D.Y चंद्रचूड़ जायेंगे अंतरराष्ट्रीय ICJ

D.Y- धनंजय वाई. चंद्रचूड़, जो 10 नवंबर 2024 को अपने पद से सेवानिवृत्त हुए, अब अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में नियुक्त होने की संभावना पर चर्चा के केंद्र में हैं।

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डॉ.D.Y- धनंजय वाई. चंद्रचूड़, जो 10 नवंबर 2024 को अपने पद से सेवानिवृत्त हुए, अब अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में नियुक्त होने की संभावना पर चर्चा के केंद्र में हैं। अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक फैसलों और प्रगतिशील दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध, चंद्रचूड़ ने न्यायिक प्रणाली में गहरी छाप छोड़ी है। लेकिन यह संभावित अंतर्राष्ट्रीय भूमिका एक नई चुनौती और अवसर दोनों का संकेत देती है।

D.Y चंद्रचूड़ का न्यायिक सफर: प्रमुख उपलब्धियां

D.Y चंद्रचूड़ का कार्यकाल हमेशा सामाजिक न्याय, व्यक्तिगत अधिकारों और संवैधानिक नैतिकता के पक्ष में खड़ा रहा। उन्होंने अपने कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण फैसले दिए, जिनमें प्रमुख हैं:
1. गोपनीयता का अधिकार (2017): “के.एस. पुत्तास्वामी बनाम भारत संघ” मामले में, उन्होंने गोपनीयता को एक मौलिक अधिकार घोषित किया, जो भारत में व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए मील का पत्थर साबित हुआ।
2. धारा 377 का निरस्तीकरण (2018): LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों की रक्षा करते हुए, उन्होंने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया।
3. निर्वाचन बांड योजना को असंवैधानिक घोषित करना (2024): इस फैसले ने राजनीतिक वित्तीय पारदर्शिता की वकालत की।
4. बुलडोजर न्याय की निंदा (2024): अपने अंतिम फैसले में, उन्होंने राज्य की अनुचित और उच्चस्तरीय तोड़फोड़ नीतियों को अस्वीकार्य ठहराया।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में संभावित भूमिका

D.Y चंद्रचूड़ का नाम अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश के तौर पर विचाराधीन है, जो भारत के न्यायिक प्रभाव को वैश्विक स्तर पर ले जाने का एक ऐतिहासिक अवसर हो सकता है। ICJ में सदस्यता का मतलब होगा कि चंद्रचूड़ अब वैश्विक विवादों और मानवाधिकारों के मुद्दों पर फैसले देने में योगदान देंगे।

यह भारत के लिए सम्मान की बात है, लेकिन इसके साथ ही चंद्रचूड़ के फैसलों और न्यायिक दृष्टिकोण की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समीक्षा भी होगी। आलोचकों का मानना है कि उनके कुछ फैसले राजनीतिक रूप से प्रेरित हो सकते हैं, खासकर “370 अनुच्छेद” और “अयोध्या विवाद” जैसे मामलों में। हालांकि, समर्थक यह तर्क देते हैं कि उनकी न्यायिक स्वतंत्रता और संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता निर्विवाद है।

आलोचनाएं और विवाद

D.Y चंद्रचूड़ के खिलाफ आलोचनाएं और विवाद उनके कार्यकाल के अंत में तेज हो गए थे:
1. राजनीतिक पक्षपात का आरोप: विपक्षी नेताओं ने यह आरोप लगाया कि उनके कुछ फैसले सत्तारूढ़ दल के हित में थे। “निर्वाचन बांड योजना” पर उनका फैसला, हालांकि पारदर्शिता को बढ़ावा देता है, लेकिन इसे सत्तारूढ़ दल के लिए एक झटका माना गया।
2. अनुच्छेद 370: जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को हटाने के फैसले का समर्थन करने पर उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा।
3. न्यायिक सक्रियता: आलोचकों ने उनकी न्यायिक सक्रियता को “सीमित” और “चुनिंदा” बताया।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: न्यायपालिका और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व

D.Y चंद्रचूड़ से पहले भी भारतीय न्यायाधीशों ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है। यह पहली बार नहीं है जब एक भारतीय न्यायाधीश ICJ जैसे प्रतिष्ठित निकाय का हिस्सा बने। नागेंद्र सिंह, जो 1985 में ICJ के अध्यक्ष बने थे, इसका प्रमुख उदाहरण हैं।

भारत के लिए अवसर और चुनौतियां

1. वैश्विक प्रभाव: यदि चंद्रचूड़ ICJ में शामिल होते हैं, तो यह भारत के लिए एक बड़ी राजनयिक जीत होगी। यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को और मजबूत करेगा।
2. विरोधियों की आशंकाएं: आलोचक यह सवाल उठाएंगे कि क्या चंद्रचूड़ का दृष्टिकोण भारत के राष्ट्रीय हितों के अनुरूप रहेगा।

भविष्य की राह

ICJ जैसे मंच पर D.Y चंद्रचूड़ की संभावित नियुक्ति न केवल उनके व्यक्तिगत करियर का विस्तार है बल्कि यह भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि को भी गहराई से प्रभावित करेगा। उनके कार्यकाल का विश्लेषण और उनकी न्यायिक शैली पर चर्चा इस नई भूमिका को और अधिक रोमांचक बनाती है।

D.Y चंद्रचूड़ के समर्थकों को उम्मीद है कि वे अपने अनुभव और संवैधानिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता के साथ वैश्विक स्तर पर न्याय प्रदान करेंगे। वहीं आलोचकों की नजर इस पर होगी कि क्या उनका फैसला निष्पक्ष रहेगा या नहीं।

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ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में अपने योगदान से भारत और विश्व के न्यायिक तंत्र को कैसे प्रभावित करते हैं।

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