यूपी में आलू के दामों की गिरावट की वजह से ,किसान रोने के लिए मजबूर..

उत्तर प्रदेश –किसानों की उपेक्षा करके तथा उन्हें दीनावस्था में रखकर उत्तर प्रदेश को कभी समृद्ध और ऐश्वर्यशाली नहीं बनाया जा सकता । किसान साल भर मेहनत करता है, अन्न पैदा करता है तथा प्रदेशवासियों को खाद्यान्न प्रदान करता है, किंतु बदले में उसे मिलती है उपेक्षा।  वह अन्नदाता होते हुए भी स्वयं भूखा और अधनंगा ही रहता है।यह होली का त्यौहार भी किसानों के लिए दुख का साथी रहा, क्योंकि राज्य में आलू की अधिकता है। फसल की अच्छी पैदावार के बावजूद वे अपनी उपज की लागत लागत भी वसूल नहीं कर पा रहे हैं।रायबरेली, उन्नाव, अमेठी, सुल्तानपुर और प्रयागराज यूपी के कुछ आलू उत्पादक क्षेत्र हैं।

 

इस वर्ष उत्तर प्रदेश में आलू की खेती के तहत क्षेत्रों में लगभग 18% की वृद्धि देखी गई। रायबरेली के किसान रामबरन जिन्होंने कहा आलू की खेती अच्छी हुई है और साथ कहा कि मौसम के अनुकूल रहने से उत्पादन में वृद्धि हुई है। लेकिन बाजार में 10 से 12 रुपये में बिकने वाले आलू के थोक बाजार में किसानों को 3-4 रुपये प्रति किलो मिल रहे हैं। अकेले उत्पादन की लागत लगभग 4 रुपये प्रति किलोग्राम रही है। और इस तरह किसान घाटे में चल रहे हैं। हम खेती करना बन्द कर देगे जब सरकार सहयोग नहीं करेगी तो क्या कर सकते हैं। इतने कम दामों में कैसे परिवार चलाएंगे।दाम कम होने की वजह इस सीजन में अच्छी पैदावार है। पिछले साल, आलू का बाजार वास्तव में अच्छा था। थोक मंडियों में किसानों ने अपनी उपज 8-10 रुपये में बेची। इस वजह से इस सीजन में फसल की खेती ज्यादा हुई। लेकिन इससे हमें नुकसान हुआ है।

 

सुल्तानपुर के अबिलाश मौर्य का कहना है कि राज्य में फूड प्रोसेसिंग की कोई व्यवस्था नहीं है। हमें कुछ चिप्स फैक्ट्रियों की जरूरत है। जहां हमारी फसल का उपयोग किया जा सके। नहीं तो यह सब बर्बाद हो जाएगा।किसान अपने आलू का भंडारण करने के लिए कोल्ड स्टोरेज में कतार लगा रहे हैं। वे आशंकित हैं कि बढ़ते तापमान से आलू की बहुत बर्बादी होगी।जानकारी के मुताबिक, यूपी में 697 से ज्यादा कोल्ड स्टोरेज हैं। लेकिन चूंकि इस बार उत्पादन अच्छा रहा है, इसलिए इन भंडारणों में क्षमता से अधिक भर जाने की संभावना है और किसानों को अपनी उपज कम कीमतों पर बेचनी होगी।

किसान जो अपने आलू को संग्रहीत करने का प्रबंधन करते हैं, वे सुरक्षित रहेंगे। लेकिन दूसरों को भारी नुकसान उठाना तय है। वहीं इन स्थियो 30% उपज के खराब होने की संभावना है या किसान इसे 1-2 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचने के लिए मजबूर होंगे। यूपी के अलग-अलग जिलों से जब किसानों से बात की गई तो सबके अपने अलग-अलग दर्द थे किसी ने सरकार से आवाहन किया तो किसी ने खेती छोड़ने का फैसला लिया। लेकिन यूपी का किसान बेहाल है।

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