हक्कानी नेटवर्क भारत के लिए खतरे की घंटी, पाकिस्तान समर्थित सबसे हिंसक आतंकियों से हैं संबंध
भारत काबूल में घातक आतंकी हमलों के बाद अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए प्रमुख अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ निकट संपर्क में है, जो आई.एस.आई. समर्थित इस्लामिक स्टेट-खोरासन या आई.एस.के. की करतूत हो सकती है। घटनाक्रम से परिचित लोगों के अनुसार तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान में आतंकी समूह सक्रिय हो रहे हैं। आई.एस.के. इस्लामिक स्टेट समूह का क्षेत्रीय सहयोगी है। यह अफगानिस्तान के सभी आतंकवादी संगठन में सबसे चरम और हिंसक है। मामले के जानकार कहते हैं कि भारत में पाकिस्तानी आई.एस.आई. इस संगठन के जरिए भारत में माहौल खराब करने के लिए इस्तेमाल कर सकती है। इस संगठन का हक्कानी नेटवर्क के साथ भी मजबूत संबध हैं। जानकारों का कहना है कि यदि हक्कानी नेटवर्क तालिबानी सरकार में भारत के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि यह अफगानिस्तान में भारत को कई बार निशाना बना चुका है।
तालिबानियों के बीच पावरफुल प्लेयर हक्कानी नेटवर्क
अफगानिस्तान में तालिबान के बड़े नेताओं की गतिविधियों पर इसके पड़ोसी देशों सहित दुनिया के सभी देशों की नजर है। तालिबान नई इस्लामिक सरकार बनाने का खाका तैयार कर रहा है। खूंखार आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क भी इस सरकार में शामिल हो रहा है, जो उससे भी कहीं ज्यादा खतरनाक माना जाता है। इस संगठन ने कई घातक हमलों को अंजाम दिया है, जिनमें आम नागरिकों, सरकारी अधिकारियों और विदेशी सैनिकों की मौत हुई है। बावजूद इस सबसे हक्कानी नेटवर्ट तालिबान की सरकार में बड़ा पावरफुल प्लेयर साबित होता दिख रहा है।
पाकिस्तानी जिहादियों को भर्ती करता है आईएस-के
आईएस-के की स्थापना जनवरी 2015 में इराक और सीरिया में आईएस की ताकत के चरम पर की गई थी। ये संगठन अफगान और पाकिस्तानी दोनों ही जिहादियों की भर्ती करता है। आईएस-के और पाकिस्तान समर्थक हक्कानी नेटवर्क के बीच मजबूत संबंध हैं, जो तालिबान से निकटता से जुड़ा हुआ है। अब काबुल में सुरक्षा का प्रभारी व्यक्ति खलील हक्कानी है। अमेरिका ने खलील हक्कानी के सिर पर 50 लाख डॉलर का इनाम रखा हुआ है। 2019 और 2021 के बीच कई बड़े हमलों में सहयोग शामिल है।
लड़कियों के स्कूल और अस्पताल तक निशाने पर
हाल के सालों में हुए कुछ सबसे जानलेवा हमलों के लिए इस्लामिक स्टेट की खुरासान शाखा को जिम्मेदार ठहराया गया है। इसके निशाने पर लड़कियों के स्कूल, अस्पताल और इसका का मैटरनिटी वॉर्ड तक रहा है। मैटरनिटी वॉर्ड पर हमले में इसके लड़ाकों ने गर्भवती महिलाओं और नर्सों तक को गोली मार दी थी। ‘आईएस-के’ तालिबान की तरह नहीं है जिसने अपनी हदें अफगानिस्तान तक सीमित रखी हैं।
पूरे विश्व में आतंकवाद फैलाना ही आईएस-के का मकसद
यह संगठन ‘इस्लामिक स्टेट’ के वैश्विक नेटवर्क का हिस्सा है जिसका मकसद पश्चिमी, अंतरराष्ट्रीय और मानवतावादी ठिकानों को निशाना बनाना है। अफगानिस्तान के पूर्वी प्रांत नंगरहार में ‘आईएस-के’ का ठिकाना है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच होने वाले नशीले पदार्थों का कारोबार और मानव तस्करी के रास्ते इसके पास से ही गुजरते हैं। एक वक्त था जब इस्लामिक स्टेट के पास लगभग 3,000 लड़ाके हुआ करते थे।
2008 में धमाकों से 6 भारतीयों सहित 58 लोगों की हुई थी मौत
बताते हैं कि हक्कानी नेटवर्क ने 7 जुलाई 2008 में काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर हमला किया गया था। यह जगह गृह मंत्रालय के नजदीक थी और इसलिए सुरक्षित मानी जाती थी। लेकिन आतंकियों ने सुरक्षा में सेंध लगाते हुए कार के जरिए धमाका किया था। इसमें 6 भारतीयों सहित 58 लोगों की मौत हो गई थी। जबकि 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। इसके बाद एक दूसरा हमला साल 2009 में काबुल स्थित दूतावास में ही हुआ। इस बार आत्मघाती हमले में 17 लोगों की मौत हुई और 83 लोग घायल हुए थे। कहा गया कि ये हमले पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आई.एस.आई. के आदेश पर किए गए थे। इसके साथ ही हक्कानी नेटवर्क ने अफगानिस्तान में चल रही भारत की कई अन्य परियोजनाओं को भी निशाना बनाया है।