सांसदों के आचरण से आहत लोकतंत्र  

सांसदों के आचरण से आहत लोकतंत्र  

सांसदों के आचरण से आहत लोकतंत्र

-राजेश माहेश्वरी

संसद का मानसून सत्र जारी है। पिछली बार की तरह इस बार भी विपक्ष किसी ने किसी मुद्दे के बहाने संसद की कार्यवाही में व्यवधान पैदा करने का कोई अवसर चूक नहीं रहा है। चाहे कांग्रेस नेता अधीर रंजन चैधरी द्वारा राष्ट्रपति को लेकर दिया बयान हो या फिर कोई अन्य मुद्दा। विपक्ष संसद की कार्यवाही में बाधा डालकर संसद का अमूल्य समय और देश का पैसा बर्बाद कर रहा है। संसद में काम की बजाय नारेबाजी और हंगामा जमकर हो रहा है। देश-दुनिया के सामने सांसदों का अमर्यादित और अशोभनीय व्यवहार हमारे लिए चिंता और शर्म का विषय है। सांसदों के असंसदीय व्यवहार व आचरण के चलते राज्यसभा और लोकसभा से 27 सांसद निलंबित हो चुके हैं। संसद में हंगामा और बाधित कार्यवाही तथा सांसदों का निरंकुश व्यवहार चिंता का विषय है। सांसदों का ऐसा बर्ताव सोचने को मजबूर करता है कि हमने कैसे प्रतिनिध चुनकर लोकतंत्र के मंदिर में भेजे हैं। संसद की स्थापना ही जनता के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए हुई है, फिर इसमें हंगामे का क्या काम ? अभी तक सदन में किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा ही नहीं हुई है। पिछले एक सप्ताह से सदन स्थगित ही हो रहा है।

 

ताजा घटनाक्रम में सांसद सदन से निलंबित किए गए, क्योंकि वे तख्तियां लहराते हुए अध्यक्ष या सभापति के आसन तक पहुंच गए थे। सदन में नारेबाजी, बैनरबाजी करना और किसी भी तरह की अराजकता फैलाना ‘असंसदीय’ है, यह निलंबित सांसद भी बखूबी जानते हैं। सदन में हंगामा बरपा कर महंगाई, बेरोजगारी और खाने-पीने की चीजों पर जीएसटी थोपने जैसे अहम मुद्दों पर बहस कैसे हो सकती है, ये बात आम आदमी को भी बखूबी समझ आती है। वास्तव में विपक्ष और सरकार दोनों को ही हंगामा रास आता है। विपक्ष के पास सरकार को घेरने के लिए जब कोई ठोस आधार या मुद्दा नहीं होता तो वो तर्क-वितर्क या विमर्श की बजाय हंगामे का रूख कर जनता के सामने ऐसी तस्वीर पेश करने की कोशिश करता है कि वो आम आदमी से जुड़े मुद्दों को लेकर कितना गंभीर है। वो चाहता है कि आम आदमी का भला हो लेकिन सरकार उसे कोई काम करने ही नहीं दे रही है। वहीं सरकार को भी ये स्थिति सुहाती है। वो भी इस शोर-शराबे और हंगामे के बीच अपनी कमियों को ढक लेती है, और सारा दोष विपक्ष के माथे मढ़कर अपने छवि को चमकाती रहती है।

 

निलंबन की कार्रवाई भी अनुशासनवादी यूं साबित नहीं हो पाई है, क्योंकि हालात वही ढाक के तीन पात रहे हैं। सांसद 1963 से सदन की कार्यवाही से निलंबित किए जाते रहे हैं। 1989 में तो एक बार एक साथ 63 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। 15 मार्च 1989 में संसद में सबसे बड़ी निलंबन की कार्रवाई हुई थी। राजीव गांधी सरकार के दौरान सांसद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट को संसद में रखे जाने पर हंगामा कर रहे थे। जिसके बाद विपक्ष के 63 सांसदों को हंगामा करने पर निलंबित किया गया था। वहीं जनवरी 2019 में लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन में 2 दिनों में 45 विपक्षी सांसदों को सस्पेंड किया था। पहली बार 1963 में हंगामा करने पर एक सांसद को निलंबित किया गया था। 13 फरवरी 2014 को लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार ने 18 सांसदों को सस्पेंड किया था। सस्पेंड हुए कुछ सांसद अलग तेलंगाना बनाने की मांग का विरोध कर रहे थे और कुछ अलग राज्य की मांग कर रहे थे। इस दौरान बहुत ही अप्रत्याशित घटना देखने को मिली थी, क्योंकि सस्पेंड होने वाला एक सांसद एल राजगोपाल सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस के थे। राजगोपाल पर सदन में पेपर स्प्रे का यूज करने का आरोप लगा था।

 

वर्ष 2019 में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने टीडीपी और एआईएडीएमके के 45 सांसदों एक साथ सस्पेंड कर दिया था। फरवरी 2014 में लोकसभा के शीतकालीन सत्र में 17 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। 2013 में 23 अगस्त को लोकसभा में हंगामा कर रहे विपक्ष के 12 सांसदों को अध्यक्ष मीरा कुमार ने निलंबित कर दिया था। 2021 में कृषि कानून पर हंगामा कर रहे विपक्ष के 12 सांसदों को राज्यसभा सभापति ने पूरे शीताकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया था। इन कार्रवाइयों के बावजूद सदन में न तो हंगामा शांत हुआ है और न ही संवेदनशील विषयों पर व्यापक बहसें हो पाई हैं। देश के करदाता नागरिकों का पैसा बर्बाद किया जाता रहा है और संसद की कुल बैठकें प्रतीकात्मक बनकर रह गई हैं। मौजूदा निलंबन पर विपक्ष के कुछ नेताओं की दलील है कि 24 सांसदों को उनकी आवाज उठाने से महरूम कर लोकतंत्र को ही निलंबित कर दिया गया है। लोकतंत्र इतना कमजोर नहीं है कि बार-बार निलंबित हो जाए अथवा समाप्ति के कगार पर आ जाए। ऐसा कहने वाले लोकतंत्र की ही देन हैं। सांसद बनने का मौका लोकतंत्र ने ही प्रदान किया है।

 

भारत जैसे देश में एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनी हैं, तो उस देश के लोकतंत्र पर आशंकाएं या सवाल उठाना फिजूल है। दरअसल सवाल यह है कि यदि प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को महंगाई और जीएसटी पर सदन में चर्चा करनी थी, तो उसके सांसद ‘विजय चैक’ पर आंदोलित क्यों थे? वह समय तो संसद के भीतर मौजूद रहने का था, तो सडक पर कथित सत्याग्रह क्यों किया जा रहा था? क्या सोनिया गांधी किसी राजवंश की ‘राजमाता’ हैं, जो कानून और संविधान की परिधि से परे हैं? क्या सीबीआई, आयकर और प्रवर्तन निदेशालय सरीखी जांच एजेंसियां किसी विवादास्पद केस में उनकी जांच और पूछताछ नहीं कर सकतीं? दरअसल संसद में और सडक पर बोलने में बुनियादी फर्क है। संसद में तथ्यों पर और साक्ष्यों के साथ चर्चा में भाग लेना पड़ता है। वैसे भी बीते 7 माह में कांग्रेस के आलाकमानी नेता राहुल गांधी ने आंगनबाड़ी, कोरोना और जनजाति उत्पाद पर ही तीन सवाल उठाए हैं। महंगाई, बेरोजगारी पर कोई भी सवाल नहीं है। सिर्फ ट्विटर पर कुछ लिख देना ही संसद नहीं है। सवाल तो यह भी होगा कि यदि कांग्रेसी सांसद सदन में रहेंगे, तो वे अपनी सीट से ही आसन को बाध्य कर सकते हैं कि महंगाई पर चर्चा कराई जाए। फिर कार्य मंत्रणा समिति किसलिए है? कांग्रेस के साथ-साथ अन्य विपक्षी दल भी चर्चा में भाग लेने की बजाय हंगामे की राजनीति में ज्यादा विश्वास रखते हैं। विपक्ष के सांसदों की हाजिरी और संसद की बैठकों में हिस्सा लेने का रिकार्ड चेक किया जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

 

बीते मंगलवार को जीएसटी का विषय सूचीबद्ध था, इस दिन इस मुद्दे पर बहस होनी थी, लेकिन कांग्रेस के 50 से ज्यादा सांसद सडक पर थे, तो फिर मोदी सरकार ने बहस में अड़ंगा कैसे अड़ा दिया? ऐसी दलीलें फिजूल हैं और सांसदों के निलंबन से भी हालात नहीं संवरेंगे। व्यवस्था की जानी चाहिए कि जिस दिन सदन की कार्यवाही नहीं चलेगी, उस दिन का भत्ता सांसद को नहीं मिलेगा। यह व्यवस्था भी संसद में ही पारित की जानी है, लेकिन सवाल है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? जनता को भी इस विषय मे ंसोचना होगा, क्योंकि प्रतिनिधि चुनकर वो ही संसद में भेजते हैं। जब वोट डालने का समय हो तो उस समय जाति, वर्ग, दल या किसी अन्य लालच और स्वार्थ से ऊपर उठकर ऐसे प्रतिनिधि का चुनाव करना चाहिए, जो सच्चे अर्थों में आपका प्रतिनिधि कहलाने का हकदार हो। जो संसद में हंगामे की बजाय आपकी आवाज उठाए। और जो लोकतंात्रिक मर्यादाओं का पालन कर आपका और देश का सिर गर्व से ऊंचा करे।

 

-लेखक राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।

————————————

Related Articles

Back to top button