चंबल के गांधी डॉ. एसएन सुब्बाराव की कहानी:चंबल घाटी में 600 डाकुओं का कराया था आत्मसमर्पण,
मैसेज दिया- जियो और जीने दो
चंबल में डाकुओं की बंदूकों को शांत करने वाले प्रसिद्ध गांधीवादी डॉ. एसएन सुब्बाराव (92) नहीं रहे। उन्होंने बुधवार सुबह 6 बजे जयपुर के अस्पताल में अंतिम सांस ली। उन्हें चंबल का गांधी कहा जाता है। उनका जन्म कर्नाटक के बेंगलुरु में 7 फरवरी 1929 को हुआ था।
चंबल घाटी में उन्होंने खूंखार माधो सिंह, मोहर सिंह और मलखान सिंह समेत 600 से ज्यादा डाकुओं का समर्पण कराकर मुख्य धारा में शामिल कराया था। जौरा में उन्होंने पहला गांधी आश्रम स्थापित किया था। आज देश-विदेश में 20 जगहों पर गांधी आश्रम है। उन्हें पद्मश्री समेत देश के कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया था।
बात 1970 की है, जब चंबल घाटी डाकुओं भय से थर्राती थी। उस समय डॉ. एसएन सुब्बाराव ने यहां डेरा डाला था। वे डाकुओं के बीच रहे। उन्हें समझाया, जब वे नहीं माने तो उनके परिवार वालों को लेकर उनके पास लेकर गए। कहा कि हम तुम्हें नया जीवन देंगे। उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चन्द्र सेठी से मिलकर उनके लिए खुली जेल स्थापित की। उनके ऊपर लगे सभी केस माफ करवाए। उनके परिजनों को पुलिस में नौकरी दिलवाई तथा खेती-बाड़ी दिलवाई।
जब सरकार ने सभी मांगें मान ली तो उनका सरेंडर कराया। 1970 के दशक में जौरा के पास पगारा गांव में 70 डाकुओं का एक साथ आत्मसर्मपण कराया था। उस समय आचार्य विनोबा भावे, स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण व मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चन्द्र सेठी मौजूद थे।
जौरा आश्रम में डॉ. एसएन सुब्बाराव।
माधो सिंह के नाम से कांपते थे लोग
खूंखार दस्यु माधो सिंह के नाम से उस समय चंबल के लोग कांपा करते थे। बताया जाता है कि माधो सिंह की गैंग में लगभग 400 सदस्य थे। यह गैंग चंबल के बीहड़ों में रहती थी। पुलिस उन्हें खोजने के लिए दर-दर भटकती थी, लेकिन सुब्बाराव उन तक अकेले पहुंचे। उन्होंने माधो सिंह को समझाया, जब वे नहीं माने तो उनके रिश्तेदारों के पास पहुंचे, उन्हें लेकर गए। यही स्थित खूंखार दस्यु मुहर सिंह व मलखान सिंह के साथ रही। उनके रिश्तेदारों से मिलकर उन पर आत्मसर्मपण करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने गांधीजी की विचार धारा जियो और जीने दो, से डाकुओं को प्रेरित किया। इस पर डाकुओं ने उनसे सरकार से मध्यस्थता करने की बात कही। उसके बाद उन्होंने तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार से बात की और डाकुओं के आत्मसर्मण के लिए शर्त रखी।
यह रखी थी शर्तें
1- सरेंडर करने वाले डाकुओं को खुली जेल में रखा जाएगा। जहां वे अपने परिवार के साथ रह सकेंगे। वे जेल के कैदी के तरह नहीं रहेंगे तथा खेतीबाड़ी करेंगे और सामान्य जीवन जिएंगे।
2- समर्पण के बाद उनके बच्चों को पुलिस में नौकरी दी जाएगी, जिससे वे समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें।
3- जीवनयापन करने के लिए उनको उनके गांव में ही खेती दी जाएगी, जिससे वह सम्मान पूर्वक अपना व अपने परिवार का जीवन यापन कर सकें।
4-समर्पण के बाद डाकुओं पर जो अपराध चल रहे हैं, उनको पूरी तरह खत्म किया जाएगा। इससे वह सम्मान पूर्वक समाज में रह सकें और समाज का हिस्सा बन सकें।
5-सरेंडर से पहले चंबल का लगभग 300 किलोमीटर का क्षेत्र शांति क्षेत्र घोषित किया जाए, जहां डाकू आसानी से आ-जा सकें तथा पुलिस उन्हें किसी नहीं छेड़े।
दस्यु मलखान सिंह, जिसे सरेंडर कराया था।
सरकार ने मानी मांगें
सरकार ने एसएन राव की सभी मांगे मानी। उनकी मांगें मानने के लिए सुब्बाराव के साथ-साथ आचार्य विनोबा भावे तथा स्वतंत्रता सेनानी डॉ. जयप्रकाश नारायण ने उनकी काफी मदद की। सरकार से मध्यथता कराई जिससे सरकार उनकी बात पर सहमत हो गई थी।
डकैतों के समर्पण के बाद जौरा में स्थापित गांधी आश्रम।
जौरा के बाद देशभर में खुले गांधी आश्रम
एसएन सुब्बाराव ने वर्ष 1970 के दशक में जौरा के पास पगारा गांव में लगभग 70 डाकुओं का समर्पण एक साथ कराया था। उसके बाद धीरे-धीरे अन्य डाकू भी आ गए तथा कुल मिलाकर 600 से ज्यादा डाकुओं का आत्मसमर्पण कराया। इसके बाद उन्होंने जौरा में गांधी आश्रम की स्थापना की। इस आश्रम के बाद आज विश्व के लगभग 20 देशों में गांधी आश्रम चल रहे हैं।
डॉ. एसएन सुब्बाराव के अंतिम दर्शन करते लोग।
आदिवासियों के लिए तीन बार किया सत्याग्रह
एसएन सुब्बाराव ने न केवल चंबल को डाकुओं से मुक्त कराया बल्कि आदिवासियों को पट्टा दिलाने की शुरुआत की। उन्होंने आदिवासियों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तीन बार सत्याग्रह किया था। वे कई बार ग्वालियर से सत्याग्रहियों के साथ पैदल-पैदल दिल्ली तक गए थे। उन्होंने आदिवासियों के लिए आदिवासी अधिकार अधिनियम में भी संशोधन कराया।
13 साल की उम्र में स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए थे
डॉ.एसएन सुब्बाराव का पूरा नाम सेलम नंजुद्दया सुब्बाराव है। सेलम इनकी मां का नाम था। नंजुद्या पिता का नाम था तथा सुब्बाराव इनका नाम था। इस प्रकार इनका पूरा नाम एसएन सुब्बाराव पड़ा। सुब्बाराव कुल 6 भाई थे। बैंगलौर श्रीनगर में रहते थे। इन्होंने वकालत की पढ़ाई की थी। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान 13 वर्ष की उम्र में दीवार पर भारत छोड़ो लिखते हुए इन्हें पकड़ा गया था। बाद में बच्चा समझते हुए छोड़ दिया गया था। गांधी शताब्दी के दौरान उन्होंने चंबल को शांति के लिए चुना।
उनकी उपलब्धियां
1-जीवनकाल उपलब्धि पुरस्कार-2014
2-अंतरराष्ट्रीय शांति के लिए अणुव्रत अहिंसा पुरस्कार।
3-महात्मा गांधी पुरस्कार-2008
4-रचनात्मक कार्यों के लिए जमनालाल बजाज पुरस्कार-2006
5-राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार-2003
6- विश्वमानवाधिकार प्रोत्साहन पुरस्कार-2002
7-भारतीय एकता पुरस्कार
8-1997 में काशी विद्यापीठ वाराणसी की ओर से डीलिट की मानद उपाधि।
कल होगा अंतिम संस्कार, बंद रहेगा जौरा
डॉ. एसएन सुब्बाराव के निधन के बाद गुरुवार को सुबह उनका अंतिम संस्कार जौरा स्थित गांधी आश्रम में किया जाएगा। इस मौके पर जौरा का बाजार पूरी तरह से बंद रहेगा। उनकी अंतिम यात्रा में कई स्वतंत्रता सेनानी तथा जिला प्रशासन के अधिकारी शामिल रहेंगे।
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