क्या बिहार चुनाव में ओवैसी ने दिया NDA का साथ ?
बिहार चुनाव नतीजे आने से पहले राजनीतिक विश्लेषक ये मान रहे थे कि सीमांचल के मुसलमान मतदाता ओवैसी की पार्टी के बजाए धर्मनिरपेक्ष छवि रखने वाली महागठबंधन की पार्टियों को तरजीह देंगे…लेकिन, अब ये साफ़ हो गया है कि सीमांचल के मतदाताओं ने बदलाव के लिए वोट किया है. हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि ओवैसी महागठबंधन के खिलाफ खड़े थे। खबरों के मुताबिक कहा जा रहा है कि ओवैसी एनडीए का साथ दे रहे थे जिसके बाद महागठबंधन को भी इसका काफी नुकसान झेलना पड़ा है। वहीं अगर जमीनी स्तर से देखा जाए तो यह बात सच लगती है क्योंकि जिन सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी जीत कर आई है वहां से कॉन्ग्रेस पार्टी जीतती थी लेकिन ए आई एम आई एम के आ जाने से कांग्रेस को काफी नुकसान हुआ है और यह नुकसान महागठबंधन को भी उठाना पड़ा है। जो मुस्लिम वोट थे वह महागठबंधन से कट गए। यह बातें उठने लगी हैं कि असदुद्दीन ओवैसी बिहार चुनाव में वोट काटने आए थे और वोट कटा भी लेकिन इससे महागठबंधन को काफी नुकसान हुआ और एनडीए को फायदा।
अब आपको बताते हैं कि किस तरीके से 5 सीटों पर ए आई एम आई एम ने चुनाव जीते। पूर्णिया की अमौर सीट पर अब तक कांग्रेस के अब्दुल जलील मस्तान पिछले 36 सालों से विधायक थे. इस बार उन्हें सिर्फ़ 11 फ़ीसद वोट मिले हैं जबकि एआईएमआईएम के अख़्तर-उल-ईमान ने 55 फ़ीसद से अधिक मत हासिल कर सीट अपने नाम की है.
बहादुरगंज सीट पर कांग्रेस के तौसीफ़ आलम पिछले सोलह सालों से विधायक हैं. इस बार उन्हें दस फ़ीसद मत ही मिले हैं जबकि एआईएमआईएम के अंज़ार नईमी ने 47 फ़ीसद से अधिक मत हासिल कर ये सीट जीती है.
महागठबंधन को लग रहा था कि सीमांचल से आसानी से सीटें निकल जाएंगी और वो राज्य में सरकार बना लेंगे. लेकिन यहां नतीजे इसके उलट रहे हैं.”
कहा जा रहा है कि मुसलमान वोटर अपनी अलग पहचान चाह रहे हैं. वो नहीं चाहते कि उन्हें सिर्फ़ बीजेपी को हराने वाले वोट बैंक के तौर पर देखा जाए. वो अपने इलाक़े में बदलाव चाहते हैं, विकास चाहते हैं.”इस बार इस इलाक़े के मुसलमानों की मांग थी कि कांग्रेस और राजद अपने पुराने उम्मीदवारों को बदल दें लेकिन ऐसा नहीं हुआ जिसकी वजह से एआईएमआईएम को अपनी ज़मीन मज़बूत करने का मौका मिल गया.कांग्रेस यहां के मुसलमानों को अपने बंधुआ वोटर जैसा समझ रही थी जबकि लोग बदलाव चाह रहे थे. यही वजह है कि कई सीटों पर लंबे समय से जीतते आ रहे उम्मीदवारों को इस बार जनता ने पूरी तरह नकार दिया है.वहीं एआईएमआईएम के मैदान में आने की वजह से आरजेडी और कांग्रेस को सीटों का नुकसान तो हुआ ही है और अब यह बातें उठने लगे हैं कि कहीं ओवैसी बीजेपी के साथ तो नहीं मिले हुए थे। दूसरी और यह भी सामने आ रहा है कि असदुद्दीन ओवैसी ने महागठबंधन से बात करने की पूरी कोशिश की थी लेकिन महागठबंधन की पार्टियों में से किसी ने भी ओवैसी की बात नहीं सुनी। और यही कारण रहा कि ओवैसी को अकेले ही मैदान में उतरना पड़ा और उन्होंने 5 सीटें जीत ली जिसका नुकसान महागठबंधन को काफी ज्यादा हुआ और NDA को फायदा।