ज्यादा शक्तिशाली होंगे चीनी राष्ट्रपति: जिनपिंग के खिलाफ बयान देना अपराध होगा

100 साल के इतिहास में तीसरा संकल्प-पत्र,

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का अब और भी ज्यादा शक्तिशाली होना लगभग तय है। जिनपिंग के खिलाफ बयानबाजी को चीन में अपराध की कैटेगरी में डाला जा सकता है। उनके खिलाफ उठी हर आवाज को दबा दिया जाएगा।

8 नवंबर से बीजिंग में चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) का चार-दिवसीय कॉनक्लेव शुरू हुआ है। ये सत्तारूढ़ चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का छठा पूर्ण सत्र है। बैठक में ‘ऐतिहासिक संकल्प-पत्र’ जारी किया गया है, जिसमें CCP के 100 सालों की उपलब्धियों पर चर्चा की जाएगी। इस दौरान जिनपिंग के तीसरे कार्यकाल पर भी मुहर लग सकती है।

11 नवंबर तक चलने वाली बैठक में CCP के लगभग 370 वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे। पूरी बैठक बंद कमरे में हो रही है। इस बार के संकल्प-पत्र में और क्या-क्या है, इसको लेकर ज्यादा जानकारी अभी सामने नहीं आई है। फिलहाल बस कयास लगाए जा रहे हैं।

100 साल के इतिहास में केवल दो संकल्प-पत्र
जुलाई 1921 की बैठक में चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की नींव रखी गई थी। सौ सालों के इतिहास में चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी सिर्फ दो संकल्प-पत्र लेकर आई है। पहला 1945 में और दूसरा 1981 में। इन संकल्पों के जरिए माओत्से तुंग और देंग जियाओपिंग को शक्तियां बढ़ाने में मदद मिली थी। ऐसे में तीसरे संकल्प पत्र के बाद चीन के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग का अब और भी ज्यादा शक्तिशाली होना लगभग तय है। माना जा रहा है कि जिनपिंग को माओत्से तुंग और देंग के बाद चीन का ‘युग-पुरुष’ घोषित किया जा सकता है।

पहले संकल्प-पत्र में पार्टी के संघर्षों पर बात
माओ के संकल्प-पत्र का नाम- ‘रिजॉल्यूशन ऑन सर्टेन क्वेश्चन्स इन द हिस्ट्री ऑफ अवर पार्टी’ था। इसमें शंघाई नरसंहार से लेकर लॉन्ग मार्च तक के पार्टी के बीते दो दशकों के संघर्ष पर बात की गई थी। पार्टी काडर की वफ़ादारी हासिल करने के लिए ऐसा किया गया था। इसके बाद माओ ने सितंबर 1976 में अपने मरने तक चीन पर शासन किया।

दूसरे संकल्प पत्र में माओ की नीतियों की आलोचना
माओ की मौत के बाद डेंग जियाओपिंग चीन के सुप्रीम लीडर बने। 1981 में वो दूसरा संकल्प-पत्र लेकर आए। इसमें पार्टी की स्थापना से लेकर उनके समय तक के इतिहास का ज़िक्र किया गया था। संकल्प-पत्र में जियाओपिंग ने माओ की नीतियों की आलोचना की थी और माओ की नीतियों में भारी फेरबदल किया था। उन्होंने इकोनॉमिक रिफॉर्म्स पर काफी जोर दिया था, जिससे चीन के बाज़ार बाकी दुनिया के लिए खुलने लगे थे।

तीसरे संकल्प-पत्र में उपलब्धियों पर जोर
जानकारों का मानना है कि तीसरे संकल्प-पत्र में इतिहास की आलोचना की बजाय उपलब्धियों पर जोर है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब माओ संकल्प-पत्र लेकर आए थे, उस समय चीन सिविल वार और जापानी आक्रमण से जूझ रहा था। वहीं, जियाओपिंग के सामने एक अलग तरह का संकट था। हालांकि, जिनपिंग के सामने ऐसा कोई संकट नहीं दिखता।

चीन में ऐसे होर्डिंग लगे हैं। बताया जा रहा है कि इतिहास का तीन चौथाई हिस्सा जिनपिंग को समर्पित है।

जिनपिंग ने दो टर्म की बाध्यता खत्म कर दी थी
शी जिनपिंग इस दशक में चीन के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे हैं। जिनपिंग 2012 में सत्ता में आए थे। जिनपिंग से पहले राष्ट्रपति रहे सभी नेता पांच साल के दो कार्यकाल या 68 साल की आयु होने के अनिवार्य नियम के बाद रिटायर हो चुके हैं। 2018 में चीन ने राष्ट्रपति पद के लिए दो टर्म की बाध्यता खत्म कर दी थी। ऐसे में जिनपिंग चाहें तो पूरी उम्र के लिए राष्ट्रपति बने रह सकते हैं। जिनपिंग का दूसरा कार्यकाल अगले साल खत्म हो रहा है, लेकिन ये तय माना जा रहा है कि वह तीसरा कार्यकाल भी लेंगे।

जिनपिंग के दौर में चीन के हालात

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