ब्रिटेन ने चाइल्ड डेटा प्रोटेक्शन से जुड़ा सख्त कानून लागू किया;
क्या है यह कानून और भारत में बच्चों के डिजिटल डेटा को लेकर क्या है प्रावधान?
ब्रिटेन ने 2 सितंबर से डिजिटल साइट्स के लिए बच्चों के डेटा प्रोटेक्शन और सेफ डिजिटल स्पेस क्रिएट करने के उद्देश्य से नया कानून लागू किया है। ब्रिटेन में काम कर रहीं सभी वेबसाइट्स पर यह कानून लागू होगा। अगर नहीं माना तो कंपनियों पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाएगा।
ब्रिटेन का ये कानून उस समय आया है, जब पूरी दुनिया में डेटा प्रोटेक्शन और प्राइवेसी पर चर्चा चल रही है। भारत में भी डेटा प्राइवेसी कानून को लेकर सरकार और कंपनियों में ठनी हुई है। भारत सरकार ने 2019 में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल पेश किया था।
आइए समझते हैं… क्या भारत में भी इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे बच्चों को अनावश्यक साइट्स से बचाने के लिए इस तरह के कानून की जरूरत है? यूके का कोड क्या कहता है? भारत में क्या कानून है?
पहले समझिए यह कानून क्या है?
यूके के इस कानून के जरिए बच्चों के डिजिटल डेटा को स्टोर, शेयर और कलेक्ट करने के लिए कड़े प्रावधान लागू किए गए हैं। इन नियमों का पालन उन वेबसाइट्स या ऐप्स को करना होगा, जिनका इस्तेमाल बच्चे कर रहे हैं या कर सकते हैं। इस डिजिटल डेटा का इस्तेमाल कहां, कैसे और किस तरह होगा, इसे तय किया गया है।
सितंबर 2020 में प्रस्तावित कानून को ब्रिटेन के इंफॉर्मेशन कमीश्नर ऑफिस ने पेश किया था। बिल की बातें मानने के लिए कंपनियों को एक साल का समय दिया गया था। एक साल पूरा होने पर 2 सितंबर 2021 से ये कानून लागू हो गया है।
ये कानून सोशल मीडिया, गेमिंग साइट्स, वीडियो और म्यूजिक स्ट्रीमिंग साइट्स और न्यूज साइट्स समेत उन तमाम वेबसाइट्स पर लागू है, जिनका इस्तेमाल बच्चे कर सकते हैं। इंटरनेट पर बच्चों को सेफ एनवायरनमेंट देने और बच्चों के डेटा को सेफ रखने के लिए इस कानून में गाइडलाइन सेट की गई है।
कानून में क्या बातें कही गई हैं?
ऐसी साइट्स जिनका इस्तेमाल बच्चे करते हैं, उन्हें
सर्विसेस को बच्चों के लिए उचित और पूरी तरह सेफ रखना होगा।बच्चों के डेटा का कॉमर्शियल और सेक्सुअली उत्पीड़न में इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।वेबसाइट का डिजाइन ऐसा हो कि बच्चों को बहुत ज्यादा डेटा न बताना पड़े।इन वेबसाइट्स और ऐप्स पर लोकेशन ट्रैकिंग सर्विसेस को बंद करना होगा।बच्चों के किस तरह के डेटा को कलेक्ट किया जा रहा है, उसकी मैपिंग करनी होगी।इस कानून को बनाने के लिए 15 पैरामीटर का सहारा लिया गया है, जिसमें डेटा प्रोटेक्शन, ट्रांसपेरेंसी और पेरेंटल कंट्रोल्स जैसी चीजें शामिल हैं।ये कानून ब्रिटेन और ब्रिटेन के बाहर की सभी कंपनियों पर लागू होगा।
कानून लागू होने के बाद साइट्स को क्या बदलाव करने पड़े?
इस कानून के लागू होने के बाद ब्रिटेन में काम कर रही वेबसाइट्स ने कई बदलाव किए हैं।
टिकटॉक: टिकटॉक ने यंग यूजर के लिए शेयरिंग ऑप्शन में बदलाव किए हैं। 16-17 साल के बच्चों को रात में 10 बजे के बाद और 13-15 साल के बच्चों को रात में 9 बजे बाद नोटिफिकेशन नहीं भेजे जाएंगे।
गूगल: गूगल ने ब्रिटेन में बच्चों के लिए लोकेशन हिस्ट्री को पूरी तरह डिसेबल कर दिया है। 18 साल से कम उम्र के बच्चे या उनके पेरेंट्स गूगल सर्च में दिख रही किसी भी इमेज को हटाने की रिक्वेस्ट भी कर सकते हैं।
यूट्यूब: यूट्यूब ने 13-17 साल की उम्र के यूजर के लिए ऑटो प्ले का ऑप्शन डिसेबल कर दिया है।
फेसबुक: फेसबुक ने 18 साल से कम उम्र के यूजर को टारगेट एडवर्टाइजिंग रोक दी है। ऐसे यूजर्स को किसी भी संदिग्ध अकाउंट से अपने आप ही दूर रखा जाएगा।
इंस्टाग्राम: इंस्टाग्राम पर बच्चों को अजनबी वयस्क मैसेज नहीं कर सकेंगे। अगर बच्चे उस वयस्क को फॉलो कर रहे हैं तो ही मैसेज आएंगे। 18 साल से कम उम्र के यूजर का अकाउंट प्राइवेट होगा। लॉगिन के लिए डेट ऑफ बर्थ एंटर करना जरूरी होगा।
कानून नहीं मानने वालों के लिए क्या प्रावधान है?
जो कंपनियां कानून नहीं मानेंगी उन पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाएगा। कंपनियों को पेनल्टी के तौर पर अपने ग्लोबल टर्नओवर का 4% फाइन लगेगा। हालांकि, ये फाइन सीधे शिकायत पर नहीं लगेगा। पहले शिकायत की आधिकारिक संस्था द्वारा पूरी जांच होगी। फिर उसके ऊपर कार्रवाई होगी।
क्या भारत में बच्चों के डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन से जुड़ा कोई कानून है?
नहीं। अभी इस संबंध में कोई कानून नहीं है। 2019 में प्रस्तावित पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल 2019 के चैप्टर IV में जरूर बच्चों के डिजिटल डेटा को लेकर कुछ प्रावधान किए गए हैं-
प्रस्तावित कानून कहता है कि कंपनियों को बच्चों से जुड़े डेटा को इस तरह प्रोसेस करना होगा कि बच्चों के अधिकार सुरक्षित रहें।कंपनियों को बच्चों के पर्सनल डेटा को प्रोसेस करने से पहले बच्चे की एज वैरिफाई करनी होगी और पेरेंट्स का कंसेंट भी लेना होगा।बच्चों के डेटा की प्रोफाइलिंग करने, ट्रैक करने, टारगेटेड एडवर्टाइजिंग और इंटरनेट बिहेवियर को मॉनिटर करने से कंपनियों को बचना होगा। साथ ही पर्सनल डेटा का इस तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा जिससे बच्चों को कोई भी नुकसान पहुंचे।
ये कानून उन कंपनियों पर लागू होता है, जो बच्चों से जुड़ी ऑनलाइन सर्विसेस या कॉमर्शियल वेबसाइट ऑपरेट करती हैं या बड़ी संख्या में बच्चों के पर्सनल डेटा को प्रोसेस करती हैं। इस कानून में 18 साल से कम उम्र के सभी यूजर्स को बच्चों के कैटेगरी में रखा गया है।