CJI संजीव खन्ना ने चुनाव आयुक्तों के चयन मामले से खुद को अलग क्यों किया?
CJI) संजीव खन्ना ने हाल ही में चुनाव आयुक्तों (Election Commissioners) और मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner - CEC) के चयन प्रक्रिया से खुद को अलग कर लिया।
सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने हाल ही में चुनाव आयुक्तों (Election Commissioners) और मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner – CEC) के चयन प्रक्रिया से खुद को अलग कर लिया। यह फैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे संबंधित मुद्दे पर देशभर में बहस हो रही है।
CJI चयन प्रक्रिया और नई समिति
पहले, चुनाव आयुक्तों और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए एक समिति में निम्नलिखित सदस्य शामिल थे:
- प्रधानमंत्री
- लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP)
- सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश (CJI)
हालांकि, केंद्र सरकार ने संसद में एक नया कानून पारित किया, जिसके तहत इस समिति में बदलाव किए गए। अब समिति में शामिल सदस्य हैं:
- प्रधानमंत्री
- प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक मंत्री
- लोकसभा में विपक्ष के नेता
नई समिति पर उठे सवाल
इस नए कानून का विरोध करते हुए कई याचिकाएं दायर की गईं। याचिकाओं में मुख्य तर्क दिए गए:
- 2:1 का अनुपात: नए पैनल में सरकार को बहुमत (2:1) मिलता है, जिससे यह असंतुलित और पक्षपाती हो सकता है।
- सीजेआई को बाहर करना: यह बदलाव संविधान की मूल भावना के खिलाफ है, क्योंकि न्यायपालिका की निष्पक्ष भूमिका को कमतर कर दिया गया है।
- नियुक्तियों में पारदर्शिता की कमी: यह तर्क दिया गया कि नई प्रक्रिया में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोग के सिद्धांत का उल्लंघन हो सकता है।
सीजेआई का फैसला
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने इस विवादित मुद्दे पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। उनके इस फैसले के पीछे मुख्य कारण यह हो सकता है कि वह इस पैनल के सदस्य हैं, और सुनवाई के दौरान यह एक हितों का टकराव (Conflict of Interest) का मामला बन सकता था।
सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला
मार्च 2024 में, तत्कालीन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था कि सीईसी और ईसी की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र पैनल होना चाहिए। इस पैनल में सीजेआई, प्रधानमंत्री, और विपक्ष के नेता को शामिल करने का सुझाव दिया गया था।
केंद्र सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार ने संसद के माध्यम से नया कानून लाते हुए दलील दी कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत है और यह सरकार का अधिकार है कि वह नियुक्ति प्रक्रिया को परिभाषित करे।
निष्पक्ष चुनाव आयोग की मांग
याचिकाकर्ताओं ने अदालत से आग्रह किया कि:
- चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति निष्पक्ष और स्वतंत्र होनी चाहिए।
- नए कानून की समीक्षा कर इसे संविधान के अनुरूप बनाया जाए।
- सरकार की तरफ झुके हुए पैनल को खत्म किया जाए।
सीजेआई का अलग होना: क्या संदेश देता है?
सीजेआई संजीव खन्ना का इस मामले से अलग होना न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता को बनाए रखने की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है। यह फैसला संकेत देता है कि न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से संविधान के मूल सिद्धांतों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
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चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में न्यायपालिका की भागीदारी पर सवाल उठना एक बड़ा संवैधानिक मुद्दा है। सीजेआई संजीव खन्ना का इस मामले से अलग होना एक नैतिक और न्यायिक दृष्टिकोण का प्रतीक है, जो निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। अब, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह जिम्मेदारी है कि वह इस मामले में संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए उचित मार्गदर्शन दे।