परशदेपुर में कांग्रेस ने प्रत्याशी ना उतारकर सपा को अप्रत्यक्ष समर्थन दिया है
रायबरेली– निर्दलीय प्रत्याशी सपा और भाजपा के लिए बने और अपना निशान बदला है चेहरे वहीं है वादे नये है पर मतदाता वहीं है। लुभाने डराने का तरीका बदला है पर लोग वहीं है चेहरा बदला है पर प्रशासन वहीं हैlनगर पंचायत परशदेपुर में मतदाता शान्त हो गये यहां समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा वाले समर्थकों का भी विश्वास डगमगाने लगा है ।सत्ताधारी प्रत्याशी में भी अपनी पूरी ताकत झोंकने के बाद भी जीत का भरोसा नहीं हैं सूत्रों की माने तो प्रभावी मंत्री से खुलेआम प्रशासन के द्वारा सहयोग न करने कि शिकायत कर डाली तो वहीं सपा प्रत्याशी अन्दर ही अन्दर अपने परम्परागत वोटरों के बीच समर्थन मांग रहें हैं ।और अपने जीत शत-प्रतिशत मान चुके हैं दो बड़ी शक्तिशाली पार्टियों के रणनीतिकारों निर्दलीय प्रत्याशियों को साम दाम दंड भेद से अपने साथ मिलाना चाहते है या फिर चुनाव के दौड़ से बाहर ढकेल देना चाहते है। यहां आंख की किरकिरी बने निर्दलीय प्रत्याशी पूर्व चेयरमैन विनोद कौशल को चुनावी दंगल से बाहर करने के लिए भाजपा प्रत्याशी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी ताकि एक समुदाय को अपने पक्ष में कर सके lपूर्व चेयरमैन विनोद कौशल विकास कार्य के साथ संगठनात्मक पहचान और क्षेत्र व संगठन में सक्रिय रहने के मुद्दे पर मतदाताओं की सहानभूति हासिल करने में लगे हैं ।तो वहीं भाजपा प्रत्याशी ओमप्रकाश मौर्य संगठनात्मक पहचान और अनुभव न होने के कारण पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं है ।जिसका फायदा सपा को मिलता नज़र आ रहा है क्योंकि कांग्रेस के चुनाव में प्रत्याशी न उतार कर अप्रत्यक्ष रूप से सपा को मजबूत करने का काम किया हैं l
यह बात तो पक्की है कि गैर-भाजपा पार्टियों के रणनीतिकारों ने सत्ताधारी पार्टी को घेरने में निश्चित रूप से दूर का निशाना साधा है। अब देखना है सपा प्रत्याशी मोहम्मद इस्लाम अपने मतदाताओं को निर्दलीय प्रत्याशी जमाल अख्तर मोहम्मद कुददूस से बचाकर केन्द्रित कर पाते हैं ।की नहीं एकलौती महिला निर्दलीय प्रत्याशी विंध्या मौर्य व कर्मवीर को भी राजनैतिक पंडितों की कुटनीतिज्ञ मतदाताओं को हथियार बनाकर बड़ी पार्टियां एक दूसरे का खेल बिगाड़ने का काम करेंगी मतदान जैसे-जैसे पास आता जाए जा रहा दोनों पार्टियों के बड़े बड़े नेताओं की रैली और सभा होगी तरह तरह की अफवाहों से तोड़ मरोड़ कि साजिशें देखने को मिल सकती है निर्वाचन अधिकारी निष्पक्ष चुनाव कराने में सफल होते है या आरोप प्रत्यारोप में फस कर विवादित कर दिये जाते है ऐसी स्थिति में आम मतदाताओ और निर्दलीय प्रत्याशियों पर सबसे अधिक दबाव बनाये जाने की सम्भावना बनेंगी l