बुंदेलखंड में फैला है बैंकों का मायाजाल, बैंकों में हावी दलाली प्रथा का बुदेंली किसानों को करना पड़ता है सामना
- किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ लेने के लिए अन्नदाताओं को देना पड़ता है मोटा कमीशन
- कार्ड रिन्यूवल कराने के लिए पहले जेब से चुकानी पड़ती है भारी रकम
- बैंक की प्रताड़ना के चलते कई किसान अब तक कर चुके हैं आत्महत्या
- महाराष्ट्र मध्य प्रदेश के बाद किसान आत्महत्या से जुड़े मामलों में आता है बुदेंलखंड का भी नाम
सरकारें बदलीं हुक्मरान बदले लेकिन बुंदेली धरा से जुड़े अन्नदाताओं की बदहाल किसमत न बदल सकी। पिछले कई वर्षों से सूखे की मार का कड़वा घूट पीते आ रहे इन किसानों की दुदर्शा आज किसी से भी नही छुपी है। प्रदेश में माया अखिलेश के बाद आई योगी सरकार में भी इन किसानों को शोशण और भृष्टाचार जैसी महामारी का सामना करना पड़ रहा है। वीर आल्हा ऊदल के शौर्य का प्रतीक माने जाने वाले बुदेंलखंड से हर वर्ष किसान आत्महत्या से जुड़े कई मामले निकल कर सामने आतें हैं। मृतक किसान के परिजनों को संतुष्ट करने के लिए काबिज हुक्मरानों द्वारा जांच भी बैठाई जाती है लेकिन सरकारी खाना पूर्ति तक सीमित हो चुकीं इन जांचों में दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही तो छोड़िये ठोस परिणाम भी निकल कर सामने नही आ पातें हैं।
बैंक दलालों के चंगुल में जा फसतें हैं किसान
पिछले कई वर्षों से बुंदेली किसानों को सूखे जैसे हालात का सामना करना पड़ रहा है। जिसके चलते दूसरे का पेट भरने वाले ये अन्नदाता अब स्वम ही दो जून की रोटी के लिए मोहताज हो चलें हैं। सूखे के चलते न तो अनाज की पैदावार हो पाती है और न ही फसल बोने के दौरान उपयोग में लाया गया अनाज का बीज तक लौट पाता है। ऐसी सूरत में न चाहते हुए भी अन्नदाता को किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ लेने के लिए बैंकों की तरफ रूख करना पड़ता है। किसानों को समय से ऋण देने की सरकार चाहे जितनी भी घोषणाएं करे लेकिन बुंदेलखंड में तब तक किसान को लोन नही दिया जाता है जब तक बैंक में काबिज दलाल किसान की सिफारिश साहब से न करें। बैंक दलाल द्वारा की जाने वाली ये सिफारिश पूर्ण रूप से कमीशन पर निर्भर होती है। जितना अधिक कमीशन उतनी ही जल्द किसान की फरियाद पर सरकारी मोहर लगा दी जाती है। दलाल द्वारा लिया जाने वाला ये कमीशन 05 प्रतिशत से लगाकर 10 फीसदी तक होता है।
चक्रव्यद्धि ब्याज लगाकर वसूली जाती है रकम
बुंदेलखंड में किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ लेने वाले भोले भाले अन्नदाताओं से चक्रव्यद्धि ब्याज लगाकार लोन की रकम अधिकारियों द्वारा वसूल की जाती है। मात्र कुछ हजार का किसान क्रेडिट कार्ड कुछ वर्षों में ही लाख के आकड़े को छू लेता है। क्रेडिट कार्ड बनवाते समय अन्नदाता के खाते से फसल बीमा तो समय से काट लिया जाता है लेकिन बेबुनियाद नियमों का हवाला देकर कभी इस फसल बीमे का लाभ किसान तक नही पहुचाया जाता है। सरकारी गाइडलाइंन की अगर माने तो किसान द्वारा लोन के रूप में ली गई रकम का दोगुना भुगतान तक वसूला जा सकता है तो वहीं दूसरी तरफ अपनी मनमानी चलाकर बैंक में काबिज अधिकारियों द्वारा किसान से कई गुना ज्यादा की रकम वसूल की जाती है। ऐसी स्थित में या तो किसान को बैंक से लिए गए ऋण का भुगतान न चाहते हुए भी करना पड़ता या फिर बैंक दलालों द्वारा उसे कार्ड के रिन्यूवल कराने की एवज में 20 से 25 फीसदी तक की काली कमाई की जाती है। कुल मिलाकर अगर कहें तो शोशण का शिकार अन्नदाता को ही बनाया जाता है या तो ऋण वसूली के नाम पर या फिर किसान क्रेडिट कार्ड के रिन्यूवल के नाम पर।
रिकवरी और कुर्की के सहारे बनाया जाता है दबाव
बैंक ऋण न चुका पाने की स्थित में बैंक अधिकारियों द्वारा परेशान किसान को नोटिस भेजकर दबाव बनाया जाता है। उसके बाद भी अगर किसान लोन का भुगतान मजबूरी वश नही कर पाता है तो सरकारी मुलाजिमों से कुर्की जैसे आदेश पारित करवा दिए जातें हैं। सरकार भले ही किसानों को कुर्की से दूर रखने की बात करती है लेकिन अति पिछड़े बुन्देलखंड में बैंक अधिकारियों द्वारा रचा जाने वाला ये कुचक्र अब एक प्रचलन का रूप ले चुका है। एैसे गंभीर हालातों का सामना कर रहें किसान को रोज जीने मरने जैसी मासिंक स्थित से गुजरना पड़ता है। पेट भर निवाले को मोहताज बुंदेली किसान कैसे इन हालातों का सामना करतें है ये अपने आप में झंझोर देने वाला सवाल है।
समाजिक रूप से की जाती है किसानों की बेइज्जती
नोटिस और कुर्की की मार झेलने के साथ ही किसानों को घोर बेइज्जती का भी सामना करना पड़ता है। समय समय पर बैंक अधिकारियों द्वारा न सिर्फ किसानों को प्रताड़ित किया जाता है बलकि अपशब्द और असमाजिक भाषा का प्रयोग कर किसान की बची कुची इज्जत को भी सरेआम नीलाम कर दिया जाता है। परिजनों और पास पड़ोस में रहने वाले व्यक्तियों के सामने की जाने वाली इस असमाजिक बेज्जती से किसान न सिर्फ आहत होता है बलकि कभी कभी मौत का रास्ता चुनने को भी मजबूर हो जाता है। किसान द्वारा की जाने वाली आत्महत्या के बाद एफआईआर भी दर्ज की जाती है लेकिन जांच में या तो किसान को नशे का आदी बता दिया जाता है या फिर मौत के पीछे गृह कलेश की दुहाई दे दी जाती है। सरकारी रूप से की जाने वाली तफ्तीश के दौरान न तो बैंक अधिकारियों द्वारा की जाने वाली प्रताड़ना का कभी जिक्र किया जाता है और न ही दोषियों के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही अमल में लाई जाती है। जीते जी तो किसान बैंक का कर्जदार रहता ही है मरने के बाद भी उसे बैंक का कर्जदार दिखाया जाता है। कुल मिलाकर अगर कहें तो किसान क्रेडिट कार्ड का लाभ लेने वाला किसान जितना पहले दुखी था उससे कहीं ज्यादा आज दुखी है तो वहीं बैंक अधिकारियों और दलालों की काली कमाई पहले भी थी और आज भी बदस्तूर जारी है।