ईद पर जुलूस बैन, याचिका खारिज:कोर्ट ने कहा-राहत देने का अधिकार नहीं;

'उसकी देन कमेटी' ने आयोजन रोकने पर लगाई थी याचिका

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुना दिया है।

ईद मिलादुन्नबी पर्व पर शासन ने वक्फ बोर्ड की अनुशंसा पर इस बार धार्मिक आयोजनों पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस आदेश के खिलाफ बिलासपुर के मुस्लिम समुदाय ने हाईकोर्ट की शरण ली थी। प्रकरण की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने ये कहते हुए याचिका खारिज की उन्हें इस फैसले में राहत देने का अधिकार नहीं है।

हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कहा कि यह राज्य का नीतिगत निर्णय है। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के तहत राज्य के नीतिगत फैसलों पर यह कोर्ट कोई निर्णय नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा कि इस समय कोरोना की परिस्थितियां भी हैं, लिहाजा यदि किसी जिले में जुलूस आयोजन की अनुमति दी गई और किसी में नहीं तो ऐसे में व्यवस्था का संकट खड़ा हो जाएगा। यह निर्णय प्रशासन और राज्य शासन ही ले सकता है। इस फैसले के बाद साफ हो गया कि छत्तीसगढ़ में मंगलवार को ईद पर कहीं जुलूस, रैली और बड़े आयोजन नहीं होंगे।

बिलासपुर की ‘उसकी देन कमेटी’ के अध्यक्ष हाजी गफूर हुसैन ने अधिवक्ता विवेक श्रीवास्तव के माध्यम से याचिका दायर की थी। इसमें वक्फ बोर्ड एवं छत्तीसगढ़ सरकार के जारी आदेश को चुनौती दी गई थी। याचिका में बताया गया है कि वक्फ बोर्ड को मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों की देखरेख व संरक्षित करने की जिम्मेदारी दी गई। वक्फ बोर्ड को समुदाय के धार्मिक आयोजनों पर फतवा जारी करने का कोई अधिकार नहीं है।

याचिका में बताया गया था कि राज्य शासन ने वक्फ बोर्ड की अनुशंसा पर ईद मिलादुन्नबी पर्व पर किसी प्रकार के जुलूस निकालने, जलसा व सामूहिक आयोजन नहीं करने का आदेश जारी किया है। इस आदेश के अनुसार ही कलेक्टर ने भी यहां समाज के धार्मिक आयोजन को बैन करने का आदेश दिया है। याचिका में वक्फ बोर्ड व शासन के आदेश को संवैधानिक अधिकारों का हनन बताया गया है। इस प्रकरण में सोमवार को ही याचिका दायर कर अर्जेंट हियरिंग करने की मांग की गई थी। हाईकोर्ट ने इस प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए सुनवाई की और शासन-प्रशासन का भी पक्ष सुना। सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया है।

धार्मिक आयोजन से वंचित नहीं किया जा सकता
याचिका में कहा गया है कि राज्य शासन व जिला प्रशासन ने धार्मिक आयोजन पर प्रतिबंध लगाकर समुदाय को उनके आयोजन से वंचित किया है। वह भी सिर्फ वक्फ बोर्ड की अनुशंसा को आधार बनाकर शासन ने आदेश जारी किया है। जबकि, वक्फ बोर्ड को इस तरह से समुदाय के धार्मिक आयोजनों पर फैसला लेने का कोई अधिकार ही नहीं है।

नवरात्रि पर गरबा व दशहरा पर्व के आयोजनों पर उठाए सवाल
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता रोहित शर्मा ने इस मामले में तर्क देते हुए मुस्लिम लॉ कमेटी, वक्फ बोर्ड के अधिकार क्षेत्र पर बहस की। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि कोविड प्रोटोकॉल के तहत राज्य शासन व जिला प्रशासन ने प्रदेश में सभी जगहों पर नवरात्रि व दशहरा पर्व पर गरबा व उत्सव मनाने की अनुमति दी है। उसी तरह मुस्लिम समुदाय को भी निर्धारित शर्तों के तहत धार्मिक आयोजन करने की अनुमति दी जाए।

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