Pahalgam Attack: कांग्रेस ने दागे मोदी सरकार पर 6 बड़े सवाल, ट्विटर पर जनता ने भी पूछ लिया कि..

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले के बाद जहां पूरे देश में शोक और गुस्से का माहौल है, वहीं इस घटना को लेकर राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई है। कांग्रेस पार्टी ने इस आतंकी हमले को लेकर केंद्र की मोदी सरकार पर सीधा हमला बोला है। पार्टी ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के ज़रिए कई तीखे सवाल पूछे हैं और इस पूरे मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से जवाब मांगा है।

कांग्रेस ने खड़े किए छह बड़े सवाल

कांग्रेस ने ट्विटर (अब एक्स) पर पोस्ट करते हुए पहलगाम आतंकी हमले को सुरक्षा और खुफिया तंत्र की विफलता करार दिया। पार्टी ने पूछा:

  1. सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक कैसे हुई?
  2. इंटेलिजेंस (खुफिया एजेंसियों) की नाकामी का जिम्मेदार कौन है?
  3. आतंकी बॉर्डर पार कर भारत में दाखिल कैसे हो गए?
  4. 28 लोगों की मौत का जवाब कौन देगा?
  5. क्या गृहमंत्री अमित शाह इस चूक के बाद अपने पद से इस्तीफा देंगे?
  6. क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस विफलता की जिम्मेदारी लेंगे?

कांग्रेस का दावा है कि यह हमला सरकार की असफल रणनीतियों और सुरक्षा व्यवस्था की गंभीर लापरवाही का नतीजा है।

देश में गुस्से का माहौल, पर सरकार चुप क्यों?

सोशल मीडिया पर जनता भी सवाल कर रही है कि बार-बार आतंकियों को सुरक्षा तंत्र में सेंध लगाने का मौका कैसे मिल जाता है। कांग्रेस का यह कहना है कि सरकार महज बयानबाज़ी और प्रतीकात्मक निर्णयों तक सीमित है, जबकि जमीनी स्तर पर आतंकवाद से लड़ने की तैयारी नाकाफी साबित हो रही है।

पीएम और गृहमंत्री पर सीधा निशाना

पहलगाम हमले के बाद कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा है कि जब देश की सुरक्षा से जुड़ी इतनी बड़ी चूक हो, तो क्या शीर्ष नेतृत्व की कोई जवाबदेही नहीं बनती? पार्टी का कहना है कि जवाबदेही तय होनी चाहिए, और सिर्फ ‘कड़ी निंदा’ या ‘श्रद्धांजलि’ से काम नहीं चलेगा।

भाजपा की ओर से अब तक कोई स्पष्ट जवाब नहीं

कांग्रेस के तीखे सवालों के बावजूद अब तक केंद्र सरकार या बीजेपी की ओर से इन सवालों पर कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है। सरकार की ओर से केवल यह कहा गया है कि जांच जारी है और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।

क्या सिर्फ प्रतीकात्मक कदम?

गौरतलब है कि हमले के बाद भारत सरकार ने सिंधु जल समझौते को रद्द करने की घोषणा की थी, जिसे जनता में ‘तुरंत एक्शन’ की तरह पेश किया गया। लेकिन अब विपक्ष यह पूछ रहा है कि क्या यह कदम महज गुस्से को शांत करने की रणनीति थी, या वास्तव में इससे कोई प्रभाव पड़ेगा?

 

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