विजय रूपाणी के इस्तीफे पर छलका बेटी का दर्द, जानिए क्या कहा
गुजरात में बीजेपी ने बड़ा फेरबदल करते हुए विजय रूपाणी से इस्तीफा लिया और भूपेंद्र पटेल की नया सीएम बनाया। रूपाणी के इस्तीफे के पीछे कई लोग उनके अलोकप्रिय चेहरे को वजह बता रहे हैं। हालांकि, रूपाणी के बेटी राधिका ने ऐसे लोगों को जमकर लताड़ा है। एक फेसबुक पोस्ट में रूपाणी की बेटी ने कहा है कि जब साल 2002 में अक्षरधाम मंदिर पर हमला हुआ था तो मोदी जी से पहले मेरे पिता जी वहां पहुंचे थे।
विजय रूपाणी की बेटी ने अपने फेसबुक पोस्ट का शीर्षक लिखा है- ‘एक बेटी के नजरिए से विजय रूपाणी’ राधिका ने लिखा कि बहुत कम लोग जानते हैं कि कोरोना और ताउते तूफान जैसी बड़ी दिक्कतों में मेरे पिता सुबह 2.30 बजे तक जगा करते थे और लोगों के लिए व्यवस्था कराते थे, फोन पर लगे रहते थे।”
राधिका ने अपनी पोस्ट में लिखा, “कई लोगों के लिए मेरे पिता का कार्यकाल एक कार्यकर्ता के रूप में शुरू हुआ और कई राजनीतिक पदों के जरिए मुख्यमंत्री तक पहुंचा, लेकिन मेरे विचार से मेरे पिता का कार्यकाल 1979 मोरबी बाढ़, अमरेली में बादल फटने की घटना, कच्छ भूकंप, स्वामीनारायण मंदिर आतंकवादी हमले, गोधरा की घटना, बनासकांठा की बाढ़ से शुरू हुआ। ताउते तूफान और यहां तक कि कोविड के दौरान भी मेरे पिता पूरी जान लगाकर काम कर रहे थे।”
राधिका ने अपनी फेसबुक पोस्ट में बचपन का जिक्र करते हुए लिखा, ‘पापा ने कभी अपना निजी काम नहीं देखा। उन्हें जो जिम्मेदारी मिली उसे पहले निभाया। कच्छ के भूकंप के समय भी सबसे पहले गए। बचपन में भी मम्मी-पापा हमें घुमाने नहीं ले जाते थे। वे हमें मूवी थिएटर नहीं बल्कि किसी कार्यकर्ता के यहां ले जाते थे, स्वामी नारायण अक्षरधाम मंदिर में आंतकी हमले के वक्त मेरे पिता वहां पहुंचने वाले पहले शख्स थे, वह नरेंद्र मोदी से पहले ही मंदिर परिसर पहुंचे थे”
इस पोस्ट में राधिका ने उन सभी लोगों को आड़े हाथों लिया है जिनका कहना था कि उनकी ‘मृदुल छवि’ उनके फेल होने का कारण बनी। राधिका ने एक शीर्षक का हवाला देते हुए कहा कि रूपाणी की ‘मृदुभाषी छवि ने उनके खिलाफ काम किया’, राधिका कहती हैं: “क्या राजनेताओं में संवेदनशीलता नहीं होना चाहिए? क्या यह एक आवश्यक गुण नहीं है जो हमें एक नेता में चाहिए? उन्होंने (रूपाणी ने) कड़े कदम उठाए हैं और भूमि हथियाने वाला कानून, लव जिहाद, गुजरात आतंकवाद नियंत्रण और संगठित अपराध अधिनियम (गुजसीटीओसी) जैसे फैसले इस बात के सबूत हैं। क्या कठोर चेहरे का भाव पहनना…एक नेता की निशानी है?”
उन्होंने कहा कि घर पर “हम हमेशा चर्चा करेंगे कि क्या एक साधारण व्यक्ति (मेरे पिता की तरह) भारतीय राजनीति में जीवित रहेगा जहां भ्रष्टाचार और नकारात्मकता प्रचलित है। मेरे पिता हमेशा कहते थे कि राजनीति और राजनेताओं की छवि भारतीय फिल्मों और सदियों पुरानी धारणा से प्रभावित है और हमें इसे बदलना होगा। उन्होंने कभी भी गुटबाजी का समर्थन नहीं किया और यही उनकी विशेषता थी। कुछ राजनीतिक विश्लेषक सोच रहे होंगे कि – ‘यह विजयभाई के कार्यकाल का अंत है’ – लेकिन हमारी राय में उपद्रव या प्रतिरोध के बजाय, आरएसएस और भाजपा (एसआईसी) के सिद्धांतों के मुताबिक सत्ता को लालच के बिना छोड़ देना बेहतर है।”