगा हम लड़ते रहेंगे।’ वे अपने हाथ दिखाते हुए कहती हैं, ‘जब से दीदी गई हैं, मैंने अपने हाथ पर मेहंदी नहीं लगाई है, मैं कभी सजी या संवरी भी नहीं हूं। वो ही मुझे तैयार करती थीं।’
25 लाख रुपए की मदद मिली, नौकरी और घर का इंतजार
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस घटना के बाद परिवार को 25 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी थी। बीते एक साल से पीड़ित परिवार इसी पैसे में से घर का खर्च चला रहा है, कोई भी सदस्य अभी कोई काम नहीं कर पा रहा है। दोनों भाइयों की नौकरी छूट चुकी है। सरकार ने परिवार को एक सरकारी घर और भाई को नौकरी देने का वादा भी किया था, जो अभी तक पूरा नहीं हो सका है। बड़े भाई कहते हैं, ‘हम इंतजार कर रहे हैं कि सरकार नौकरी और घर देने का अपना वादा पूरा करे।’
मीडिया से नाराज है आरोपियों का परिवार
गांव के ज्यादातर लोग पीड़ित परिवार के बारे में व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि वे तो ‘सरकारी पैसे पर खूब मौज कर रहे हैं।’ कई लोग जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल बिना किसी हिचक के करते हैं। हालांकि कुछ लोग ये जरूर कहते हैं कि मुख्य आरोपी संदीप की संलिप्तता हो सकती है, लेकिन रामू, रवि और लवकुश बेगुनाह हैं।
पीड़ित परिवार की सुरक्षा सख्त है। चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। CRPF के जवान तीन शिफ्ट में अपनी ड्यूटी देते हैं।
जब मैं एक आरोपी के घर दाखिल होती हूं तो मुझे रोक दिया जाता है। आरोपी के पिता गरजते हुए कहते हैं, ‘अब यहां क्या लेने आई हो। एक साल हो गया, मीडिया ने इस गांव में धूल उड़ानी नहीं छोड़ी। अगर मीडिया पीछे न पड़ता तो हमारे बच्चे जेल में नहीं घर में होते।’ वे कहते हैं, ‘मीडिया ही अदालत बनी हुई है। भारत वर्ष का मीडिया हाय-हाय करके, उल्टी सीधी खबरें छापकर अदालत को गुमराह कर रहा है। मीडिया कुछ होने ही नहीं देगा। पूरे देश में ये ही एक केस हुआ है जो इसी के पीछे पड़े हो?’
गांव के लोगों की नजर में आरोपी बेगुनाह हैं
फिलहाल इस मामले की जांच CBI कर रही है। CBI ने बीते साल दिसंबर में अदालत में चार्जशीट दायर करते हुए चारों अभियुक्तों पर गैंगरेप और हत्या के आरोप तय किए थे। मामले की सुनवाई हाथरस की ही SC-ST कोर्ट में चल रही है। पिछली सुनवाई 23 सितंबर को थी और अब अगली सुनवाई 30 सितंबर को होनी है। पीड़िता के बड़े भाई के मुताबिक फिलहाल उनसे सवाल-जवाब हुए हैं। अगली सुनवाई में उनकी मां के बयान लिए जाएंगे। फिर गवाहों की गवाही दर्ज होगी। पीड़ित परिवार को उम्मीद है कि अदालत से आरोपियों को दोषी ठहराया जाएगा। वहीं गांव के लोगों का कहना है कि इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता कि अदालत क्या फैसला देती है। गांव के लोगों की नजर में आरोपी बेगुनाह ही हैं।