1991 में ‘LTTE लिंक’ के आरोप का उपयोग करके DMK सरकार को बर्खास्त किया गया

1991 में, तत्कालीन राष्ट्रपति रत्न वेंकटरमण ने DMK सरकार को बर्खास्त कर दिया था, और यह घटना तमिलनाडु की राजनीति में एक बड़ा विवाद बन गई थी।

हाल ही में, एक ब्राह्मण संगठन के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन से मुलाकात की और पूर्व राष्ट्रपति रत्न वेंकटरमण की प्रतिमा लगाने के लिए अनुमति की मांग की। यह प्रतिमा चेन्नई के गुंडी या अंबत्तूर औद्योगिक क्षेत्रों में लगाने की योजना थी। इस पर स्टालिन का प्रतिकिया थी कि वह वेंकटरमण की भूमिका को याद करते हैं, विशेष रूप से 1991 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की सरकार को बर्खास्त करने के संदर्भ में।

1991 की घटनाएँ और DMK सरकार की बर्खास्तगी

1991 में, तत्कालीन राष्ट्रपति रत्न वेंकटरमण ने DMK सरकार को बर्खास्त कर दिया था, और यह घटना तमिलनाडु की राजनीति में एक बड़ा विवाद बन गई थी। करुणानिधि की सरकार को बर्खास्त करने का कारण ‘LTTE लिंक’ और तमिलनाडु में बढ़ते आतंकवाद को बताया गया था, जिसके कारण केंद्र सरकार को राज्य में संवैधानिक संकट के रूप में हस्तक्षेप करना पड़ा। यह कदम भारत में राज्य और केंद्र के बीच शक्तियों के संघर्ष का एक महत्वपूर्ण उदाहरण था।

करुणानिधि और वेंकटरमण के बीच तनातनी

करुणानिधि ने इस बर्खास्तगी के निर्णय पर कड़ा विरोध किया था। वह वेंकटरमण को ‘लोकतंत्र की हत्या’ करने का दोषी ठहराते हुए उनके इस्तीफे की मांग करते थे। करुणानिधि का आरोप था कि राष्ट्रपति ने तमिलनाडु के राज्यपाल एस.एस. बर्नाला से रिपोर्ट मांगे बिना संविधान के एक उपखंड का गलत तरीके से इस्तेमाल किया। उन्होंने यह भी कहा कि वेंकटरमण ने प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के प्रभाव में आकर यह कदम उठाया, जिससे उनके अनुसार यह कृत्य लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ था।

राजनीतिक परिप्रेक्ष्य और DMK की प्रतिक्रिया

इस घटना के बाद, DMK नेताओं ने अपनी सरकार के गिरने को एक राजनीतिक साजिश के रूप में देखा। 1991 में भारत में और विशेष रूप से तमिलनाडु में राजनीतिक माहौल में उथल-पुथल और विभाजन की स्थिति थी, और इस घटनाक्रम ने एक नया मोड़ लिया। यह बर्खास्तगी न केवल करुणानिधि के लिए एक व्यक्तिगत आघात थी, बल्कि यह राज्य और केंद्र के बीच शक्तियों के संतुलन को लेकर एक विवाद भी बन गया।

वर्तमान में 1991 की यादें और DMK की प्रतिक्रिया

हालांकि, 1991 में यह घटनाक्रम हुआ था, लेकिन आज भी DMK के नेताओं के लिए यह एक यादगार घटना बनी हुई है। मुख्यमंत्री स्टालिन ने इसे स्वीकार किया कि वे आज भी उस समय को याद करते हैं जब वेंकटरमण के खिलाफ करुणानिधि का विरोध उच्चतम स्तर पर था। यह घटना DMK के लिए एक घाव के रूप में बनी रही और पार्टी के भीतर इसका राजनीतिक महत्व आज भी बरकरार है।

Loksabha और Rajyasabha में हंगामा: विभिन्न मुद्दों पर गर्मागरम बहस

1991 की बर्खास्तगी की घटना को लेकर राजनीति में गहरी खींचतान और विवाद था, जो आज भी DMK के नेताओं के दिलों में ताजा है। यह घटना न केवल वेंकटरमण की भूमिका पर सवाल उठाती है, बल्कि केंद्र और राज्य के बीच शक्ति संघर्ष और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की जटिलताओं को भी उजागर करती है।

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