हाईकोर्ट ने दारोगा को लताड़ा, कहा- जब नहीं आती तो नोटिस अंग्रेजी में क्यों लिखवाई
हाईकोर्ट ने दारोगा को लताड़ा, कहा- जब नहीं आती तो नोटिस अंग्रेजी में क्यों लिखवाई
अंग्रेजी आने न आने के भी अपने अलग-अलग नफा नुकसान हैं. इस बात को मध्य प्रदेश पुलिस के एक भुक्त भोगी दारोगा से बेहतर और कौन समझ सकता है. एक जांच में दारोगा ने कागजात (नोटिस) तो अंग्रेजी में किसी और से लिखवाकर-तैयार करा ली. अंग्रेजी के मजमून से तैयार कानूनी कागजातों-दस्तावेजों के ऊपर हस्ताक्षर दारोगा ने खुद के कर दिए. बस यहीं अंग्रेजी और हिंदी के ज्ञान की खिचड़ी ने ‘दारागो जी’ को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में बुरी तरह से फंसवा दिया! फंसवा ही नहीं दिया दारोगा की नौकरी तक पर आन पड़ी. जाने-अनजाने हुई दारोगा की इस गलती को जब हाईकोर्ट ने पकड़ा तो, मध्य प्रदेश पुलिस के आला-अफसरान और कानूनविद भी हैरान रह गए.
दरअसल यह मामला सेक्शन-50 की शिकायत से संबंधित था. जिसमें दारोगा ने अंग्रेजी के जानकार अपने किसी परिचित महानुभाव की मदद ले ली. दारोगा ने अंग्रेजी जानने वाले को जैसा कुछ हिंदी में समझाया, उसी के मुताबिक उसने अंग्रेजी में मैटर ड्राफ्ट कर दिया. जिन कागजों पर दारोगा ने यह मैटर ड्राफ्ट करवाया, उनके ऊपर दारोगा जी ने बस दस्तखत अपने कर दिए. कानूनी-पुलिसिया दस्तावेजों पर दस्तखत करने से पहले या तो दारोगा जी ने ऊपर लिखा वो मजमून लापरवाहीवश पढ़ा ही नहीं जिसके नीचे वे, अपने हस्ताक्षर कर रहे थे? या फिर दारोगा जी को अंग्रेजी की समझ नहीं थी, जिसके चलते उन्होंने अंग्रेजी जानने वाले परिचित द्वारा लिखे गए मजमून पर आंख मूंदकर हस्ताक्षर कर दिए. यह मुकदमा मादक पदार्थ बेचने संबंधी धाराओं से संबंधित था.
बात दारोगा के दस्तखतों तक नहीं रही
बात दारोगा द्वारा कानूनी दस्तावेजों पर सिर्फ दस्तखत करने भर तक ही सीमित नहीं रह गई. इन दस्तावेजों को दारोगा एक अदालत से दूसरी अदालत में भी दाखिल करता चला गया. दारोगा की लापरवाही और या फिर अंग्रेजी के कम ज्ञान की बात का भांडा तब फूटा जब, अंग्रेजी में तैयार दारोगा के हस्ताक्षरित दस्तावेज मध्य-प्रदेश हाईकोर्ट में तक में दाखिल कर डाले गए. हाईकोर्ट ने पूरे मामले को जब पकड़ा तो, दारोगा की हालत जो थी सो तो थी ही. यह दारोगा मध्य प्रदेश पुलिस के जिन आला-अफसरों के अधीन तैनात रहकर काम कर रहा था, उन्हें भी सफाई देना मुश्किल हो गया. क्योंकि, सीधे तौर पर तो गलती दारोगा कि थी. दारोगा की जल्दबाजी, न-समझी या कहिए लापरवाही के चलते मगर, हाईकोर्ट की नजर में बे-वजह ही चढ़ पुलिस अफसरान भी गए.