कोरोना वैक्सीन पर स्टडी, क्या वाक़ई काम करती है वैक्सीन?
फाइजर और एस्ट्राजेनेका की कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने के 6 हफ्ते बाद शरीर से एंटीबॉडी का लेवल कम होने लगता है। 10 हफ्ते बाद यह 50% तक पहुंच जाता है। लैंसेट जनरल में प्रकाशित एक स्टडी में यह दावा किया गया है। रिसर्चर्स के मुताबिक, यह स्टडी 18 साल और इससे ज्यादा उम्र के 600 लोगों पर किया गया। इसमें पुरानी बीमारी वालों समेत महिलाओं और पुरुषों को शामिल किया गया। भारत में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को कोवीशील्ड नाम से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में बनाया जा रहा है।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) के रिसर्चर्स का कहना है कि एंटीबॉडी में इस तेजी से गिरावट आना चिंता की बात है। टीके का असर खत्म होने की भी आशंका है। खासतौर पर नए वैरिएंट के खिलाफ ये चिंताएं ज्यादा हो सकती हैं। हालांकि, उनका कहना है कि यह असर कब तक खत्म हो सकता है, इस बारे में अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
फाइजर की वैक्सीन से बनीं ज्यादा एंटीबॉडी
स्टडी में यह भी पाया गया कि फाइजर की वैक्सीन के दोनों डोज लेने वालों में एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लेने वालों की तुलना में कुछ ज्यादा एंटीबॉडी पाई गईं। एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन को भारत में कोवीशील्ड नाम से बनाया गया है। वैक्सीन लेने वालों में एंटीबॉडी का स्तर कोरोना संक्रमित हो चुके लोगों से ज्यादा पाया गया। इधर, एक स्टडी में पहले भी बताया गया था कि फाइजर का टीका ओरिजनल वैरिएंट के मुकाबले भारतीय डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ 5 गुना कम एंटीबॉडीज पैदा करेगा।
कोरोना के खिलाफ दोनों वैक्सीन असरदार
UCL इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ इन्फॉर्मेटिक्स की मधुमिता श्रोत्री ने कहा, ‘फाइजर हो या एस्ट्राजेनेका, दोनों ही वैक्सीन के दोनों डोज लेने के बाद एंटीबॉडी का लेवल काफी ज्यादा पाया गया। कोरोना संक्रमण के गंभीर मामलों में इसके असरदार होने की यह भी एक प्रमुख वजह है। दुनिया में सबसे ज्यादा वैक्सीन कॉन्ट्रैक्ट एस्ट्राजेनेका ने किए हैं और ज्यादातर देशों में वैक्सीनेशन के लिए एस्ट्राजेनेका ही इस्तेमाल की जा रही है।
इम्युनिटी मेमोरी में बनी रहेगी एंटीबॉडी
रिसर्चर्स का कहना है, ‘भले ही एंटीबॉडी कम हो, लेकिन इससे प्रतिरोधक क्षमता के लिए बनी याददाश्त बरकरार रहने की संभावना है, जिससे यह हमें वायरस से लंबे समय तक सुरक्षा प्रदान कर सकेगी।’ उन्होंने कहा कि गंभीर बीमारी से बचाव में एंटीबॉडी की संख्या महत्वपूर्ण है या नहीं, यह पता लगाया जाना अभी बाकी है।
दोनों वैक्सीन की एक डोज डेल्टा वैरिएंट पर बेअसर
मशहूर साइंस मैग्जीन नेचर में पब्लिश फ्रांस के पाश्चर इंस्टीट्यूट की ताजा रिसर्च के मुताबिक कोरोना वैक्सीन की एक डोज से वायरस के बीटा और डेल्टा वैरिएंट पर अमूमन कोई असर नहीं पड़ता। यह रिसर्च एस्ट्राजेनेका और फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन लेने वालों पर की गई। रिसर्च के मुताबिक एस्ट्राजेनेका या फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन की एक डोज लगवाने वाले मात्र 10% लोग कोरोना के अल्फा और डेल्टा वैरिएंट को नाकाम कर सके। वहीं, इन दोनों में से किसी एक वैक्सीन की दोनों डोज लगवाने वाले 95% लोगों ने डेल्टा और बीटा वैरिएंट को नाकाम कर दिया।