मतलब की ‘माया’, फँस गए अखिलेश
अभी हार की तेरहवीं भी नहीं हुई थी… कि मायावती ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन तोड़ने के संकेत दे दिए.. मायावती इतनी मतलबी निकली की वो भूल गईं… जिन अखिलेश यादव ने उन्हें बुआ कहा और बुआ माना भी… जो इज्जत अखिलेश ने मायावती को दी वो उन्हें समाजवादी पार्टी से कभी नहीं मिली.. अखिलेश यादव मायावती के लिए अपने परिवार तक से लड़ गए… लोग समझाते रहे मायावती मौका परस्त हैं.. मतलब निकलते ही निकल लेंगी… लेकिन अखिलेश ने किसी की नहीं सुनी… क्योंकि अखिलेश जो करते हैं दिल से करते हैं… ये अखिलेश की दरियादिली का ही नतीजा है… कि 2014 में अंडे वाली पार्टी को अपने से ज्यादा सीटें दीं.. और मायावती को जीरो से दस तक पहुंचा दिया… अब जरा सोचिए इस गठबंधन में किसका नुकसान हुआ… और किसका फायदा हुआ… क्योंकि सच तो ये हैं कि जिस बहुजन समाज पार्टी की हैसियत एक राज्यसभा सांसद बनाने की नहीं है… जो मायावती कह रही हैं कि यादव वोट उन्हें नहीं मिला…वो भूल गई हैं कि उनके आज जो 10 सांसद है वो यादवों की वजह से ही है… क्योंकि सच तो ये हैं कि यादव वोट ट्रांसफर हुआ तब ही मायावती जीरो से दस सीटों पर पहुंच पाई हैं… अगर मायावती अकेले चुनाव लड़ती तो उनका हाल 2014 वाला ही होता… दरअसल अखिलेश यादव का हर किसी ने फायदा ही उठाया है… 2017 में राहुल गांधी ने फायदा उठाया… अखिलेश ने कांग्रेस को भी हैसियत से ज्यादा सीटें दी… जिसका नुकसान तब भी समाजवादी पार्टी को हुआ.. जनता की सोच भी यही है कि अगर समाजवादी पार्टी अकेले चुनाव लड़ती तो ज्यादा फायदे में रहती… और अखिलेश यादव एक बड़े नेता के तौर पर 2019 में उभरते… वहीं राजनीति के जानकार मानते हैं… कि समाजवादी पार्टी को गठबंधन कभी रास नहीं आया है.. मुलायम सिंह यादव कभी किसी से गठबंधन नहीं करते थे… मगर युवा अखिलेश ने सबको साथ लेकर चलने की कोशिश की… जिसका बारी-बारी से सबने फायदा उठाया…मगर अब जनता अखिलेश को ये बताने में कामयाब हो ही गई है.. कि जनता को अखिलेश अकेले ही पसंद है… और अखिलेश भी जनता के पसंद को समझेंगे… और भविष्य में गठबंधन की गलती फिर कभी नहीं दोहराएंगे… क्योंकि ये अखिलेश युवा नेता है… उनके पास वो दमखम है.. जो दूसरे किसी नेता के पास नहीं….