संगठन की कमजोरियों पर चिंतन करे कांग्रेस

 

 

राजनीति में इधर से उधर जाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन अधिकांश युवा नेताओं का मोह कांग्रेस से ही क्यों भंग हो रहा है? कांग्रेस आलाकमान इन युवा नेताओं को पार्टी के साथ जोड़े रखने में विफल क्यों हो रहा है?

पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया, फिर जितिन प्रसाद और अब सुष्मिता देव कांग्रेस छोड़ गईं। राहुल गांधी की करीबी सुष्मिता देव कांग्रेस छोडऩे तक राष्ट्रीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी थीं। सिंधिया और प्रसाद ने भाजपा का दामन थामा तो सुष्मिता आगे की राजनीति टीएमसी के बैनर तले करने जा रही हैं। राजनीति में इधर से उधर जाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन अधिकांश युवा नेताओं का मोह कांग्रेस से ही क्यों भंग हो रहा है? कांग्रेस आलाकमान इन युवा नेताओं को पार्टी के साथ जोड़े रखने में विफल क्यों हो रहा है? पंजाब से लेकर राजस्थान और उत्तरप्रदेश से लेकर गुजरात और छत्तीसगढ़ में पार्टी गुटबाजी चरम पर है।

सुष्मिता के पार्टी छोडऩे पर जी-23 के नेता कपिल सिब्बल का बयान गौर करने लायक है। सिब्बल ने तंज कसा कि युवा नेता कांग्रेस छोडकऱ जा रहे हैं और आरोप बुजुर्ग नेताओं पर लगते हैं। युवा नेता कार्ती चिदंबरम ने भी सवाल उठाते हुए कहा कि पार्टी को मंथन करना चाहिए कि सुष्मिता देव जैसे नेता पार्टी क्यो छोड़ रहे हैं? क्या युवा नेताओं की बात कांग्रेस में सुनी नहीं जा रही? या फिर उन्हें पार्टी में रहने में नुकसान नजर आ रहा है? राजस्थान का उदाहरण सबके सामने है। युवा सचिन पायलट एक साल पहले हुए सुलह फार्मूले के लागू होने का इंतजार कर रहे हैं। गुजरात में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष अपने पदों से इस्तीफा दे चुके हैं। उनके स्थान पर नई नियुक्तियां चार महीने से अटकी पड़ी हैं।

कांग्रेस के सामने महंगाई जैसे मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने का अच्छा मौका है। लेकिन गुटबाजी से जूझ रही कांग्रेस क्या भाजपा का मुकाबला कर पाएगी? ये सवाल आमजन के साथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भी परेशान किए हुए हैं। कांग्रेस के भविष्य के प्रति चिंतित तमाम नेता आत्मचिंतन की बात अनेक बार उठा चुके हैं। उनकी बातों पर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता? पार्टी दो साल से अंतरिम अध्यक्ष के भरोसे क्यों चल रही है? नए अध्यक्ष का चुनाव आखिर क्यों नहीं हो रहा? जनता से कटे नेताओं को तवज्जो मिलने के आरोपों का समाधान क्यों नहीं निकल रहा? इन सवालों का हल तलाशे बिना कांग्रेस मजबूत नहीं हो सकती। चुनावी हार-जीत की चिंता किए बिना पार्टी को संगठन की कमजोरियां दूर करने के गंभीर प्रयास करने चाहिए। उत्तरप्रदेश समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव चार महीने दूर हैं। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में पार्टी संगठन की हालत किसी से छिपी नहीं है। युवाओं के बिना कांग्रेस भाजपा का मुकाबला कर पाएगी, संदेह ही लगता है।

 

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