जानिए क्या है चीन का नया समुद्री कानून?
जिस रूट से होता है भारत का आधे से ज्यादा समुद्री व्यापार, वहां चीन ने लगाया अड़ंगा;
एक सितंबर से चीन का नया समुद्री कानून लागू हो गया है। इस कानून के तहत चीन की समुद्री सीमा से गुजरने वाले सभी विदेशी जहाजों को अपनी सारी जानकारी चीनी अधिकारियों को देनी होगी। अगर जहाज का चालक दल ऐसा नहीं करता है तो चीन उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है।
चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस ने अप्रैल में समुद्री सुरक्षा से जुड़े इस कानून में संशोधन किया था। इस कानून के लागू होने के बाद एक बार फिर विवाद छिड़ गया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि चीन का ये कानून समुद्री यातायात को प्रभावित करने का नया तरीका है और इससे देशों के बीच विवाद की स्थिति पैदा हो सकती है।
आइए समझते हैं, चीन का नया कानून क्या है? इसे लेकर क्यों विवाद हो रहा है? इस कानून का भारत पर क्या असर हो सकता है? और क्या ये साउथ चाइना सी पर कब्जा बढ़ाने के लिए चीन का नया पैंतरा है?
चीन का नया समुद्री कानून क्या है?
चीन ने अपनी समुद्री सुरक्षा का हवाला देते हुए 1 सितंबर से नया कानून लागू किया है। इस कानून के मुताबिक, चीन के समुद्री क्षेत्रों से निकलने वाले दूसरे देशों के जहाजों को चीनी अधिकारियों के पास अपना कॉल साइन, पोजिशन, डेस्टिनेशन, जहाज में लोड सामान की जानकारी, स्पीड, लोडिंग कैपेसिटी की जानकारी देनी होगी। ऐसा नहीं करने पर चीन अपने कानून के हिसाब से कार्रवाई कर सकेगा।
ये कानून किन जहाजों पर लागू होगा, अभी ये पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। चीनी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ये कानून पनडुब्बियों, न्यूक्लियर जहाजों, रेडियोएक्टिव मटेरियल से लोड जहाजों, ऑइल, गैस और केमिकल ले जा रहे जहाजों पर लागू होगा। साथ ही चीन ने ये भी कहा है कि ऐसे जहाज जो चीन की सुरक्षा के लिए खतरा साबित हो सकते हैं, उन पर भी इस कानून के तहत कार्रवाई की जा सकेगी। यानी चीन लगभग सभी तरह के विदेशी जहाजों को इस कानून के दायरे में ले आया है।
इस कानून पर विवाद क्यों छिड़ गया है?
चीन समुद्र में अपना दखल लगातार बढ़ा रहा है। वह इस कानून के जरिए साउथ और ईस्ट चाइना सी से गुजरने वाले विदेशी जहाजों की आवाजाही बाधित करना चाहता है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस कानून के पीछे चीन की यही मंशा है।अभी तक ये स्पष्ट नहीं है कि चीन इस कानून का उल्लंघन करने वालों पर किस तरह की कार्रवाई करेगा। अगर सख्त कार्रवाई होती है तो इससे समुद्री यातायात प्रभावित होगा और देशों के बीच विवाद की स्थिति पैदा हो सकती है।इसी साल फरवरी में चीन ने एक कानून के जरिए कोस्ट गार्ड को ये अधिकार दिया था कि वे किसी भी विदेशी जहाज पर संदेह होने पर हमला कर सकते हैं। एक के बाद एक दो विवादास्पद कानूनों के जरिए चीन समुद्री सुरक्षा के बहाने अंतरराष्ट्रीय समुद्री मार्ग पर गैरकानूनी रूप से अतिक्रमण कर रहा है।
भारत के लिए क्यों जरूरी है साउथ-चाइना सी?
जापान, साउथ कोरिया और ASEAN देशों के साथ व्यापार के लिए साउथ चाइना सी भारत के लिए बेहद अहम है। भारत के कुल समुद्री व्यापार का करीब 55% साउथ चाइना सी के जरिए ही होता है।अक्टूबर 2011 में भारत ने वियतनाम के साथ साउथ चाइना सी में ऑयल और गैस एक्सप्लोरेशन के लिए एक एग्रीमेंट किया था। चीन ने इस कदम का खासा विरोध किया था। 2019 में चीन ने वियतनाम के समुद्री क्षेत्र में 30 से ज्यादा जंगी जहाजों को तैनात कर दिया था।
समुद्री सीमा पर क्या है अंतरराष्ट्रीय कानून?
दुनियाभर में हो रहे समुद्री यातायात को लेकर चीन, भारत समेत 100 से भी ज्यादा देशों में एक एग्रीमेंट साइन किया गया है। इसे यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी (UNCLOS) कहा जाता है। इसके मुताबिक, किसी भी देश की जमीन से 12 नॉटिकल मील (22.2 किलोमीटर) तक उस देश की समुद्री सीमा मानी जाती है।
इस कानून के मुताबिक 12 नॉटिकल मील की दूरी के बाद का समुद्री क्षेत्र कोई भी देश ट्रेड के लिए इस्तेमाल कर सकता है। इस दूरी के बाद किसी भी देश की समुद्री सीमा लागू नहीं होती। चीन का ये नया कानून UNCLOS की इस संधि का भी उल्लंघन करता है।
चीन इस कानून का गलत तरीके से फायदा उठाता है। दरअसल चीन ने साउथ और ईस्ट चाइना सी में अलग-अलग आइलैंड पर कब्जा कर रखा है। चीन इन आइलैंड को अपना बताता है और अपनी समुद्री सीमा का आकलन भी इन्हीं आइलैंड की दूरी के हिसाब से करता है। इससे समुद्र में चीन का दखल बढ़ता जा रहा है।
साल 2016 में एक अंतरराष्ट्रीय अदालत ने साउथ चाइना सी में चीन के दखल को गैरकानूनी बताते हुए फिलीपींस के पक्ष में फैसला सुनाया था। चीन ने फैसले को मानने से ही इनकार कर दिया था।