आगामी 1 सितंबर को किसान मनाएंगे राष्ट्रव्यापी विरोध दिवस!
देशभर का किसान विगत 3 वर्षोंं से संघर्ष के पथ पर हैं। विभिन्न राज्यों में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति एवं संयुक्त किसान
– के. पी. मलिक
देशभर का किसान विगत 3 वर्षोंं से संघर्ष के पथ पर हैं। विभिन्न राज्यों में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति एवं संयुक्त किसान मोर्चा के तथा अखिल भारतीय किसान सभा के बैनर तले आंदोलनों का सिलसिला जारी है। गौरतलब है कि लगभग 13 महीने तक दिल्ली की सीमाओं सिंघु बाॅर्डर, गाजीपुर बाॅर्डर, दिल्ली जयपुर मार्ग, शाहजहांपुर बाॅर्डर, पलवल आदि स्थानों पर हमारे साथियों ने पक्के मोर्चे लगाए थे। परिणाम स्वरूप केन्द्र सरकार को और विशेषकर प्रधानमंत्री को राष्ट्र के संबोधन के माध्यम से तीनों काले कृृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा। साथ ही यह भी उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य और अन्य विषयों पर शीघ्र ही बात की जाएगी। संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं से एक संयुक्त हस्ताक्षर युक्त एग्रीमेंट भी केंद्र सरकार से हुआ। लेकिन 6 माह बाद अनुबंध के प्रथम और महत्वपूर्ण बिंदू सभी कृृषि उत्पाद के न्यूनतम समर्थन मूल्य की खरीदारी, क़रीब 700 से अधिक किसान शहीदों के परिवारों को मुआवजा, उनकी स्मृृति में यादगार स्थल बनाए जाने, लगभग 80 हज़ार किसानों पर चल रहे मुकदमों की वापसी तथा किसानों के सहकारी, सरकारी कर्ज की माफी के संबंध में जो लिखित आश्वासन मिला या मौखिक बात हुई उनमें से एक पर भी अमल नहीं हुआ। बल्कि लगभग 1 माह पूर्व सरकार ने एक समिति बनाई। केंद्र सरकार ने 29 सदस्य समिति बनाई जिसमें 5 सदस्य भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय सवयंसेवक संघ से संबंधित किसान संगठनों के नेताओं के नाम तथा बाकि सब कृृषि विश्वविद्यालय के कुलपति और लगभग 12 नाम केंद्रीय सरकार के कृृषि मंत्रालय के पदाधिकारी एवं आईसीएआर के राष्ट्रीय कृृषि अनसंधन विभाग तथा केंद्र सरकार के कृृषि विभाग के अधिकारियों के नाम सम्मिलित किए गए। जबकि केवल तीन स्थान संयुक्त किसान मोर्चा के लिए रखे गए। किसान नेताओं के मुताबिक यह किसान आंदोलन के साथ धोखा था।
संयुक्त किसान मोर्चा की 3 जुलाई 22 की बैठक में भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत एवं उनके साथियों ने यह सुझाव दिया था कि हमें अपने तीन सदस्यों को इस समिति में भेजना चाहिए। जबकि कई तमाम संघर्षरत संगठनों ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। आपको याद होगा सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसे ही 5 सदस्यों के एक समिति का गठन किया था और जिसमें सभी किसान संगठनों की राय मांगी गई थी। सभी किसान संगठनों ने भाजपा और संघ के किसान संगठनों को छोड़कर, सभी किसान संगठनों ने उस समिति का बहिष्कार किया था। मेरा मानना है कि आज किसानों के सामने बड़ी विषम परिस्थितियां हैं। आधे हिंदुस्तान में सूखा जबकि कई राज्यों में बाढ़ की स्थिति ने किसान को हल्कान किया हुआ है। फिलहाल किसान संगठनों का कहना है कि स्वामीनाथन आयोग के सी2+50 फॉर्मूले के अनुसार एमएसपी की गारंटी का कानून बनाया जाए। जबकि केंद्र सरकार ने एमएसपी कमेटी गठित करते हुए किसानों को एमएसपी मिलने की गारंटी देने से साफ इनकार कर रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य, जीरो बजट फार्मिंग को लेकर केंद्र द्वारा बनाई गई कमेटी की पहली बैठक के दिन ही संयुक्त किसान मोर्चे ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। सवाल ये है कि आखिर मोर्चा ने एक बार फिर से सरकार के खिलाफ क्यों आंदोलन शुरू कर दिया है। किसानों का कहना है कि “किसानों द्वारा जब दिल्ली किसान आंदोलन स्थगित किया गया था तब सरकार द्वारा जो लिखित आश्वासन दिया गया था, उन बातों को सरकार ने पूरा करने के बजाय किसानों के साथ विश्वासघात किया है” इस विश्वासघात की वजह से किसानों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक दिवसीय किसान महापंचायत का आह्वान किया। इन मांगों को लेकर देश भर के लगभग डेढ़ दर्जन राज्यों से आए किसानों ने बढ़-चढ़कर आंदोलन में हिस्सा लिया। किसानों ने अपनी मांगों को स्पष्टता से रखते हुए यह साफ कर दिया है कि यदि सरकार आने वाले समय में उनकी मांगों को लेकर गंभीर नहीं हुई, तो एक बार पूरे देश का किसान पूर्व की ही भांति दिल्ली आने को बाध्य होगा। ज़ाहिर है कि किसानों की मांग है कि तत्काल लखीमपुर खीरी मामले के पीड़ित किसान परिवारों को इंसाफ मिले। जेलों में बंद किसानों की रिहाई व केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी की गिरफ्तारी, स्वामीनाथन आयोग के सी2+50 फ़ीसदी फॉर्मूले के मुताबिक़ एमएसपी गारंटी का कानून, देश के सभी किसानों को कर्जमुक्त, बिजली बिल 2022 रद्द हों, गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाए और गन्ने की बकाया राशि का भुगतान, किसान आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए सभी मुकदमे वापस और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों के बकाया मुआवजे का भुगतान तुरन्त हो।
अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय महासचिव अतुल कुमार अनजान कहते हैं कि वर्तमान हालात में कृृषि के उत्पादन गिरने की पूरी संभावनाये व्यक्त की जा रही है। महगाई निरंतर निरंकुश होकर बढ़ती जा रही है जीएसटी ने आम जनों के साथ ग्रामीण भारत की कमर तोड़ दी है। सरकार किसी विषय पर भी गंभीरता से चर्चा नहीं करना चाहती। जीएसटी से हुई आय, पेट्रोल, डीजल, पेट्रोलियम उत्पाद से बेशुमार पैदा दौलत, विदेशी आर्थिक संगठनों से बड़े पैमाने पर ली गई, ऊंची दर पर ब्याज से देश की अर्थव्यवस्था को चलाते सरकार ने हमारे देश की अर्थव्यवस्था सहित देश के सामने गंभीर चुनौती पैदा कर दी है। धार्मिक उन्माद की चाशनी में जन आंदोलनों को कुचला जा रहा है। ऐसी स्थिति में अखिल भारतीय किसान सभा को और मजबूती के साथ आने वाले दिनों में किसान और व्यापक जन संगठनों को संगठित कर देश की अर्थव्यवस्था से बचाने, विदेशी पूंजी के जाल में फंसने से बचाने, विदेशी कर्ज से बचाने, कृृषि लागत दर घटाने के लिए किसानों को कमर कसनी होगी।
हर वर्ष किसानों की समस्याओं को लेकर देशव्यापी स्तर पर 1 सितंबर को देशव्यापी मांग दिवस मनाती रही है। इस बार भी आगामी 1 सितंबर को सभी राज्यों और विभिन्न स्तरों पर कृृषि लागत दर घटाने, डीजल, पेट्रोल, पेट्रोलियम प्रोडक्ट के दाम घटाने, किसानों को उस पर सब्सिडी देने, न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ती, महंगाई पर रोक लगाने, स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों को लागू करने, संसद में प्रस्तावित बिजली बिल को संपूर्णता में वापस लेने, खेती किसानी के लिए किसानों को निःशुल्क बिजली देने, सरकारी और सहकारी कर्जे को माफ करने, आवारा पशुओं से किसानों की फसल को बचाने, किसानों पर चल रहे मुकदमों को वापस लेने, लखीमपुर खीरी के किसानों की हत्या के दोषियों को सजा दिए जाने आदि मांगों को लेकर व्यापक स्तर पर-मांग दिवस प्रतिरोध दिवस, मशाल जुलूस, जनसभा आयोजित किए जाएं एवं ज्ञापन पत्र दिये जाएंगे। अखिल भारतीय किसान सभा के सभी यूनिटों से यह आह्वान किया गया है कि 1 सितंबर 2022 को शानदार तरीके से किसान मांग दिवस को आयोजित करें और नव निर्वाचित राष्ट्रपति सुश्री द्रौपदी मुर्म को गर्वनर और जिला कलेक्टर के माध्यम से ज्ञापन प्रेषित करेंगे। कामगारों, मजदूरों, नौजवानों, छात्रों, महिलाओं, राज्य सरकारों के कर्मचारियों, व्यापारियों, ग्रामीण भारत के विभिन्न हिस्सों का सहयोग लेकर इसे शानदार बनाएं और प्रभावी प्रतिरोध का आयोजन किया जाएगा।
बहरहाल देशभर में किसानों की हालत को देखते हुए केंद्र सरकार को तत्काल निर्णय लेना चाहिए कि न्यूनतम समर्थन मूल्यों की सार्थकता के लिये खरीद की गारंटी का कानून केंद्र अथवा राज्य या दोनों के मिलकर बनाना चाहिए। जिससे आयात निर्यात नीति को उत्पादक किसानो के अनुकूल बनाने, उपजों के लागत मूल्यों को घटाने, औसत उचित गुणवक्ता के मापदंडों के निर्धारण में किसान प्रतिनिधियों की भागीदारी सुनिश्चित करने, फसल विविधिकरण के लिये तिलहन, दलहन, बाजरा एवं बाजरा जैसे सभी मोटे अनाजों की खरीद की नीति गेहू और धान जैसी बनाने, किसानो की खुशहाली के लिये “हर किसान का यही पैगाम-खेत को पानी फसल को दाम” को मंत्र के रूप में उपयोग में लेने, उत्पादक को लाभकारी मूल्य एवं उपभोक्ताओ को कम दामों पर कृषि उपजों की उपलब्धता को सुलभ करते हुए लूट से बचाने की आवश्यकता है। ज़ाहिर है कि जल्दी ही भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है, जहां पर सबसे ज्यादा जनसंख्या रहती है। जबकि हमारे पास दुनिया की केवल 2.30 फ़ीसदी धरती है, लेकिन यहां दुनिया की क़रीब 17 फ़ीसदी आबादी निवास करती है। इसलिए इतनी बड़ी आबादी का पेट भरने के लिए भारत को कृषि में नई तकनीकी शिक्षा और संसाधनों के माध्यम से बढ़िया खेती प्रबंधन के माध्यम से भरपूर अनाज उगाने और उसको सही दाम पर उपभोक्ता तक पहुंचाने के उपाय करने होंगे। आज श्रीलंका और यूक्रेन में पैदा हुए संकट से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि पूरा खाद्यान्न इन्हीं किसानों को उगाना है। इसलिए खाद्यान्नों की उत्पादकता बढ़ाने और उसके वाजिब और सही दाम तय करने के उपाय करने होंगे। जिससे कि हम अपने देश की इतनी बड़ी आबादी का आसानी से पेट भर सकें और दुनिया के देशों को निर्यात करके देश के विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि कर सके। जाहिर है कि देश के मुद्रा भंडार में वृद्धि होगी तो परिणाम स्वरूप किसान खुशहाल होगा और देश में चल रहे तमाम किसान आंदोलन निश्चित ही समाप्त होंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)