अफगानिस्तान के दुर्लभ ‘खजाने’ पर ड्रैगन की काली नजर, हड़पने के लिए शी जिनपिंग ने बनाया प्लान
दुनियाभर के समुद्रो से मछली की चोरी करने वाला चीन अब अफगानिस्तान की अकूत खनिज संपदा, जो अफगानिस्तानियों के लिए खजाने से भी बढ़कर है, उसपर अब चीन की नजर पड़ गई है और उसे हड़पनमे के लिए चीन ने प्लान बनाना शुरू कर दिया है। अफगानिस्तान के अंदर मची लड़ाई का फायदा उठाने के लिए चीन अपनी जीभ लपलपा रहा है। जिस खजाने पर अफगानिस्तान के एक एक लोगों का हक है, उसे वो आपसी लड़ाई में गंवा रहे हैं। जिस खजाने की बदौलत आज अफगानिस्तान बहुत बड़ी वैश्विक ताकत बन सकता था, अब उस खजाने को लूटने की फिराक में चीन लगा हुआ है।
अफगानिस्तानी खजाने पर चीन की नजर
अफगानिस्तान का जिक्र आमतौर पर तालिबान, युद्ध से तबाह शहरों और गरीबी को ध्यान में रख कर कर दिया जाता है। हालांकि, भारत के इस पड़ोसी देश के पास वास्तव में ऐसा छिपा हुआ खजाना है, जो आने वाले समय में पूरी दुनिया को अपनी तरफ आकर्षित कर सकता है। दरअसल, जब भारतीय उपमहाद्वीप एशिया से टकराया था, तब धरती पर मौजूद दुर्लभ खनिजों का विशाल भंडार अफगानिस्तान के गर्भ में जमा हो गया था। इन खनिजों के खनन से इस देश का भाग्य पूरी तरह से बदल सकता है, लेकिन सबसे बड़े चोर चीन की नजर उस खजाने पर पड़ गई है।
अमेरिका ने खोजा था खजाना
2004 में अमेरिका द्वारा तालिबान की सत्ता को बर्खास्त कर दिया गया। जिसके बाद अमेरिकन जियोलॉजिकल सोसायटी के सर्वेक्षण ने अफगानिस्तान के अंदर एक सर्वेक्षण शुरू किया था। 2006 में अमेरिकी शोधकर्ताओं ने चुंबकीय गुरुत्वाकर्षण और हाइपरस्पेक्ट्रल सर्वेक्षणों के लिए हवाई मिशन भी किए थे। जिसमें पता चला था कि अफगानिस्तान में अकूत मात्रा में लोहा, तांबा, कोबाल्ट, सोना के अलावा औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण लिथियम और नाइओबियम के विशालकाय खनिज मौजूद है। ये ऐसे खनिज हैं, जो रातों रात किसी भी देश की तकदीर को हमेशा के लिए बदल सकते हैं।
धरती में छिपा है सोने का भंडार
इन सब खनिजों में से लिथियम की मांग के कारण अफगानिस्तान को ‘सऊदी अरब’ भी कहा जाता है। दरअसल, लैपटॉप और मोबाइल की बैटरी में लिथियम का इस्तेमाल होता है। अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन ने ही कहा था कि अफगानिस्तान का लिथियम सऊदी अरब बन जाएगा। जलवायु परिवर्तन को देखते हुए यह तय है कि आने वाले वक्त में जीवाश्म ईंधन की जगह इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मांग काफी ज्यादा बढ़ने वाली है। ऐसे में लिथियम जैसे खनिजों की भारी मौजूदगी अफगानिस्तान की किस्मत हमेशा हमेशा के लिए बदल सकती है, बशर्ते उसका सही तरीके से इस्तेमाल है और वो इस्तेमाल अफगानिस्तान के अंदर बनने वाली सरकार करे। उसपर किसी बाहरी शक्ति का नियंत्रण ना हो।
जीभ लपलपा रहा है ड्रैगन
अफगानिस्तान में नरम धातु नाइओबियम भी पाया जाता है, जिसका उपयोग सुपरकंडक्टर स्टील बनाने के लिए किया जाता है। और आपको बता दें कि सुपरकंडक्टर कितना जरूरी है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि 2 महीने पहले एक नामी कार कंपनी को सुपरकंडक्टर के अभाव की वजह से अपना प्रोडक्शन बंद करना पड़ा था। इतने दुर्लभ खनिजों की मौजूदगी के कारण यह माना जाता है कि आने वाले समय में दुनिया तेजी से खनन के लिए अफगानिस्तान की तरफ रुख करेगी। अब तक अमेरिका यहीं बना हुआ था और उसने एक तरह से अफगानिस्तान की खनिज संपदा की रक्षा ही की है, लेकिन अब चीन ने अफगानिस्तान की तरफ देखना शुरू कर दिया है। और उस खजाने को हासिल करने के लिए चीन ने रीब 62 अरब डॉलर की बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत अफगानिस्तान तक सीपीसी यानि चीन पाकिस्तान कॉरिडोर का विस्तार करने की कोशिश काफी तेज कर दी है। एक बार अगर बेल्ट एंड रोड परियोजना बन जाता है, तो फिर अफगानिस्तान की खनिज संपदा को चीन के हाथ में जाने से कोई नहीं रोक सकता है। क्योंकि, सब जानते हैं कि अफगानिस्तान के अंदर मची लड़ाई का फायदा उठाने में चीन कोई कमी नहीं करेगा।
अब तक गरीब क्यों है अफगानिस्तान?
एक रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में एक ट्रिलियन डॉलर के संसाधन हैं, लेकिन हर साल सरकार को खनन से 30 करोड़ डॉलर के राजस्व का नुकसान ही होता है। अफ़ग़ानिस्तान खराब सुरक्षा, कानूनों की कमी और भ्रष्टाचार के कारण अपने खनिज क्षेत्र को ना विकसित कर पाया है और ना ही उसकी पुरक्षा करने में समर्थ नजर आ रहा है। बिगड़ते बुनियादी ढांचे के कारण अफगानिस्तान में परिवहन व्यवस्था भी बेहद खराब है साथ ही सरकार के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वो खनिजों का खनन कर सके। इन सब वजहों से खनन ने देश के सकल घरेलू उत्पाद में केवल 7-10% का योगदान दिया। ऐसे में अगर चीन अफगानिस्तान में अपनी जड़ें जमाता है तो जाहिर तौर पर अफनागिस्तान को फायदा से ज्यादा नुकसान होगा।