‘किसानों को बदनाम न करें, वे अपने जीवन और भविष्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं’- अमरिंदर सिंह
26 जनवरी को लाल किले (Red Fort) पर हुई हिंसा के बाद से दो महीने से ज्यादा लंबे समय से दिल्ली (Delhi) में सिंघू बार्डर और टिकरी बॉर्डर सहित 15 जगहों पर धरना प्रदर्शन कर रहे किसानों (Farmers) को खालिस्तानी और नक्सलवादी तक नामों से बुलाया जाने लगा है। क्या ये लोग खालिस्तानी या फिर नक्सलवादी हैं- इस संबंध में नवोदय टाइम्स के साथ विशेष बातचीत में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) ने कहा कि किसानों को बदनाम न किया जाए, वे अपने जीवन और भविष्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनका भविष्य दाव पर लगा हुआ है। इसके साथ ही उन्होंने किसानों और केंद्र सरकार से वार्ता जारी रखने का भी आग्रह किया है। उनका कहना है कि वार्ता ही इस मामले का एकमात्र हल है।
जो लोग लाल किले की हिंसा में शामिल थे, वे वास्तव में किसान नहीं थे। कुछ असामाजिक तत्वों ने आंदोलन में घुसपैठ की थी
क्या आपको लगता है कि लाल किले की हिंसा, जिसकी आपने राष्ट्र के अपमान के रूप में भी निंदा की है, ने किसानों की छवि को धूमिल किया है और उनके आंदोलन को एक खेदजनक स्थिति में ला दिया है? इस पर मुख्यमंत्री ने कहा- हां, यह घटना हम सभी के लिए शर्मनाक है। हमारे राष्ट्र का अपमान है। स्वतंत्र भारत के प्रतीक को क्षतिग्रस्त और अशक्त किया जाना कोई ऐसी बात नहीं है जिस पर कोई भारतीय गर्व कर सकता हो। यह वास्तव में हमारे श्रद्धेय निशान साहिब का भी अपमान है जो कुछ गुंडा तत्वों (वे किसान नहीं हो सकते थे) द्वारा शांतिपूर्ण विरोध को कम करने के लिए इस्तेमाल किया गया है।