क्लाइमेट चेंज की 3 डरावनी तस्वीरें
UN की चेतावनी- अगले 20 साल में ग्लोबल टेम्परेचर 1.5 डिग्री तक बढ़ेगा; अब 50 साल की बजाय हर 10 साल में भीषण गर्मी पड़ रही
हर 50 साल में एक बार आने वाली हीट वेव (भीषण गर्मी) अब हर 10 साल में आने लगी है। साथ ही हर दशक में भारी बारिश और सूखा पड़ने लगा है। संयुक्त राष्ट्र के इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक 60 देशों के 200 से ज्यादा लेखकों ने पांच स्थितियों को देखते हुए निष्कर्ष निकाला है कि अगले 20 साल में ग्लोबल टेम्परेचर 1.5 डिग्री तक बढ़ जाएगा।
सोमवार को जारी हुई इस रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते भीषण गर्मी, भारी बारिश और सूखे की आशंका बढ़ गई है। हम जलवायु परिवर्तन के असर का अनुभव करने लगे हैं। इसका उदाहरण है अमेरिका और कनाडा में जून में पड़ी भारी गर्मी से सैकड़ों लोगों की हुई मौत। इसी तरह ब्राजील 91 साल में सबसे खराब सूखे का सामना कर रहा है।
दूसरी तरफ जर्मनी और चीन ने भीषण बाढ़ का सामना किया है। रिपोर्ट के लेखक फ्रेडरिक ओटो ने कहा कि अगर हम पृथ्वी का औसतन तापमान 1.5 डिग्री पर स्थिर कर लेते हैं तो मौसम की खराब स्थितियों से बचा जा सकता है। इस रिपोर्ट को जलवायु परिवर्तन पर दुनिया की अब तक की सबसे बड़ी रिपोर्ट कहा जा रहा है। इसे 60 देशों के 200 वैज्ञानिकों ने 14 हजार साइंस पेपर्स के आधार पर तैयार किया है।
क्लाइमेट चेंज की 3 डरावनी तस्वीरें
न्यूजीलैंड में बर्फबारी आमतौर पर अक्टूबर में होती है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से यहां दो महीने पहले ही बर्फ गिरनी शुरू हो गई है। रविवार को मध्य और दक्षिणी न्यूजीलैंड में 8 इंच तक बर्फबारी हुई।
ग्रीस पिछले 30 साल की सबसे भीषण आग का सामना कर रहा है। हजारों एकड़ जंगल खाक हो चुका है और हजारों लोग बेघर हो गए हैं।
इटली में नहरों के शहर वेनिस में भारी बारिश के बाद मशहूर पर्यटन स्थलों पर 6-6 इंच तक पानी भर गया है।
कितना गंभीर होता जा रहा है जलवायु परिवर्तन, भारत पर इसका कितना असर?
पेरिस गोल्स: लगभग सभी देशों ने 2015 के पेरिस जलवायु समझौते पर साइन किए हैं। इसका उद्देश्य ग्लोबल वॉर्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है। IPCC की रिपोर्ट के मुताबिक 200 से ज्यादा लेखकों ने पांच स्थितियों को देखते हुए निष्कर्ष निकाला कि इन सभी में 2040 के दशक तक दुनिया को 1.5 डिग्री की सीमा को पार करते हुए देखा जा सकता है।
हिंद महासागर में बढ़ेगा तापमान: हिंदूकुश हिमालय में हिमनदों का पीछे हटना, समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी, बाढ़ की ओर ले जाने वाले चक्रवातों के मिले-जुले असर, एक अनिश्चित मानसून और जलवायु परिवर्तन जैसे असर भारत पर असर पड़ने की संभावना है। IPCC की रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से ज्यादातर असर ऐसे हैं जो बदले नहीं जा सकते।
पहाड़ों पर बर्फ की कमी: एशिया में ऊंचे पहाड़ों पर बर्फ पड़ना कम हो गया है। ग्लेशियर पतले हो गए हैं। 21वीं सदी के दौरान बर्फ से ढके क्षेत्रों और बर्फ की मात्रा में कमी जारी रहेगी। ग्लेशियर के मास में और गिरावट आने की संभावना है। UN ने चेतावनी दी है कि बढ़ते वैश्विक तापमान और बारिश से ग्लेशियर झील के फटने की घटनाएं बढ़ेंगी।
गर्मी बढ़ेगी, ठंड में कमी: पहाड़ी इलाकों में गर्मी के पीक में काफी बढ़ोतरी हुई है, जबकि ठंड में कमी आई है। ये रुझान आने वाले दशकों में एशिया में जारी रहेंगे। बता दें उत्तराखंड में 7 फरवरी को एक ग्लेशियर के टूटने से ऋषिगंगा और धौलीगंगा घाटियों में अचानक बाढ़ आ गई थी। इसकी चपेट में आकर करीब 200 लोगों की जान गई थी।