इंग्लैंड की डेज़ी रॉकवेल को मिलेगा सातवां ’वाणी फ़ाउंडेशन गण्यमान्य अनुवादक पुरस्कार
22 जनवरी को जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल में दिया जाएगा यह सम्मान
नई दिल्ली। साहित्य के क्षेत्र में एक बड़ी घोषणा की गई है। वर्ष 2023 का सातवाँ ’वाणी फ़ाउंडेशन गण्यमान्य अनुवादक पुरस्कार’ डेज़ी रॉकवेल को वैश्विक साहित्यिक परिदृश्य में हिन्दी और उर्दू भाषा के प्रति योगदान के लिए प्रदान किया जायेगा। डेज़ी को उनके द्वारा अनूदित पुस्तक ‘टॉम्ब ऑफ़ सैंड’ के लिए अन्तरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। पुरस्कार समारोह 22 जनवरी, 2023 को शाम 5ः00 बजे वार्षिक जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल 2023 में जयपुर बुकमार्क के दौरान आयोजित किया जायेगा।
बता दें कि डेज़ी रॉकवेल उत्तरी न्यू इंग्लैंड में रहने वाली हिन्दी और उर्दू साहित्य की अनुवादक और चित्रकार हैं। वह अपने तख़ल्लुस, ’लापता’ के तहत चित्रकारी भी करती हैं। रॉकवेल पश्चिमी मैसाचुसेट्स में कलाकारों के एक परिवार में जन्मी हैं। दक्षिण एशियाई साहित्य में पीएच.डी. करने के उपरांत उन्होंने हिन्दी लेखक उपेन्द्रनाथ अश्क पर एक किताब भी लिखी। रॉकवेल के हिन्दी और उर्दू में कई अनुवाद प्रकाशित हुए हैं, जिनमें अश्क की ‘फॉलिंग वॉल्स’ (2015), भीष्म साहनी की ‘तमस’(2016) और खदीजा मस्तूर की ‘द वूमेंस कोर्टयार्ड’ शामिल हैं। कृष्णा सोबती के अन्तिम उपन्यास, ‘ए गुजरात हियर, ए गुजरात देयर’ (पेंगुइन, 2019) के उनके अनुवाद को 2019 में साहित्यिक अनुवाद के लिए एल्डो और जीन स्कैग्लियोन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2021 में डेज़ी द्वारा अनूदित पुस्तक ‘टॉम्ब ऑफ़ सैंड’ के लिए अन्तरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार प्राप्त हुआ है। रॉकवेल ने ‘द लिटिल बुक ऑफ़ टेरर’, ‘ग्लोबल वॉर ऑन टेरर’ (फॉक्सहेड बुक्स, 2012) पर चित्रों और निबन्धों की एक श्रृंखला लिखी है, और उनका उपन्यास ’टेस्ट’ अप्रैल 2014 में फॉक्सहेड बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया था।
इस घोषणा के बाद अनुवादक डेज़ी रॉकवेल ने कहा कि ’एक अनुवादक के रूप में मैंने कई वर्ष एकांत में चुपचाप सिर्फ़ अनुवाद करने में गुज़ारे। वाणी फाउंडेशन डिस्टिंग्विश्ड ट्रांसलेटर पुरस्कार उन एकांत में बिताये क्षणों के प्रति सम्मान है, और इसे प्राप्त कर मैं बहुत ख़ुश और गौरवान्वित हूँ।’
वाणी फ़ाउंडेशन और टीमवर्क आर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से प्रत्येक वर्ष जयपुर बुकमार्क (जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल) में ‘वाणी फाउंडेशन गण्यमान्य अनुवादक पुरस्कार’ प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार उन अनुवादकों को दिया जाता है जिन्होंने निरन्तर और कम-से-कम दो भारतीय भाषाओं के बीच साहित्यिक और भाषाई सम्बन्ध विकसित करने की दिशा में गुणात्मक योगदान दिया है। भारतीय और अन्तरराष्ट्रीय भाषाओं के बीच सीधे आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करने के लिए पहल की कमी के आलोक में यह पुरस्कार आवश्यक समझा गया। यह पुरस्कार विशेष रूप से उन अनुवादकों का समर्थन करता है जिन्होंने एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक संग्रह तैयार किया है। इसमें ट्रॉफी और प्रशस्ति पत्र के अलावा एक लाख भारतीय रुपये या समकक्ष मौद्रिक राशि प्रदान की जाती है। यह पुरस्कार 2023 में अपने 7वें संस्करण में है। इस पुरस्कार के सम्मानित निर्णायक मण्डल में नमिता गोखले (संस्थापक और सह-निदेशक, जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल), नीता गुप्ता (भारतीय भाषा की प्रकाशन सलाहकार) और संदीप भूतोड़िया (सांस्कृतिक कर्मी व प्रभा खेतान फ़ाउंडेशन ट्रस्टी) शामिल हैं।
पुरस्कार का अब तक का सफ़रः
ऽ अत्तूर रवि वर्मा (2015-2016) : मलयालम
ऽ अनामिका (2016-2017) भोजपुरी
ऽ रीता कोठारी (2017-2018) : सिन्धी
ऽ तेजी ग्रोवर (2018-2019) : हिन्दी
ऽ रख्शंदा जलील (2019-2020) : उर्दू
ऽ अरुणावा सिन्हा (2021-2022) : बंगला
इस सम्मान के तहत वर्ष 2016 का प्रथम ’वाणी फ़ाउंडेशन गण्यमान्य अनुवादक पुरस्कार’ मलयालम कवि अत्तूर रवि वर्मा को मलयालम से तमिल अनुवाद के लिए प्रदान किया गया। वर्ष 2017 में यह पुरस्कार प्रख्यात अनुवादक, कवयित्री, लेखिका और आलोचक डॉ. अनामिका को भोजपुरी से हिन्दी अनुवाद के लिए दिया गया। वर्ष 2018 में सांस्कृतिक इतिहासज्ञ और अनुवादक डॉ. रीता कोठारी को सिन्धी से अंग्रेज़ी अनुवाद के लिए दिया गया और वर्ष 2019 में इस पुरस्कार से प्रख्यात कवि, कथाकार, अनुवादक और चित्रकार तेजी ग्रोवर को नवाज़ा गया। वर्ष 2020 में उर्दू से अनुवाद के लिए रख्शंदा जलील को पुरस्कृत किया गया है। 2021 का पुरस्कार अनुवादक, लेखक और शिक्षाविद् अरुणावा सिन्हा को बंगला से अंग्रेज़ी अनुवाद के लिए प्रदान किया गया है।