भीलवाड़ा के अशोक चोटिया के आनंद गिरि बनने की कहानी…
12 साल की उम्र में घर छोड़ा, नरेंद्र गिरि के शिष्य बने; गुरु ने गांव आकर दी थी दीक्षा, एक भाई आज भी लगाते हैं सब्जी की रेहड़ी
पाएं अपने शहर की ताज़ा ख़बरें और फ्री ई-पेपर
डाउनलोड करें
अपनी माता के निधन पर गांव आए थे आनंद गिरि।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़ा के सचिव महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत के मामले में गिरफ्तार आनंद गिरी का नाता राजस्थान के भीलवाड़ा से है। वह आसींद क्षेत्र के सरेरी गांव के रहने वाले हैं। उनका असली नाम ‘अशोक चोटिया’ है। 12 साल की उम्र में वह अपना गांव छोड़ प्रयागराज चले गए थे। भीलवाड़ा के एक गांव का अशोक, स्वामी आनंद गिरि कैसे बना, यह बताने के लिए हम आपको उनके पैतृक गांव ले चल रहे हैं। वही गांव, जहां उनका बचपन बीता। प्रयागराज के महंत नरेंद्र गिरि के आश्रम पहुंचकर उनके शिष्य बने।
पढ़ें आनंद गिरि के गांव से रिपोर्ट….
आनंद गिरि के पिता रामेश्वरलाल।
खुद को घुमंतू योगी बताने वाले आनंद गिरि का भीलवाड़ा जिले के आसींद तहसील के गांव ब्राह्मणों की सरेरी में उनका पैतृक आवास है। यहां इनके परिवार में पिता रामेश्वरलाल किसान, तीन बड़े भाई, एक छोटी बहन है। वहीं, मां नानू देवी का निधन हो चुका है। बताया जा रहा है कि एक भाई सरेरी गांव में ही सब्जी का ठेला लगाते हैं और दो भाई सूरत में कबाड़ का काम करते हैं। पूरा सरेरी गांव आनंद गिरि को एक अच्छे संत के रूप में मानता है। लोग उन्हें शांत और शालीन स्वभाव का बताते हैं।
भीलवाड़ा के आसींद क्षेत्र के सरेरी गांव में आनंद गिरि का घर।
12 साल की उम्र में परिवार को बिना बताए छोड़ा था घर
आनंद गिरि के पैतृक आवास के पास ही चारभुजा मंदिर है। बचपन से ही आनंद गिरि इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए जाया करते थे। 1996 में जब आनंद 12 साल के थे, तभी घर छोड़कर प्रयागराज चले गए थे। परिवार वालों को इसकी जानकारी भी नहीं थी कि वह आखिर कहां गए? बाद में परिजनों को जानकारी मिली कि हरिद्वार के कुंभ में हैं। उनके पिता वहां पहुंचे, लेकिन तब तक वह महंत नरेंद्र गिरि के आश्रम में पहुंच कर उनके शिष्य बन गए थे। 2012 में महंत नरेंद्र गिरि के साथ अपने गांव भी आए थे। नरेंद्र गिरि ने उनको परिवार के सामने दीक्षा दिलाई और वह अशोक से आनंद गिरि बन गए।
5 महीने पहले मां की मौत होने के बाद आनंद गिरि गांव आए थे।
संत बनने के बाद वे दो बार गांव आए हैं। पहली बार दीक्षा लेने के लिए और इसके बाद 5 महीने पहले। जब उनकी मां का देहांत हो गया था। इस दौरान गांव के लोगों ने आनंद गिरि का काफी सत्कार किया था। अचानक से महंत नरेंद्र गिरि की मौत के बाद उन पर लगे आरोपों से पूरा सरेरी गांव सकते में है। गांव के लोगों का कहना है कि संन्यास लेने से पहले आनंद गिरि का नाम ‘अशोक चोटिया’ था।
भीलवाड़ा जिले के आसींद क्षेत्र के सरेरी गांव के मंदिर में परिक्रमा करते आनंद गिरि।
भाई आज भी लगाते हैं सब्जी का ठेला
परिवार के लोगों ने बताया कि आनंद गिरि जब सातवीं कक्षा में पढ़ते थे, तब ही गांव छोड़ प्रयागराज चले गए थे। वह ब्राह्मण परिवार से हैं। पिता गांव में ही खेती करते हैं। सरेरी गांव आनंद गिरि को एक अच्छे संत के रूप में जानता है। उन्हें शांत और शालीन स्वभाव का बताया जाता है।
आनंद गिरि के पैतृक आवास के पास ही चारभुजा मंदिर है। बचपन से ही आनंद गिरि इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए जाया करते थे।
यह लग रहे हैं आरोप
आनंद गिरि शक के दायरे में इसलिए हैं, क्योंकि नरेंद्र गिरि से उनका विवाद काफी पुराना था। इसकी वजह बाघंबरी गद्दी की 300 साल पुरानी वसीयत है, जिसे नरेंद्र गिरि संभाल रहे थे। कुछ साल पहले आनंद गिरि ने नरेंद्र गिरि पर गद्दी की 8 बीघा जमीन 40 करोड़ में बेचने का आरोप लगाया था। इसके बाद विवाद गहरा गया था। आनंद ने नरेंद्र पर अखाड़े के सचिव की हत्या करवाने का आरोप भी लगाया था।