क्या बच्चे सुरक्षित हैं?
कोविड-19 से 6 दिन में रिकवर हो रहे हैं बच्चे, लॉन्ग कोविड भी नहीं होता; जानिए क्या कहती है लैंसेट में छपी स्टडी और कितना सेफ है स्कूल?
मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़ समेत भारत के 10 से ज्यादा राज्यों ने स्कूल खोल दिए हैं। इसके बाद महाराष्ट्र में 600, छत्तीसगढ़ में 18 और गुजरात में 4 स्टूडेंट्स कोरोना पॉजिटिव आए। इन्फेक्शन के डर से पेरेंट्स बच्चों को स्कूल भेजने को तैयार नहीं हैं। जिन राज्यों में स्कूल खुले हैं, वहां 20% से अधिक अटेंडेंस नहीं लग रही है। ऐसे पेरेंट्स के लिए किंग्स कॉलेज लंदन की नई स्टडी रिपोर्ट राहत लेकर आई है।
द लैंसेट चाइल्ड एंड अडोलेसेंट हेल्थ जर्नल में 4 अगस्त को छपी यह रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 से इन्फेक्टेड बच्चे 6 दिन में रिकवर कर जाते हैं। उन्हें लॉन्ग कोविड होने का खतरा भी बेहद कम है। 20 में से सिर्फ 1 बच्चे में 4 हफ्ते से अधिक समय तक लक्षण दिखे हैं। पर अच्छी बात यह है कि बच्चे 8 हफ्ते में पूरी तरह ठीक हो रहे हैं।
इस स्टडी को बेहतर तरीके से समझने और भारत में इसका असर जानने के लिए हमने जयपुर के डॉ. संजय चौधरी, मुंबई के डॉ. फजल नबी और अहमदाबाद की डॉ. उर्वशी राणा से बात की। आइए जानते हैं कि एक्सपर्ट इस स्टडी पर क्या कह रहे हैं-
सबसे पहले जान लीजिए यह स्टडी किस पर और कैसे की गई?
किंग्स कॉलेज लंदन के रिसर्चर्स ने यह स्टडी कोविड ऐप ‘जो’ की मदद से की है। इस ऐप का इस्तेमाल पेरेंट्स और बच्चों की देखरेख करने वाले करते हैं। ऐप में 5 से 17 साल के 2.5 लाख से अधिक बच्चों का हेल्थ डेटा है। सितंबर 2020 से फरवरी 2021 के बीच 7 हजार बच्चों में कोविड-19 के लक्षण दिखे।1,734 बच्चों के कोरोना से इन्फेक्ट होने और पूरी तरह ठीक होने का समय पता किया। 5-11 साल के बच्चों को कोरोना को हराने में 5 दिन लगे। वहीं 12 से 17 साल के बच्चों को रिकवर होने में 7 दिन तक लग गए। इनमें बहुत कम बच्चे ऐसे थे जिनमें कोरोना के लक्षण 4 हफ्तों तक दिखे।रिसर्चर्स का कहना है कि बच्चों में कोरोना के गंभीर लक्षणों का खतरा काफी कम है। कई बच्चे एसिम्प्टोमेटिक रहे तो वहीं ज्यादातर में मामूली लक्षण नजर आए। बच्चों में सबसे कॉमन लक्षणों में सिरदर्द, थकान, गले में खराश और गंध की पहचान न कर पाना शामिल है।किंग्स कॉलेज की प्रोफेसर एम्मा डंकन का कहना है कि इन्फेक्शन के बाद बच्चों में दिमाग से जुड़ी कोई समस्या जैसे दौरे पड़ना, बेचैनी नहीं देखी गई है। इससे साबित होता है कि बच्चों में लॉन्ग कोविड के मामले दुर्लभ हैं।
इस रिसर्च के नतीजों की तुलना में भारत में अनुभव क्या रहा है?
भारत में बच्चों के इन्फेक्शन को लेकर इसी तरह के नतीजे सामने आए हैं। नारायणा मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल की पीडियाट्रिशियन डॉ. राणा कहती हैं कि हमारे यहां भी पहली और दूसरी लहर में बच्चे एसिम्प्टोमेटिक या मामूली लक्षणों से इन्फेक्ट हुए थे। ये लक्षण भी 7-10 दिन से ज्यादा नहीं रहे थे। बहुत कम बच्चों में 4 हफ्ते के बाद भी लक्षण दिखे। कुछ ही बच्चों को MIS-C से जूझते देखा गया।जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में पीडियाट्रिक्स डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ. नबी कहते हैं कि 1% से कम बच्चों में मॉडरेट से गंभीर लक्षण दिखे हैं। पोस्ट-कोविड इन्फेक्शन लक्षण दिखे हैं, पर उनकी वजह से कोई मौत नहीं हुई है। माइल्ड केसेस में दो से चार दिन में बच्चे पूरी तरह से रिकवर हो गए। जहां तक लैंसेट की स्टडी की बात है, यह एक केंद्र से जुड़ी है। सैम्पल साइज भी छोटा है। यह स्टडी स्मार्टफोन ऐप पर पूछे गए प्रश्नों के आधार पर है। इसमें बच्चों का क्लिनिकल एग्जामिनेशन शामिल नहीं है।फोर्टिस हॉस्पिटल में पीडियाट्रिक्स डिपार्टमेंट में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. चौधरी का कहना है कि ICMR का दिसंबर-जनवरी का डेटा कहता है कि बच्चे बराबरी से इन्फेक्ट हुए, पर उन्हें वयस्कों की तुलना में ज्यादा फर्क नहीं पड़ा। बहुत कम इन्फेक्टेड बच्चों को हॉस्पिटल या आईसीयू में भर्ती करने की जरूरत पड़ी है।
क्या बच्चों को स्कूल भेजना सुरक्षित है?
हां। दुनियाभर में जो अनुभव सामने आया है, वह कहता है कि बच्चों को स्कूल भेज देना चाहिए। कई देशों में तो महामारी के दौरान भी स्कूल खुले रहे। डॉ. राणा कहती हैं कि लैंसेट की स्टडी बच्चों को स्कूल भेजने के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देती है। वैसे तो स्कूल खोलने का फैसला जिला और स्टेट लेवल की स्थितियों के आधार पर लेना चाहिए। स्कूल और हॉस्पिटलों में इंफ्रास्ट्रक्चर की तैयारी और अन्य बातों को ध्यान में रखना होगा।जनवरी में 31 देशों के 129 केंद्रों के डेटा के आधार मेटा एनालिसिस स्टडी की गई थी। इसने बच्चों में इन्फेक्शन को लेकर पॉजिटिव नतीजे दिए थे। डॉ. नबी कहते हैं कि पहली लहर के बाद से अब तक जो आंकड़े सामने आए हैं, उसके आधार पर स्कूल खोलना सुरक्षित लग रहा है। बच्चों समेत परिवार के सभी सदस्यों को वैक्सीनेट करना जरूरी है और इसके साथ ही मास्क, हैंड वाशिंग और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी सुनिश्चित करना होगा।डॉ. चौधरी कहते हैं कि डेटा, हॉस्पिटल के आंकड़े और दूसरी लहर का अनुभव साफ बताता है कि स्कूलों को खोला जाना चाहिए। अगर तीसरी लहर का डर हमें बच्चों को घरों में बंद रखने को मजबूर कर रहा है तो यह गलत है। डरने की कोई बात नहीं है और बच्चों को धीरे-धीरे घर से बाहर भेजना जरूरी हो गया है।
क्या बच्चों के लिए खेलकूद गतिविधियों को शुरू करने का वक्त आ गया है?
हां। डॉ. चौधरी कहते हैं कि इस समय बड़ी संख्या में बच्चे साइकोलॉजिकल समस्याओं का सामना कर रहे हैं। उनमें से ज्यादातर अब भी लॉकडाउन मोड में हैं। लॉकडाउन की वजह से उनका न्यूट्रिशनल स्टेटस प्रभावित नहीं होना चाहिए। दिनभर टीवी, मोबाइल, लैपटॉप और टैबलेट पर सक्रिय होने की वजह से उनकी दूसरी गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। बच्चे घर में बैठे-बैठे ओवरवेट हो रहे हैं।पर बच्चों को लेकर डॉ. राणा की सतर्कताभरी सलाह भी महत्वपूर्ण है। वे कहती हैं कि बच्चों में भले ही हल्के लक्षण हों, वायरल लोड अधिक होता है। वे कम्युनिटी में वायरस को फैलाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। इस वजह से यह देखना जरूरी है कि बच्चों के आसपास के लोगों ने वैक्सीन लगवाई है या नहीं।