क्या मोदी की विदेश नीति फ्लॉप ? पाकिस्तानी जेल में भारतीय मछवारे ने क्यों लगाई फांसी ?

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से मन को झकझोर देने वाला एक मामला सामने आया है। यहां के मछलीशहर क्षेत्र के बसिरहा गांव निवासी घूरहू बिंद, एक साधारण मछुवारा, अपने परिवार का पेट पालने के लिए 2021 में गुजरात गया था। समुद्र में मछली पकड़ने के दौरान उसकी नाव 8 फरवरी 2022 को गलती से पाकिस्तान की जलसीमा में चली गई। पाकिस्तानी रेंजरों ने उसे और उसके साथियों को गिरफ्तार कर कराची जेल में बंद कर दिया।
दो साल से अधिक समय तक जेल में अमानवीय यातनाएं झेलने के बाद, आखिरकार घूरहू ने आत्महत्या कर ली। वह अपने पीछे चार बेटियाँ और दो बेटे छोड़ गया, जिनका भविष्य अब अंधकार में है।
क्या इसलिए नहीं हुई सुनवाई क्योंकि वह गरीब था?
घूरहू के परिजन और गांववाले इस घटना को सीधे तौर पर भारत सरकार की उदासीन विदेश नीति से जोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि अगर मृतक किसी प्रभावशाली या धनाढ्य परिवार से होता, तो शायद सरकार उसकी रिहाई के लिए पहले ही प्रयास करती। लेकिन क्योंकि वह एक गरीब मछुवारा था, उसकी पीड़ा को नजरअंदाज कर दिया गया।
घूरहू की पत्नी पार्वती देवी अब पूरी तरह टूट चुकी हैं। उनका कहना है कि बेटियाँ—सुनीता, सीता, अवतारी और संतोषी—अब बिना बाप के जीवन बिताएंगी। बेटे नीरज और धीरज मुंबई में नौकरी कर रहे हैं, लेकिन पिता की मौत की खबर ने पूरे परिवार को झकझोर दिया है।
पत्र से खुला जेल में दी गई यातनाओं का राज
घूरहू की आत्महत्या की जानकारी उसके साथी धमेंद्र बिंद द्वारा भेजे गए पत्र से मिली। दो पन्नों में लिखा गया यह पत्र भारत सरकार और मानवाधिकार संगठनों के लिए चेतावनी है। पत्र में उसने लिखा है कि कैसे कराची जेल में भारतीय बंदियों को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है।
यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तानी जेलों में भारतीय मछुवारों के साथ इस प्रकार की बर्बरता सामने आई हो। गांव के ही एक अन्य निवासी राजेन्द्र बिंद, जो 1999 में पकड़े गए थे, बता चुके हैं कि “जेल का दर्द बर्दाश्त के बाहर होता है”।
गांववालों की सरकार से तीन बड़ी मांगें
ग्राम प्रधान मृत्यंजय बिंद ने इस पूरे मामले में केंद्र सरकार से तीन प्रमुख मांगें रखी हैं:
- घूरहू बिंद के शव का पोस्टमार्टम भारत में स्थानीय डॉक्टरों के पैनल से कराया जाए।
- पीड़ित परिवार को आर्थिक सहायता दी जाए।
- पाक जेल में बंद अन्य मछुवारों की सुरक्षित रिहाई कराई जाए।
आज़ाद समाज पार्टी का हस्तक्षेप और प्रशासन से अपील
घटना के बाद आज़ाद समाज पार्टी के वाराणसी मंडल प्रभारी एस.पी. मानव ने पीड़ित परिवारों को साथ लेकर जिलाधिकारी से मुलाकात की और गृह मंत्रालय को पत्र भेजने की मांग की। लेकिन सवाल अब भी कायम है — क्या भारत सरकार केवल औपचारिकताओं तक सीमित रहेगी या वाकई कुछ ठोस कदम उठाएगी?
विदेश नीति की असफलता या संवेदनहीनता?
मोदी सरकार ने अपनी विदेश नीति को अक्सर “सशक्त और निर्णायक” बताया है। लेकिन कराची जेल में भारतीय नागरिक की आत्महत्या इस दावे को कटघरे में खड़ा करती है। जब एक नागरिक विदेश में गिरफ्त में हो, तो उसकी सुरक्षा और रिहाई की जिम्मेदारी सरकार की होती है। लेकिन दो वर्षों तक सरकार की चुप्पी, और अब एक मौत — यह भारत की विदेश नीति की असफलता को उजागर करती है।
कब सुधरेगी हालात की ये तस्वीर?
आज घूरहू बिंद नहीं है। उसकी चार बेटियाँ, उसकी पत्नी और उसका सपना सब अधूरा रह गया। सवाल यह है कि क्या भारत सरकार अब जागेगी? क्या गरीब नागरिकों की जान की कीमत भी कोई मायने रखती है? या फिर यह घटना भी किसी अखबार की एक खबर बनकर रह जाएगी?