चिकित्सकों-पुलिसकर्मियों के बाद ख़बर देने वाले बनने लगे ख़बर, बढ़ा कोरोनावायरस का खतरा
पत्रकार नवेद शिकोह कि कलम से
आया पत्रकारों का नंबर, संक्रमित सब्ज़ी वालों ने ख़तरा बढ़ाया
सैनिक शहीद होने लगे, जनता का अल्लाह ही हाफिज है !
पुलिस और चिकित्सको के बाद पत्रकार भी कोरोना की जद में आ गये हैं। आगरा में एक पत्रकार की शहादत के बाद जांच में तमाम पत्रकारों का संक्रमित होने की खबरें आ रही हैं। अब खबर देनें वाले खबर बनने लगे हैं और मीडिया क्षेत्र की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं।
अब सब्जी वालों का नंबर आ गया है। इन कोरोना फाइटर्स को ज़ालिम वायरस ने तेजी से घेरना शुरु कर दिया है। ये उन सिपाहियों के मोर्चों को भेद रहा है जो जनता की हिफाजत के लिए जान पर खेल रहे हैं। चिंताजनक बात ये है कि कोरोना वारियर्स सीधे जनता से जुड़कर काम कर रहे हैं, इसलिए रक्षा करने वाले रक्षक ही जनता के लिए खतरा बन सकते हैं।
प्रतिरोधक क्षमता के लिए हरी और ताज़ी सब्जियों का सेवन बेहद ज़रूरी है। लॉकडाउन में घरों-घरों तक सब्जी बेचने की पूरी छूट रही। मंडियों को बंदी की पाबंदियों से दूर रखा गया , इसलिए रिक्शे वाले, पान वाले और चाय इत्यादि का ठेला लगाने वाले भी सब्जी-फल बेच कर अपना गुजारा करके राहत की सास ले रहे थे। किंतु अब ये राहत आफत के संकेत दे रही है। क्योंकि सब्जी-फल के ठेले वालों का जनता से सीधा संपर्क रहा है। सब्जी-फल बेचने वाले और मंडियों के इर्द-गिर्द रहने वाले लोग कोरोना संक्रमित होने लगे हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और अन्य जिलों में सब्जी विक्रेता कोरोना पॉजिटिव पाये जा रहे हैं।
इन सब्जी वालों का सीधा संपर्क जनता से रहा है। गली मोल्लों, और कॉलोनियों में घरों-घरों जाकर ये सब्जी बेचते रहे हैं। इतना तो नहीं पर इसी तरह पुलिस और पत्रकार भी सीधे जनता के संपर्क में रहते हैं। ड्यूटी के दौरान पत्रकार और पुलिसकर्मी भी अपने सहकर्मियों से ज्यादा दूरी नहीं बना सकते हैं। इन पेशेवरों के पास मास्क के सिवा वायरस से बचाव के दूसरे संसाधन भी नहीं हैं। इसलिए जब कोई पत्रकार या पुलिसकर्मी संक्रमित पाया जाता है या उसकी मौत होती है तो उसके सहकर्मियों को कोरिनटाइन कर दिया जाता है। जिसके बाद ड्यूटी के लिए फिट कोरोना वारियर्स पर दुगने काम का बोझ पड़ जाता है।
कोविड 19 के ख़िलाफ के ख़िलाफ लड़ाई में सूचनाएं पंहुचाने, इलाज करने, लॉकडाउन का पालन करवाने, आवश्यक खाद्य सामग्री पंहुचाने जैसे अहम काम करने वालों की अधिक से अधिक जरुरत है, पर जब ऐसे सेनानी जब कोरिनटाइन हो जाते हैं तो उनकी कमी से लड़ाई कमजोर पड़ने लगती है। कम लोगों पर ज्यादा काम का दबाव मानसिक अवसाद की समस्या पैदा कर देता है।
इस बातों की पेशनगोई के साथ ही बहुत पहले से ये मांगे उठती रहीं थी कि सभी कोरोना वारियर्स के टेस्ट पहले ही करवा लिए जायें। दुर्भाग्य कि ऐसा नहीं हो सका। जब ये पेशेवर संक्रामित होकर मौत की घाट उतरने लगें हैं तब इनके निकट संबधियों/सहकर्मियों के टेस्ट शुरु हुए हैं। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है। जैसाकि आगरा के एक पत्रकार के संक्रमित होने और उनकी मृत्यु के बाद वहां के स्थानीय पत्रकारों की जांच हुई। जिसके बाद कई पत्रकार पाजिटिव पाये गये। गौरतलब है कि सभी वर्गों के वारियर्स लॉकडाउन के दायरे में तो थे नहीं, ये सब जनता के संपर्क में थे। साथ ही अपने सहकर्मियों के साथ इनका उठना बैठना था।
इसी तरह लाखों सब्जी-फल बेचने वालों को किसी भी स्थानीय प्रशासन ने वारियर्स की श्रेणी की विशेष सुविधाओं में नहीं रखा। यदि इन्हें जनता के बीच सब्जी बेचने की आजादी देने से पहले इनके टेस्ट कर लिए जाते तो आज ये शंका ना होता कि संक्रमित सब्जी वालों और सब्जियों के जरिये आम जनता के बीच कोरोना वायरस अपने पैर पसार चुका होगा, जो कभी भी ब्लास्टिंग कंडीशन में आ सकता है।
भगवान करे ये शंका केवल शंका रहे और गलत साबित हो।