चीन की एजुकेशन पॉलिसी में बड़ा बदलाव
चीन ने 7 साल तक के बच्चों की परीक्षा खत्म की, ताकि दंपती अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित हों
चीन ने स्कूल प्रणाली के लिए व्यापक शिक्षा सुधार लागू किए हैं। इसके तहत छह और सात साल के बच्चों के लिए लिखित परीक्षा पर पाबंदी लगा दी है। इसका मकसद बच्चों और अभिभावकों पर से दबाव कम करना है। माना जा रहा है कि इससे पैरेंट्स को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए वक्त मिलेगा।
सोमवार को जारी नए दिशा-निर्देशों में कहा गया है, बार-बार होने वाली परीक्षाएं…जिसकी वजह से छात्रों पर बहुत अधिक बोझ पड़ता था। इसे शिक्षा मंत्रालय ने हटा दिया गया है। मंत्रालय ने कहा कि कम उम्र से ही स्टूडेंट्स पर दबाव उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत को नुकसान पहुंचाता है। इसके अलावा जूनियर हाईस्कूल तक होने वाली परीक्षाओं को भी सीमित कर दिया गया है। ये उपाय चीन के शिक्षा क्षेत्र के व्यापक सरकारी सुधारों का हिस्सा हैं।
जुलाई में प्राइवेट ट्यूटरिंग फर्म बंद की गई थीं
इससे पहले जुलाई के अंत में चीन ने सभी प्राइवेट ट्यूटरिंग फर्मों पर रोक लगा दी थी, इससे 7.32 लाख करोड़ रुपए कोचिंग इंडस्ट्री प्रभावित हुई है। इसका उद्देश्य चीन की शिक्षा असमानता को कम करना है, जहां कुछ मध्यम वर्ग के माता-पिता स्वेच्छा से अपने बच्चों को शीर्ष स्कूलों में लाने के लिए निजी शिक्षण पर प्रति वर्ष 11.27 लाख रुपए या उससे अधिक की राशि खर्च करते हैं।
चीन का फोकस नई जनसंख्या नीति पर
दरअसल इन सुधार कार्यक्रमों की चीन की अधिक बच्चों वाली जनसंख्या नीति से जोड़कर देखा जा रहा है। दशकों में सबसे धीमी जनसंख्या वृद्धि के साथ, चीनी अधिकारियों ने इस साल की शुरुआत में दो बच्चे की जन्म सीमा हटा दी है। वे अधिक बच्चे पैदा करने के लिए इस तरह के प्रोत्साहन बढ़ाना चाहते हैं।
पहली-दूसरी कक्षा के बच्चों के लिए होमवर्क पर भी रोक
बीजिंग शहर के अधिकारियों ने बीते हफ्ते घोषणा की कि कुछ स्कूलों में शीर्ष प्रतिभाओं की एकाग्रता को रोकने के लिए शिक्षकों को हर छह साल में स्कूलों को बदलना चाहिए। इस साल पहली और दूसरी कक्षा के छात्रों के लिए लिखित होमवर्क पर भी पाबंदी लगा दी थी।