महंत नरेंद्र गिरि के गांव से एक्सक्लूसिव रिपोर्ट:परिवार में 61 लोग,
लेकिन आधे से ज्यादा बेरोजगार, पढ़ाई-लिखाई के बावजूद नहीं मिल रही नौकरी; भाई-भतीजों ने सुनाई नरेंद्र की पूरी कहानी
20 साल की उम्र में घर छोड़कर चले गए थे नरेंद्र गिरि, परिजन बोले- उनकी हत्या हुई है, वे सुसाइड नहीं कर सकते
करोड़ों की संपत्ति वाले बाघंबरी मठ के महंत रहे नरेंद्र गिरि के परिवार में 61 लोग हैं, लेकिन इनमें आधे से ज्यादा बेरोजगार हैं। कुछ बमुश्किल अपना जीवन-यापन कर पा रहे हैं। महंत गिरि से ये लोग साल में एक-दो बार मिलते तो थे, लेकिन सिर्फ आशीर्वाद ही ले पाते थे। न घर की दिक्कतों को लेकर उन्होंने कभी परिजनों से कुछ पूछा और न ही परिजनों ने कभी उन्हें घर की दिक्कतें बताईं।
प्रयागराज से करीब 45 किमी दूर छतौना गांव में जब हम शनिवार को पहुंचे तो नरेंद्र गिरि का नाम पूछते ही लोगों ने उनके घर की तरफ इशारा किया। गांव में बच्चा-बच्चा तक उनका नाम जानता है।
5 से 7 हजार आबादी वाले इस गांव में गिनती के ठाकुर परिवार हैं, उन्हीं में से एक नरेंद्र गिरि का परिवार भी है। घर पहुंचने पर हमें उनके बड़े भाई अशोक कुमार सिंह मिले। वे चार-पांच दिनों से लगातार हो रहे सवालों से परेशान हो चुके थे। कहने लगे- बार-बार एक ही बात क्यों की जा रही है।
परिवार के बारे में पूछने पर बोले- हम चार भाई और दो बहन हैं। नरेंद्र दूसरे नंबर का था। मैं सबसे बड़ा हूं। नरेंद्र ने 10वीं तक पढ़ाई की थी, 12वीं पास नहीं कर पाए थे। उन्होंने छठवीं से लेकर 9वीं तक की पढ़ाई अमीपुर में नाना-नानी के घर पर रहकर की।
जो लोग बोल रहे हैं कि उन्होंने पढ़ाई-लिखाई नहीं की, वो स्कूल जाकर सर्टिफिकेट देख सकते हैं। अब हम किसी का बोलना तो बंद नहीं कर सकते। अशोक बोले- हमारी समझ से तो उन्होंने पढ़ाई अच्छी ही की थी, क्योंकि उस समय जो व्यवस्था थी, उसमें यदि पढ़ाई में अच्छे नहीं होते तो 10वीं पास ही नहीं हो पाते।
ये महंत नरेंद्र गिरि का परिवार है। फोटो में उनके भतीजे नजर आ रहे हैं। इनका कहना है- बेरोजगारी हमारे लिए अब सबसे बड़ी दिक्कत है।
हम सब पढे़-लिखे हैं, लेकिन नौकरी नहीं मिल रही
घर के बाहर ही नरेंद्र गिरि के भतीजे राहुल और संतोष मिले। बोले- 20 सितंबर को जैसे ही महंत जी की मौत की जानकारी मिली, हम तुरंत प्रयागराज के लिए रवाना हो गए। बाघंबरी मठ पहुंचे, लेकिन वहां के लोग हमें अंदर नहीं जाने दे रहे थे। कुछ लोगों ने उन्हें बताया कि ये परिवार के लोग हैं, तब बड़ी मुश्किल से एंट्री मिल पाई।
राहुल कहते हैं, लोगों को यकीन ही नहीं होता था कि हम महंत नरेंद्र गिरि के भतीजे हैं, क्योंकि उन्होंने कभी घर से कोई रिश्ता ही नहीं रखा। हम सब पढ़े-लिखे हैं, लेकिन बेरोजगार हैं। हमारे घर में एक चाचा सरकारी नौकरी में हैं। एक रिटायर हो चुके हैं। बाकी सब काम के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं। एक-दो संविदा में हैं।
ऐसा नहीं है कि हमने पढ़ाई-लिखाई नहीं की। नई पीढ़ी के हम सब लोग बीए, बीएससी-एमएससी हैं, लेकिन नौकरी नहीं है। काम के सिलसिले में चार-पांच लोग बाहर भी निकले। कोई ट्रक चलाता है, कोई योगा सिखाता है तो कोई मुंबई में रहकर छोटा-मोटा काम कर रहा है। बाकी सब गांव में ही हैं। अपना-अपना कुछ थोड़ा बहुत कर रहे हैं। कुछ तो खेती-बाड़ी में ही लगे हैं।
महंत नरेंद्र गिरि का परिवार हर साल गुरुपूर्णिमा पर बाघंबरी मंदिर जाता था, तब महंत जी के दर्शन हो पाते थे। वहां कभी घर की दिक्कतों को लेकर उनसे बातचीत नहीं हुई। उनके साथ हमेशा कोई न कोई होता था। वो सिर्फ इतना ही पूछते थे कि घर पर सब ठीक है, तो हम हां कर दिया करते थे। इसके अलावा उनसे कभी कोई बात नहीं हुई।
भतीजे संतोष ने कहा, नौकरी मिलेगी कैसे, एक अनार सौ बीमार और आरक्षण भी है। इसलिए सब अपना काम-धंधा देख रहे हैं।
गांव में एक चाय की दुकान पर हमें लालता प्रसाद मिले। कहते हैं, महंत मुझसे एक साल सीनियर थे।
परिवार बोला- सुसाइड नहीं हत्या है
महंत नरेंद्र गिरि के परिवार वालों को लगता है कि उन्होंने सुसाइड नहीं की बल्कि उनकी हत्या की गई है। और इसके पीछे बड़ी साजिश है। उनके भाई अशोक कुमार ने कहा कि अब देश की सबसे बड़ी एजेंसी जांच कर रही है तो सच्चाई सामने आ ही जाएगी।
महंत के घर से आगे बढ़े तो हमें गांव में ही एक गुमटी पर लालता प्रसाद मिले। महंत नरेंद्र गिरि के बारे में पूछने पर बोले, वो मुझसे एक साल सीनियर थे। 1990 के दशक में वो गांव छोड़कर अचानक चले गए थे। फिर कभी लौटे नहीं। एक-दो बार आसपास जरूर आए। हम मठ जाते थे तो हमें नाम से बुलाते थे। पहचानते थे, लेकिन कभी ज्यादा बातचीत नहीं हुई। बचपन में उनकी अधिकतर पढ़ाई ननिहाल में हुई। उनके नाना के नाम से ही आज भी कॉलेज है।
क्या कभी उन्होंने आपकी कोई मदद नहीं की? ये पूछने पर बोले, वो कहीं खड़े ही हो जाते थे तो मदद हो जाती थी। इसके अलावा वो क्या मदद करते।
20 साल की उम्र में छोड़ दिया था घर
नरेंद्र गिरि के बचपन का नाम नरेंद्र प्रताप सिंह था। 20 साल की उम्र में उन्होंने अचानक एक दिन घर छोड़ दिया था। परिवार ने एक-दो साल ढूंढने की कोशिश की, लेकिन कहीं कुछ पता नहीं चला।
इसके बाद साल 2001 में इलाहाबाद कुंभ में परिजनों को पता चला कि वो संत बन गए हैं। तब सभी ने उनके दर्शन भी किए थे। बाघंबरी मठ के महंत बनने के बाद परिजन साल में दो बार उनके दर्शन करने जाते थे, लेकिन घर छोड़ने के बाद फिर वो दोबारा कभी घर वापस नहीं आए।