जानिए तापमान बढ़ने के नुकसान, आसान भाषा में

लगातार धरती का तापमान बढ़ने की वजह से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इनके पिघलने से समुद्र का तापमान भी तेजी से बढ़ रहा है। दुनियाभर में हो रहे इस बदलाव पर वैज्ञानिक बेहद करीब से नजर भी रख रहे हैं।
ग्लोबल वार्मिग के कारण ग्लेशियरों की बर्फ पिघल रही है, जिसके चलते समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। दुनियाभर के विज्ञानी इस बदलाव पर निरंतर नजर रखे हुए हैं। अब इस कार्य में कुछ आसानी हो सकेगी। दरअसल, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक नए तरीके की तलाश की है, जिसकी मदद से बर्फ की परतों की निगरानी की जा सकेगी। इसके लिए विज्ञानियों ने सोलर रेडियो सिग्नल का प्रयोग किया है, जो वर्तमान में मौजूद तरीकों की तुलना में सस्ता और कम ऊर्जा की खपत करने वाला है। इसके जरिये पता लगाया जा सकेगा कि किस तेजी से बर्फ पिघल रही है और उससे समुद्र के जलस्तर में कितना इजाफा होगा।
सूर्य विद्युत चुंबकीय अवस्था का एक कठिन स्रोत प्रदान करता है। गैसों की विशाल गेंदों के जरिये रेडियो आवृत्तियों के व्यापक स्पेक्ट्रम पृथ्वी पर आते हैं। इस प्रक्रिया में विज्ञानियों ने एक शक्तिशाली टूल बनाने का तरीका खोजा है, जिसके जरिये बर्फ और धरती के ध्रुवों पर होने वाले बदलावों की निगरानी की जा सकेगी। इस तकनीक के बारे में जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स नामक जर्नल में विस्तार से बताया गया है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, वर्तमान में जिस तकनीक का प्रयोग उपरोक्त चीजों का डाटा एकत्र करने के किया जाता है उसकी तुलना में यह तरीका कम खर्चीला, कम ऊर्जा की खपत करने वाला व ज्यादा व्यापक है। इसके जरिये न केवल बर्फ की चादरों और ग्लेशियरों के पिघलने की व्यापक निगरानी की जा सकेगी, बल्कि समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी के कारण का पता अधिक सटीकता से लगाया जा सकेगा।
ग्लेशियोलॉजिस्ट और इलेक्टिकल इंजीनियरों की टीम ने अपने अध्ययन के माध्यम से दिखाया कि कैसे सूर्य द्वारा कुदरती रूप से उत्सर्जित रेडियो सिग्नल बर्फ की चादरों की गहराई को नापने के लिए एक निष्क्रिय रडार प्रणाली में बदले जा सकते हैं। टीम के सदस्यों ने ग्रीनलैंड के ग्लेशियर में इसका सफल परीक्षण किया। वर्तमान में ध्रुवीय उपसतह के बारे में व्यापक जानकारी एकत्र करने के लिए एयरबोर्न आइस-पेनेट्रेटिंग रडार का प्रयोग किया जाता है। इसमें हवाई जहाज प्रयोग किए जाते हैं, जिनसे बर्फ की सतह पर रडार सिग्नल प्रेषित किए जाते हैं। हालांकि, इस तरीके से केवल उस समय की ही जानकारी मिल पाती है, जिस वक्त हवाई जहाज सिग्नल प्रेषित करता है।
वहीं, शोधकर्ताओं द्वारा तलाशे गए नए तरीके से बर्फ के पिघलने की व्यापक जानकारी एकत्र की जा सकती है, क्योंकि सूर्य से रेडियो तरंगें निरंतर ही पृथ्वी पर आती रहती हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो इस नए तरीके की मदद से बर्फ के पिघलने की दर का पता लगाने के लिए हवाई जहाज को उड़ने और उससे रडार सिग्नल भेजने की जरूरत नहीं पड़ेगी। सूर्य से धरती पर निरंतर प्रेषित की जा रहीं तरंगों के जरिये ही बर्फ की घटती ऊंचाई का पता लगाया जा सकेगा।
अध्ययन के प्रमुख लेखक शान पीटर्स के मुताबिक, हमारा उद्देश्य कम संसाधन में ऐसा सेंसर नेटवर्क विकसित करना है, जिससे निगरानी स्तर को बढ़ाया जा सके। इसलिए इसका विकल्प तलाशने का प्रयास किया। यह नया तरीका न केवल सस्ता और आसान है, बल्कि इसमें कम ऊर्जा की खपत कर अधिक जानकारी एकत्र की जा सकती है।