दरभंगा में उलझे गणित के बीच दावेदार प्रत्याशियों की कवायद तेज
दरभंगा।दरभंगा जिले की 10 विधानसभा सीटों पर चुुुनाव के लिए द्वितीय व तृतीय चरण में वोट डाले जाएंगे। लिहाजा चुनाव की तिथि की घोषणा के साथ ही जिले में सियासी हलचल तेज है। तकरीबन 27 लाख मतदाता इसबार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। प्रशासनिक स्तर पर विभिन्न स्थानों पर लगाए गए नेताओं के प्रचार संबंधी बैनर-पोस्टर हटाए जा चुके हैं। लेकिन गठबंधन की परिस्थितियाँ अबतक स्पष्ट नहीं होने के कारण सीटिंग के साथ-साथ जो चुनाव लड़ने के लिए लंबे अरसे से सपने देेेख रहे हैं, उनकी भी घग्धी बँधी हुई है। इस पर तुर्रा ये कि पिछले विधानसभा चुनाव में महगठबंधन के साथ चुनाव लड़ने वाले जदयू के पाला बदलकर राजग के साथ आ जाने के कारण इसबार सीटों के गणित भी उलझे-से प्रतीत होते हैं। फिर भी टिकट के दावेदार शीर्ष नेतृत्व के आगे-पीछे करने में पूरी तन्मयता से तल्लीन हैं। इस दरम्यान आदर्श आचार संहिता का अनुपालन करते हुए महज एक महीने में नेताओं को अपनी बात जनता के बीच रखनी है। हालांकि अंदरखाने चर्चा है कि अमूमन सभी दलों ने अपने प्रत्याशी तय कर लिये हैं। बस अब औपचारिक घोषणा भर शेष है। जहाँ तक बात दरभंगा जिले के वर्तमान हालत की है ,तो गौड़ाबौराम सीट से जीतकर मंत्री पद बने विधायक खाद्य आपूर्ति सह उपभोक्ता संरक्षण मंत्री मदन सहनी की प्रतिष्ठा अबकी दांव पर होगी। यदि इस बार भी वे इस सीट से चुनाव लड़ते हैं, तो गौड़ाबौराम की जनता उन्हेंं अपनी कसौटी पर एक बार फिर कसेगी। अंदरखाने चर्चा है कि मदन सहनी इसबार अपने गृहक्षेत्र बहादुरपुर विधानसभा से चुनाव लड़ने की इच्छा भी जता रहे हैं। परंतु सीटिंग सीट को गठबन्धन की राजनीति में बदलना शायद ही आसान हो। जदयू के चार सीटिंग एमएलए पहले से ही जिला में हैं। साथ ही पार्टी में पिछले दिनों आये केवटी के निवर्तमान विधायक फराज फातमी को जगह देने का मतलब स्पष्ट है कि जदयू को पांच सीट चाहिए । ऐसे में राजग के घटक दल लोजपा के लिए प्रायः मुश्किलें ना भी होंं, पर भाजपा की राहें काँटों भरी हो सकती है। दरअसल जिले में अपने अन्य घटक दलों के वनिस्बत कम सीटों पर चुनाव लड़ना भाजपा के स्थानीय सांसदों को नागवार गुजर सकता है क्योंकि महागठबंधन जिस प्रकार से भाजपा के कोर वोटरों को अपने पाले में करने के लिए सतत तोड़-जोड़ में लगा रहता है ,ऐसी हालत उनके अभियान को और अधिक बल प्रदान करेगा, ऐसी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य के साथ-साथ भविष्य सांसदों की राजनीतिक सेहत के लिए भी प्रतिकूल प्रतीत होता है। इधर सवाल यह भी है कि ऐसे में लोजपा को कौन सी सीट दी जाएगी? क्योंकि लोजपा की तरफ से हायाघाट सीट पर आरके चौधरी प्रबल दावेदार बताये जाते हैं। ऐसे में समस्या उत्पन्न होना लाजिमी जान पड़ता है कि जदयू के सीटिंग एमएलए अमरनाथ गामी को कहां शिफ्ट किया जाए? हालांकि एक और विकल्प की चर्चा यह भी है कि यदि मदन सहनी को जदयू बहादुरपुर शिफ्ट करता है, तो गौराबौराम लोजपा के खाते में जा सकता है। कुशेश्वस्थान आरक्षित सीट पर सीटिंग एमएलए जदयू के शशिभूषण हजारी हैं।बेनीपुर विधानसभा से जदयू के सुनील चौधरी ने भाजपा के गोपालजी ठाकुर को हराकर जीत हासिल की थी। फिलहाल गोपालजी ठाकुर के सांसद बन जाने के बाद यह सीट भी जदयू कोटे में ही रहने की उम्मीद है। जाले और दरभंगा शहर भाजपा के कब्जे में पहले से है। जीवेश कुमार मिश्र एकबार पार्टी के खिलाफ लड़कर दुबारा पार्टी का टिकट पाकर चुनाव जीते हैं। लिहाजा इसबार भी यह सीट एनडीए की तरफ से भाजपा के खाते में ही जाने की पूरी संभावना है। दरभंगा शहर भाजपा की परंपरागत सीट रहा है। साथ ही दरभंगा को मिथिला का हृदय स्थल भी माना जाता है। ऐसे में यह सीट भाजपा के लिए अत्यधिक महत्व की हो जाती है। लगातार चार बार संजय सरावगी यहाँ से विधायक रहे हैं लेकिन दुर्भाग्यवश कहें अथवा आमलोगों की कसौटी पर हूबहू खरा
नहीं उतरने का दुष्परिणाम, गत विधानसभा चुनाव से ही अपने क्षेत्र में इन्हें अन्तर्विरोध का सामना करना पड़ रहा है। परिणामस्वरूप गत विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट में व्यापक क्षरण भी देखने को मिला ।इससे पहले तक भारी मतों से विजयी होते रहे भाजपा प्रत्याशी संजय सरावगी महज कुछ हजार मतों के अंतर से जीत पाये । फिर भी ऐसा प्रतीत होता है कि इन्होंने इससे नसीहत नहीं ली। फलतः इस वर्ष चुनाव प्रचार के दौरान कई जगहों पर इन्हें लगातार स्थानीय बासिन्दों के भारी विरोध का सामना भी करना पड़ता रहा है। इसके साथ ही पार्टी के कार्यकर्ताओं का एक बड़ा खेमा भी इनके विरोध में बताया जाता है। हालांकि ऐसे बिगड़े हालात में भी ऐसा माना जा रहा है कि अपनी रसूखदार साँठगाँठ व राजनीतिक आकाओं के साथ नजदीकियों की बदौलत एक बार पुनः वे भाजपा का टिकट पाने में कामयाब रहेंगे। लेकिन एक आकलन के मुताबिक पूर्व की भाँति अबकी उनकी राहें आसान नहीं रहने वाली है। जहाँ तक सवाल महागठबंधन का है, तो 2015 में राजद के चार उम्मीदवारों ने चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की थी जिनमें अलीनगर विधानसभा क्षेत्र से अब्दुलबारी सिद्दीकी विधायक बने। ललित यादव ने राजद उम्मीदवार के रूप में लगातार जीत हासिल करते हुए 2015 में दरभंगा ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की। फिलहाल क्षेत्र में कार्योंं को लेकर कुछ जगहों पर इनके विरोध की खबरें भी सुर्खियां बनींं। परंतु राजद में इनके कद को देखते हुए इनका टिकट पक्का माना जा रहा है। बहादुरपुर विधानसभा क्षेत्र से फिलहाल राजद के भोला यादव विधायक हैं। लालू यादव के सबसे करीबी माने जाने के कारण इनका टिकट भी लगभग तय माना जाता है लेकिन केवटी विधानसभा क्षेत्र से राजद के टिकट पर जीत हासिल करनेवालेे फराज फातमी के पाला बदल लेने के कारण यहां अब परिस्थितियाँ बदल चुकी हैंं। फराज फातमी राजद को छोड़ जदयू का दामन थाम चुके हैं और चुनाव कैंपेेेनिंग के दौरान इन्होंने प्राथमिकता केवटी विधानसभा को ही दी है। साथ ही केवटी से सीटिंग होने के कारण गठबंधन में यह सीट जदयू कोटे से फराज फातमी को ही जाने की उम्मीद जताई जा रही है। लेकिन 2015 के चुनाव में महागठबंधन के साथ रहे जदयू के फिलहाल एनडीए में शामिल रहने के कारण तथा कुछ स्थानीय कद्दावर नेताओं के पाला बदल लेने से फौरी तौर पर सामाजिक व राजनीतिक समीकरणों में व्यापक वदलाव होते जाने जैसी संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में टिकट बंटवारे के दौरान दरभंगा के परिप्रेक्ष्य में महागठबंधन की अपेक्षा एनडीए को ज्यादा माथापच्ची करने की जरूरत पड़ने की प्रबल संभावना है। भाजपा-जदयू को चार-चार सीट के साथ यदि लोजपा को दो सीट मिलती है, तो जदयू के लिए फराज फातमी को एडजस्ट करने के लिए किसी सीटिंग एमएलए का टिकट काटना पड़ेगा। ऐसे में यह सिरदर्द जदयू के लिए बड़ा घातक साबित हो सकता है। बात भाजपा की करें तो दावेदारों की सबसे बड़ी भीड़ भाजपा में ही दिख रही है। दरभंगा में भाजपा का कोर वोटर माने जाने वाले ब्राह्मण समुदाय में ही सबसे ज्यादा दावेदार हैं जबकि दो सीटिंग के अलावा दो ही विकल्प भाजपा के पास बच जाते हैंं। ऐसे में एक सीट ब्राह्मण उम्मीदवार को दिये जाने की चर्चा है। इस परिस्थिति में दावेदारों के आक्रोश का सामना सबसे ज्यादा भाजपा को ही करना पड़ सकता है। महागठबंधन में राजद का कम से कम 8 सीटों पर लड़ना तय माना जा रहा है तथा दो सीटें यथा-बेनीपुर व जाले के लिए इसबार काँग्रेस ने अपनी दावेदारी ठोक रखी है जिसमें बेनीपुर से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अपने पुत्र के लिए प्रयासरत बताए जाते हैं। वहीं पूर्व सांसद कीर्ति आजाद भी अपनी पत्नी को लड़वाने के लिए प्रयासरत बताए जाते हैं। इधर जाले से कांग्रेस उम्मीदवार ऋषि मिश्रा की दावेदारी भी प्रबल मानी जा रही है। यदि यह सीट गठबंधन के तहत यदि सीपीआई को चली जाती है, जिसके लिए सुधीर कुमार मिश्र व मो अहमद अली तमन्ने प्रयासरत हैं, तो कांग्रेस को एक ही सीट से संतोष करना पड़ सकता है। लिहाजा अब देखना दिलचस्प होगा कि इस चुनावी समर में कौन-किसे गच्चा देकर बाजी मारता ।