अब इस मुद्दे पर राजनीति नही, कोई ठोस नीति चाहिए, बोले पूर्व पीएम मनमोहन सिंह
शुक्रवार को NSSO द्वारा जीडीपी के आंकड़ों के अनुसार देश की जीडीपी 6 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। आंकड़े सामने आने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश की आर्थिक स्थिति पर चिंता जताई है। बता दें कि किसी भी देश की आर्थिक सेहत को मापने का सबसे अहम पैमाना जीडीपी के आंकड़े होते हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि देश की आर्थिक स्थिति क्या है और आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्था की क्या दिशा होगी।
देश की अर्थव्यवस्था को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि ‘स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। आज जारी किए गए जीडीपी के आंकड़े 4.5% तक हैं। यह स्पष्ट रूप से अस्वीकार्य है।’ मनमोहन ने स्पष्ट कहा कि ‘मैं देश के एक जागरूक नागरिक की तरह ये सब कह रहा हूं। इसमें राजनीति को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि ‘हमारे देश की आकांक्षा 8-9% की दर से बढ़ना है। सकल घरेलू उत्पाद का 5% से 4.5% तक की तीव्र गिरावट चिंताजनक है। आर्थिक नीतियों में बदलाव से अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में मदद नहीं मिलेगी।’
हो सकते हैं खतरनाक परिणाम
पूर्व प्रधानमंत्री सिंह ने कहा कि ‘आज ऐसा कोई नहीं है जो मंदी और इसके खतरनाक परिणाम से इनकार कर सकें। जीडीपी का गिरना चिंता का विषय है। हमें सोसायटी को डर के माहौल से निकाल कर भरोसे के माहौल में ले जाना होगा। हमारा आपसी विश्वास का सामाजिक ढांचा अब तहस नहस हो चुका है। कई व्यवसायी मुझे बताते हैं कि वो डर के माहौल में जी रहे हैं कि उन्हें प्रताणित किया जा सकता है। इस सबका कारण सरकार की नीतियां हैं। मोदी सरकार सबको शक की नजर से देखती है। पहले की सरकारों के सब फैसलों को गलत मानकर चलते हैं। जबकि सरकार को भारत के किसानों, व्यवसायी और नागरिकों को विश्वास की नजर से देखना होगा।’
उन्होंने कहा, ‘हमें अपने समाज में मौजूदा माहौल को एक डर से बदलकर अपनी अर्थव्यवस्था के लिए 8% प्रति वर्ष की दर से विकसित करने की आवश्यकता है। अर्थव्यवस्था की स्थिति अपने समाज की स्थिति का प्रतिबिंब है। विश्वास का हमारा सामाजिक ताना-बाना अब टूट गया है।’ उन्होंने कहा कि ‘पूर्ण बहुमत और तेल के कम अंतरराष्ट्रीय दाम एक ऐसा मौका थे जो कई जेनरेशन में एक बार मिलते हैं। सरकार को इसका फायदा उठाना चाहिए था।’
गौरतलब है कि चालू वित्त वर्ष के दूसरी तिमाही यानी जुलाई-सितंबर माह के लिए सकल घरलू उत्पाद यानी जीडीपी ग्रोथ रेट घटकर 4.5 फीसदी के स्तर पर आ गया है। इसके पहले की तिमाही में यह जीडीपी दर 5 फीसदी के स्तर पर था। यह पिछली 26 तिमाही में सबसे कम है। पहली तिमाही में विकास दर 5 फीसदी पर आ गई है। वहीं, पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में जीडीपी ग्रोथ रेट 7 फीसदी दर्ज की गई थी। आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019-20 की जुलाई-सितंबर के दौरान स्थिर मूल्य (2011-12) पर जीडीपी 35.99 लाख करोड़ रुपये रहा जो पिछले साल इसी अवधि में 34.43 लाख करोड़ रुपये था।
जीडीपी का असर आम इंसान पर
बता दें कि देश की जीडीपी के ये आंकड़े मुख्य तौर पर आठ औद्योगिक क्षेत्रों- कृषि, खनन, मैन्युफैक्चरिंग, बिजली, कंस्ट्रक्शन, व्यापार, रक्षा और अन्य सेवाओं पर निर्भर होते हैं। देश की जीडीपी का असर आम लोगों पर भी पड़ता है। जीडीपी के आंकड़ों में गिरावट की वजह से औसत आय कम हो जाती है और लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। इसके अलावा नई नौकरियां पैदा होने की रफ्तार भी सुस्त पड़ जाती है। वहीं लोगों का बचत और निवेश भी कम हो जाता है। ऐसे में लोगों की खरीददारी, और उसके अनुरूप कंपनियो की प्रोडक्शन घट जाती है।