गोरखपुर – छठ की तैयारी जोरों पर, घाटों पर बनने लगी वेदियां
वैश्विक महामारी में भी छठ का व्रत करने वाली महिलाओं की आस्था और उत्साह में कोई कमी नहीं आई है. छठ का महापर्व यूपी-बिहार से निकलकर देश की सीमाएं लांघ कर विदेशों तक पहुंच चुका है. महिलाएं पुत्र रत्न की प्राप्ति और दीर्घायु की कामना को लेकर छठ का व्रत करती हैं. इसके साथ परिवार और समाज में सुख शांति के लिए भी महिलाओं द्वारा कामना की जाती है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में भी छठ की तैयारियां जोरों पर है. महिलाएं परिवार के साथ घाट पर वेदियां बनाने में जुटी हैं.
गोरखपुर के महेश्वरा घाट पर. यहां पर महिलाएं छठ के महापर्व और कठिन व्रत के लिए घाट पर पति और परिवार के लोगों के साथ तैयारी में जुटी हैं. सुनीता पति कैलाश और परिवार के साथ यहं पर आईं हैं. सुनीता बताती हैं कि पिछले 12 साल से छठ मैया का व्रत कर रही हैं. वे बताती है कि छठ मइया से जो मांगते हैं, वो पूरा करती हैं. उन्होंने बताया कि उनके तीन बेटियां हैं और दो बेटे हैं. बेटे की मुराद पूरी होने के बाद से व्रत कर रही हैं. ये व्रत निराजल करते हैं. कैलाश बताते हैं कि वेदी बना रहे हैं. बताया कि पहले दिन पांच फल और गन्ना आदि लेकर पूजा-पाठ किया जाता है. ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. उसके बाद दूसरे दिन भोर में उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद से व्रत पूरा हो जाता है.
गुड्डी महुआतर की रहने वाली हैं. वे अपने पति बबलू के साथ महेश्वरा घाट पर वेदी बनाने के लिए आई हैं. गुड्डी बताती हैं कि वे 18 साल ये व्रत कर रही हैं. उन्होंने बताया कि वे निराजल व्रत है. वे बताती हैं कि काफी कठिन व्रत है. लेकिन, वे इसे रहती हैं. वे अपने बेटे और परिवार की खुशहाली के लिए व्रत रहती हैं. उनकी मनौती पूरी हुई है. बबलू बताते हैं कि उनकी पत्नी गुड्डी व्रत करती हैं. उन्होंने बताया कि वे पत्नी की मदद करने के लिए यहां पर वेदी बनाकर उसे रंगने के लिए आई हैं. जब उनके बच्चे नहीं रहे हैं, तो उनकी पत्नी ने व्रत किया और उनके एक बेटा और एक बेटी हुई. उनके आशीर्वाद से बच्चे हुए. मां में काफी आस्था है. वे हर साल व्रत करते हैं. डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद दूसरे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देती हैं.
छठ के पहले घाट पर वेदियां बनाने का सिलसिला शुरू हो चुका है. महिलाएं परिवार के साथ दे दिया बनाने में जुटी हैं. छठ के महापर्व पर लाखों की संख्या में महिलाएं इस कठिन वक्त का बेटे और परिवार की खुशहाली के लिए निर्वहन करती हैं. ऐसे में इस व्रत के महत्व को आसानी से समझा जा सकता है.